दोहरे उसूल
दोहरे उसूल


"हट..हट..छोड़ ये बिस्किट.." लगभग दौड़ती सी दरवाजे तक आईं शीतला देवी ने अपने अबोध नाती से बिस्किट छीनते हुए चिल्लाकर कहा..."माया... ये बच्चा है, तू तो समझदार है.. छोटी बिरादरी के बिस्किट खाएगा ठाकुरों का बालक? सिर चढ़ गई है तू ।"इस बच्चे की तबीयत खराब होने पर वैद्य ने उपचार में गाय का दूध बच्चे को देने के लिए कहा है बहुत तलाशने पर भी व्यवस्था नहीं हो पा रही ..।"
"तेरे घर भी गाय है.. "शीतला देवी ने आदेशात्मक लहजे में कहा,"माया..आज से ही आधा लीटर गाय का दूध भिजवा देना लगभग पन्द्रह दिन तक।जो पैसा हो बता देना..।"
माया अचकचाते हुए बोली.. "माँ जी.. लेकिन छोटी बिरादरी की गाय का दूध आपका नाती..."
"चुप कर.." डपटते हुए शीतला देवी बोलीं.. गाय की कबसे जाति-बिरादरी होने लगी ..ज्यादा बोलने लगी है.. जाकर दूध भिजवा दे।"
माया दोहरे उसूलों के गणित का हिसाब लगाते हुए उठ खड़ी हुई।