छोटा नोट
छोटा नोट
एक गरीब बूढ़ा आदमी, सर पे तौलिया लपेटे शहर की व्यस्ततम बैंक शाखा में दाखिल हुआ।गर्मी बहुत थी और भीड़ भी काफी थी।वो रुपए जमा करने की पर्ची भरकर कैशियर की खिड़की पर लगी कतार में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा। झुर्रियों वाले चेहरे को गर्मी की उमस और थकान ने और बुझा दिया था।कतार में खड़े-खड़े पैर कंपकपाने लगे तो उसी जगह नीचे बैठ गया।आखिरकार उसकी बारी आई, राहत की साँस लेते हुए खड़ा हुआ और पर्ची के साथ पैसे खिड़की से कैशियर बाबू को पकड़ा दिए ।
कैशियर बाबू ने ,जो भीड़ को निपटा निपटाकर त्रस्त हो चुका था, एक नज़र बूढ़े आदमी के हुलिए पर डाली और दूसरी उसके दिए गये छोटे नोटों की गड्डी पर।
भिनभिनाते हुए उसने दस-दस के नोटों की गड्डी लगभग पटकते हुए वापस की और कहा ," इतने छोटे अभी नोट जमा नहीं होंगे बाबा..।"फिर कुछ मद्धम स्वर में बड़बड़ाया,"जाने कहाँ-कहाँ से बटोर लाया है छोटे छोटे नोट,गँवार कहीं का।"
"बेटा,बैंक की तरफ आना रोज नहीं होता ,तबीयत भी ठीक नहीं है ,जमा कर लो,जरूरी है", बूढ़े ने खासी विनम्रता से कहा।
"तबीयत तो मेरी भी ठीक नहीं, वैसे भी बैंक बंद होने का टाइम हो गया," कहते हुए कैशियर सीट से उठ गया।
वो बूढ़ा आदमी कुछ देर खाली , धंसी आँखों से कैशियर को जाते देखता रहा फिर धीमे निराश कदमों से बैंक से बाहर आ गया।कुछ जरूरी सामान खरीदा और थोड़ी देर बाद सिटी बस में बैठ गया। बस कंडक्टर टिकट बनाना शुरु कर दिया था।बस गंतव्य की ओर चल पड़ी थी।टिकट ले चुका बूढ़ा आदमी अपने रुपये व्यवस्थित करके रख रहा था कि अचानक पीछे की सीटों की तरफ से आते शोरगुल ने उसे पीछे देखने पर मजबूर कर दिया।अभी मामला समझ नहीं आ रहा था।
कंडक्टर ने चालक को बस रोकने के लिए आवाज लगाई ,और जिससे विवाद हो रहा था, व्यक्ति तेजी से आगे आया। ये वही कैशियर था ।रुपए खुले न देने की वजह कंडक्टर उसे बस से उतरने को कह रहा था और कैशियर दो हजार का नोट लिए कंडक्टर को समझाने की कोशिश कर रहा था कि उस पर वही नोट बाकी है, यहां बस से न उतारे ,यहां तो ऑटो भी न मिलेगा।कंडक्टर अपनी पर अड़ा था कि दस रुपये की टिकट के लिए इतना बड़ा नोट क्यों ले। बस रुक जाने से अन्य यात्रियों की झुंझलाहट बढ़ रही थी।
वो बूढ़ा आदमी उठा, उसने छोटे नोटों की गड्डी में से दस का एक नोट निकाल कर कैशियर की ओर बढ़ा दिया।कैशियर शब्द शून्य हो गया ।बूढ़ा आदमी बोला," टिकट ले लो बेटा, कल आउंगा फिर से बैंक, तब लौटा देना"।
कैशियर ने बिना नजरें मिलाए उससे नोट लिया और टिकट खरीद लिया।शर्मिंदगी से गर्दन उठ नहीं पा रही थी।उसे वो बूढ़ा आदमी अचानक ऊंचा उठता दिख रहा था।