इश्क का भूत
इश्क का भूत
केतन मेहता अभी सुबह की चाय पी ही रहे थे कि अचानक मोबाइल बज उठा।
"हैलो।"
"आप केतन मेहता बोल रहे हैं।"? एक कड़कती हुई आवाज आई।
"जी , मैं केतन मेहता ही बोल रहा हूं। आप कौन बोल रहे हैं।"? मेहता जी ने भी ऊंची आवाज में कहा।
"मैं सदर थाने से एस आई हीरालाल बोल रहा हूं। आप अभी सिविल लाइंस में श्याम बेकरी पर आ जाइए। अर्जेंट।"
"लेकिन क्यों ? आप पुलिस वाले हैं तो क्या रौब दिखाएंगे ? मैं वहां पर आपके कहने से क्यों जाऊँ" ? मेहता जी ने तुनक कर कहा
"जी देखिए , बात कुछ ऐसी ही है,मैं फोन पर नहीं बता सकता हूँ। इसलिए मेरा निवेदन है कि आप वहां पर तुरंत आ जाइए।"
"जब तक आप मुझे पूरी बात नहीं बताएंगे , मैं नहीं जाऊंगा वहां पर। गुलाम समझ रखा है क्या मुझे"? मेहता जी आगबबूला हो गए थे।
"जी, मैं बताना तो नहीं चाहता था लेकिन आप मजबूर कर रहे हैं बताने को। तो सुनिए। आपकी बेटी मुग्धा की लाश वहां पर जली हुई पड़ी है लावारिस हालत में। इतना बहुत है या और कुछ बताऊं" । थानेदार का स्वर कठोर हो चुका था।
इन शब्दों से केतन मेहता एकदम से अचंभित हो गए। किंकर्तव्यमूढ कि सी स्थति हो गई थी उनकी। शब्द हलक में अटक कर रह गये। मुंह खुला का खुला रह गया। उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ जो उन्होंने सुना था। "ये क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? कब हुआ"। पचासों प्रश्न गूंजने लगे थे उनके जेहन में।
अचानक उनके दिमाग में पांच साल पूर्व की घटना फिल्म की तरह घूमने लगी।
" मुग्धा की मां, जरा ये फोटो देखकर बताओ तो कि लड़का कैसा है।"? केतन मेहता ने मुस्कुराते हुए रहस्यमय अंदाज में कहा था।
"मुग्धा के लिए देखा है क्या।"? मिसेज मेहता सिरा ढ़ूढने की कोशिश करने लगीं।
"और किसके लिए देखूंगा ? मुग्धा के अलावा और कोई बेटी है अपनी"? थोड़ा चिढकर मेहता जी ने कहा।
"अरे बाबा मैं तो मजाक कर रही थी। आप भी न एक बार चालू हो जाते हो तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लेते हो।" मिसेज मेहता खिलखिलाते हुए बोलीं।
"अमरीका में पढ़ाई कर रहा है। ऊंचे खानदान का है। इसके पिताजी के पास कई फैक्ट्री हैं। करोड़ों की प्रोपर्टी है। इससे अगर मुग्धा की शादी हो जाये तो मुग्धा वहां राज करेगी , राज"मेहता जी उछलते हुए बोले।
मिसेज मेहता फोटो देखते हुए बोली"देखने में तो स्मार्ट दिख रहा है लड़का। पहनावे और एटीट्यूड से भी खानदानी लग रहा है। मुझे तो पसंद आ गया है मगर एक बार मुग्धा को भी तो पसंद आना चाहिए ना।" ? प्रश्नवाचक निगाहों से मिसेज मेहता ने देखा।
"अभी तो आपसे पूछा जा रहा है , मैडम। आप ओ के करोगी तो ही मुग्धा से पूछूंगा ना" । मेहता जी मन ही मन खुश होते हुए बोले।
इतने में मुग्धा बैडरूम से निकल कर बाहर लॉन में आ गई थी। मिसेज मेहता ने वह फोटो उसे देकर पूछा"जरा देख के बता कि लड़का कैसा है।" ?
मुग्धा ने फोटो पर एक सरसरी सी निगाह डाली और बिना अपने हाथ में लिए हुए कह दिया"देखने में तो अच्छा है।"
मिसेज मेहता खुशी से उछल पड़ीं।"अजी सुनते हो , मुग्धा को पसंद है लड़का"मिसेज मेहता की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा।
मुग्धा एकदम से चौंकी। यह माजरा क्या है ? जब उसने दिमाग पर जोर देकर सोचा तब उसे कुछ कुछ समझ में आने लगा कि फोटो उसे क्यों दिखाया जा रहा था ? वो झल्ला कर बोली
"मम्मी , सुबह-सुबह से ये क्या लेकर बैठ गये हो ? और कोई काम नहीं है क्या।"?
"बेटा , अब तू बाइस साल की हो गई है। शादी तो करनी ही होगी ना। अच्छे लड़के मिलते ही कहां हैं आजकल ? शराबी , जुआरी भरे पड़े हैं। तकदीर से अगर एक अच्छा रिश्ता आया है तो उसे हाथ से क्यों जाने दें।"? मिसेज मेहता ने उसे समझाते हुए कहा।
"मुझे नहीं करनी शादी वादी अभी"मुग्धा गुस्से से बोली।
अब केतन मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा
"तेरी मम्मी की शादी तो उन्नीस की उम्र में ही हो गई थी, बेटा। अब तू कोई बच्ची तो है नहीं, बाईस की हो गई है। शादी करके अपना घर बसाने की उम्र हो गई है तेरी। किस्मत से एक बढ़िया रिश्ता मिल गया है वरना ऐसे रिश्ते मिलते कहां हैं आजकल।"?
" मैं कहना नहीं चाहती थी मगर आप दोनों मजबूर कर रहे हैं मुझे कहने के लिए। मुग्धा ने धीमी आवाज में कहा
मेहता जी तुरंत बोले।"कहो कहो , क्या कहना चाहती हो"।
मुग्धा थोड़ी देर खामोश रही फिर नीची गर्दन करके बोली
।"मैं किसी से प्यार करती हूं।"
मिसेज मेहता चहकते हुए बोलीं"अरे वाह , ये तो बहुत अच्छी बात है। तूने पहले क्यों नहीं बताया , पगली ? कौन है वो खुशनसीब जिसने हमारी गुड़िया का दिल जीत लिया है।"?
"जावेद" । मुग्धा ने सपाट कह दिया।
इतना सुनते ही घर में एकदम से सन्नाटा छा गया। कोई कुछ नहीं बोला। पांच मिनट के बाद केतन मेहता ने धीरे से कहा
"बेटा , शादी कोई बच्चों का खेल नहीं है। बहुत सोच समझ कर फैसला करना पड़ता है शादी का। पूरी जिंदगी का सवाल है और आगे आने वाली पीढ़ियों का भी प्रश्न जुड़ा होता है इससे। हंसीमजाक का विषय नहीं है यह" ।
" जानती हूं। इसलिए फैसला भी बहुत सोच समझ कर किया है। हालांकि फैसला बहुत कठोर है लेकिन ये मेरा आखिरी फैसला है"मुग्धा का स्वर अब कठोर हो रहा था।
थोड़ी देर फिर से शांति व्याप्त हो गई। फिर
केतन मेहता ने जावेद के बारे में पूछा तो उसने बताया कि चौड़ा रास्ता में उसकी किताबों की दुकान है। जब वह कॉलेज में पढ़ती थी तो एक दिन किताब खरीदने उसकी दुकान पर गई थी। उस दिन से जावेद से जान पहचान हुई जो बाद में प्यार में बदल गई। हमने संग जीने मरने की कसमें खाई हैं। हम शादी करने वाले हैं"।
"लेकिन बेटी, उसका धर्म अलग है, खानपान अलग। रहन सहन , रीति-रिवाज , समाज सब अलग हैं। कैसे एडजस्ट कर पायेगी तू सब। देख, जल्दबाजी में कोई फैसला मत करना वरना जिंदगी भर पछताना पड़ जायेगा" ? केतन मेहता ने समझाने के अंदाज में कहा।
"प्यार हो तो सब कुछ बदल सकता है। मैं सब एडजस्ट कर लूंगी"मुग्धा ने ठान लिया था।
"पर मैं तुझे मौत के मुंह में तो नहीं धकेल सकता हूं ना। मैंने बहुत कुछ सुना है उन लोगों के बारे में। वहां स्त्रियों को आजादी नहीं है। जब चाहे तीन तलाक़ बोलकर पीछा छुड़ा लेते हैं वे। और चार चार शादी ! भला ये भी कोई बात है ? एक बार जरा ठंडे दिमाग से सोचकर देख"।
"वो ऐसे नहीं हैं। बहुत अच्छे हैं वो। हम उन्हें पिछले तीन सालों से जानते हैं। औरों के जैसे नहीं हैं वो। वो हमें बहुत प्यार करते हैं। अपनी जान से भी ज्यादा। हमें जिंदगी भर खुश रखेंगे। मैं उन्हें अच्छे से जानती हूं। हमने सब सोच समझ कर ही फैसला किया है। अब तो आपको ही सोच समझ कर फैसला करना है"।
माहौल थोड़ा खराब हो गया था। मेहता जी और मिसेज मेहता ने बहुत कोशिश की मुग्धा को समझाने की मगर उसके सिर पर तो "इश्क का भूत" सवार था। वो तो इश्क में अंधी हो चुकी थी। अंधे आदमी को भला बुरा कुछ दिखाई देता है क्या ? फिर मुग्धा को कैसे दिखाई देता।
केतन मेहता ने घोषणा कर दी कि वो जावेद के साथ उसकी शादी किसी भी स्थिति में नहीं करेगा। लेकिन मुग्धा तो इश्क में आकंठ डूबी हुई थी । इसलिए वह दस बीस लाख रुपए के जेवर और नकदी लेकर घर से भाग गई और जावेद के पास आ गई।
उसने जैन धर्म त्याग कर इस्लाम धर्म अपना लिया और अब वह मुग्धा से जुनैदा बन गई थी। जावेद की दुकान छोटी सी थी। बस रोजी रोटी लायक ही कमा पाता था। मुग्धा उर्फ जुनैदा को तो ऐशोआराम की लत पड़ी हुई थी मगर यहां तो रोटियों के भी लाले पड़े हुए थे। इश्क सपनों में जीना सिखाता है जबकि हकीकत कुछ और ही होती है। जुनैदा को अब हकीकतों से रूबरू होना पड़ रहा था। लेकिन उस पर तो अभी भी इश्क का भूत सवार था , इसलिए तंगहाली में भी मजे से रह रही थी वह।
एक दिन जुनैदा को ज्ञात हुआ कि जावेद तो पहले से ही शादीशुदा हैं और उसकी एक पत्नी रूखसाना और है जो जयपुर में ही रहती है। जब उसने यह बात जावेद को बताई तो उसने कहा"इसमें आश्चर्य की बात क्या है ? हमारे यहां तो ऐसा होता ही रहता है। हम लोग तो चार चार निकाह पढ़ सकते हैं। और अभी तो मेरा दूसरा ही निकाह हुआ है"उसने मुग्धा की ओर ध्यान ही नहीं दिया।
अब जुनैदा को अपने पिता केतन मेहता के वे शब्द याद आ रहे थे जो उस दिन उन्होंने कहे थे। मगर तब तो उस पर इश्क का भूत सवार था , इसलिए भला बुरा सोचने की स्थिति में वह थी ही नहीं। मगर अब क्या हो सकता है ? किसी ने सही कहा है कि जब कोई अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार हो तो उसके पैर कटने से कौन बचा सकता है ? मुग्धा ने अपनी बरबादी को खुद चुना था। लाख मना करने के बावजूद। अब तो उसे भुगतना ही था।
अब जुनैदा और जावेद में अक्सर झगड़ा होने लगा। जुनैदा अलग मकान में रहने लगी थी। जावेद का तो सारा प्लान ही चौपट हो गया था। केतन मेहता के और कोई बेटा बेटी तो थे नहीं। अरबों रुपए की संपत्ति मुग्धा को ही मिलने वाली थी। इसलिए उसने यह सब चक्कर चलाया था। बड़ी मछली पर दांव ऐसे ही नहीं लगाया था जावेद ने। मछली फंस तो गई मगर मुग्धा ने घर छोड़कर उसके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया था। अब केतन मेहता की संपत्ति में से कुछ भी मिलने वाला नहीं था उसे। इसी बात से सिर चकरा रहा था जावेद का। जावेद तो मुग्धा का शरीर और उसकी दौलत दोनों चाहता था मगर मुग्धा ने सब गुड़ गोबर कर दिया। जावेद ने मुग्धा को जी भरकर।"भोग" लिया था इसलिए अब जुनैदा की आवश्यकता ही नहीं थी जावेद को।
केतन मेहता होश में आये। मिसेज मेहता को साथ में लेकर वे घटना स्थल पर पहुंचे। वहां पर एक महिला का शव पड़ा हुआ था। आधा जला हुआ। दोनों उसे देखकर फफक-फफक कर रो पड़े। वह लाश मुग्धा / जुनैदा की ही थी।
मुग्धा को अपना प्यार मिल गया था। वह प्यार जिसके लिए वह पागल हो रही थी। अब उस प्यार के साथ साथ वह कब्रिस्तान में चिरनिंद्रा में सो रही है।
बड़े लोगों ने सही कहा है कि इश्क का भूत जब सिर चढ़कर बोलता है तो फिर कुछ भी दिखाई नहीं देता है। अपनी और अपने खानदान की बरबादी भी।
पुलिस ने जावेद को गिरफ्तार कर लिया। कुछ प्रगतिशील संगठनों, लिबरलों, वामपंथियों और मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया कि उसे अल्पसंख्यक होने के कारण झूठा फंसाया जा रहा है। एक समुदाय विशेष के साथ भेदभाव किया जा रहा है। नारीवादी संगठन जो दंभ भरते हैं कि वो महिलाओं के हक के लिए लड़ते हैं , कहीं चुल्लू भर पानी में डूबे पड़े रहे। मुग्धा के इंसाफ के लिए कोई आगे नहीं आया क्योंकि वह बहुसंख्यक समुदाय की थी। इस देश में न्यायपालिका भी केवल अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करती है, ऐसा बहुसंख्यक लोग कहते हैं।
मुग्धा की आत्मा न्यायपालिका के हथौड़े तले दबी दबी कराह रही है।
