इंतजार
इंतजार
जद्दोजहद भरी इस दुनिया में हर कोई अपना अपना हिस्सा लगाने में व्यस्त हैं आप क्या हो ? कहा जा रहे हो ? क्या करते है ? क्या करने वाले हो ? आपके साथ कल क्या हुआ ? क्या आज होने वाला है ? किसी को कोई मतलब नहीं है लेकिन इस रामु को पता नही किससे उम्मीद है जो यहां रहकर अभी भी इंतजार कर रहा है। आज से लगभग तेरह–चौदह साल पहले जब मैं यहां आया था तब ये अपने बच्चो को अच्छी पढ़ाई दिलवाने के लिए रात को ग्यारह–ग्यारह बजे तक उस पोल के पास रेहड़ी लगाता था और अपने सभी ग्राहकों मुस्कुराता हुआ समोसे खिलाया करता था। इसके हाथों में इतना जादू था कि एक बार इसके हाथों से बने समोसे को जो खा लेता था वो बार–बार यहां आकर समोसे खाना चाहता था।
दो लड़के हैं इनके जो उस समय इस शहर की टॉप टेन स्कूलों में से एक रूमादेवी इंटरनेशन स्कूल में पढ़ते थे। भगवान कभी किसी को इतना मतलबी भी ना बनाए कि आज जिस जगह खड़े है उस पर पहुंचाने वालें मां बाप को ही ठोकर मार दे। आज इनका बड़ा लड़का देहली जैसे बड़े शहर में बड़े सरकारी पद पर कार्यरत है और छोटा बेटा एलएनटी जैसी इंडिया की दिग्गज कम्पनी में काम कर रहा है। दोनों इतने बड़े हो गए है कि अब अपने इस बाप की कोई फिकर भी नहीं करता और इसे देखो ये आज भी वही का वही है इसने सोचा होगा जब बच्चे बड़े होकर कमाने लगेंगे तब आराम की जिन्दगी जिऊंगा लेकिन इसकी किस्मत ...। पता भी नहीं इसे इसकी किस्मत कहूं या लायक बेटों की नाकामी ...