इंसाफ की तलाश में
इंसाफ की तलाश में
त्रिभुवन जब गिरफ्तार किया गया तब वह तेईस(23) वर्ष का था। त्रिभुवन बिहार राज्य के पटना जिले के सैदाबाद गाँव का का रहने वाला था।उसपर आरोप था कि उसने किसी को गंभीर चोट पहुँचाई।
मुकदमें की सुनवाई के दौरान उसे मानसिक रूप से काफी अस्वस्थ पाया गया और साथ ही पहले के अपेक्षा उसे तनाव में भी देखा गया।मानसिक चिकित्सा के लिए उसे जिले के सदर अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। वहाँ उसका सफलतापूर्वक इलाज किया गया।
डॉक्टरों ने जेल अधिकारियों को दो बार ( 1957, 1974) चिट्ठी भेजी कि त्रिभुवन अब स्वस्थ है और उस मुकदमा चलाया जा सकता है। लेकिन किसी ने भी उस पर ध्यान नही दिया। त्रिभुवन न्यायिक हिरासत में बना रहा। त्रिभुवन को जुलाई 2001 में जेल से छोड़ा गया।उस समय वह 78 वर्ष का हो चुका था। इस प्रकार वह 55 वर्ष तक हिरासत में रहा इस दौरान उसके मुकदमें की एकबार भी सुनवाई नहीं हुई।
जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा नियुक्त एक टीम ने राज्य में बंदियों का निरीक्षण किया तब जाकर त्रिभुवन को स्वतन्त्र होने का अवसर मिला।
यह कहानी काल्पनिक नामों पर आधारित है जो हमारे बीच सच्ची घटना को बयां करती है।
