इजहारे इश्क
इजहारे इश्क
तेरा इश्क दिल में, बताऊं मैं कैसे !
इजहारे- ए- इश्क, करूं मैं कैसे ?
आंखों मैं बसकर भी अदृश्य रहे हो !
सुकून - ए - कल्ब हो तुम! तुम्हे देखूं मैं कैसे।
न मेरे महबूब, कभी तुमको लिखा !
जो लफ्ज़ ही नहीं है, सुनाऊं मैं कैसे ?
कभी तुझसे दूर मैं, कभी मुझसे दूर तू
अपने बीच ये दूरियां, मिटाऊं मैं कैसे ?
- -तेरा इश्क दिल मैं
तु मुझे बस अपना, रहनुमा मानती है।
किन्तु तूं है मेरी राधा, बताऊँ मैं कैसे !
तेरी सारी मजबूरियां, भी मै देखता हूं।
पर अपने आपको, समझाऊं मैं कैसे !
- - तेरा इश्क दिल में,
है तेरी रज़ा ही, जो हम ना मिले हैं।
तो तेरी रज़ा को नमुकम्मल होने दूं कैसे !
मेरी तो रूह मै है, तेरा रूप राधा !
इसे छोड़ कर पास, आऊँ मैं कैसे ?
- - तेरा इश्क दिल में है,

