है तेरी रज़ा ही, जो हम ना मिले हैं। तो तेरी रज़ा को नमुकम्मल होने दूं कैसे ! है तेरी रज़ा ही, जो हम ना मिले हैं। तो तेरी रज़ा को नमुकम्मल होने दूं कैसे !