गजल
गजल
तेरी इस जीस्त से निकल जाऊंगा,
किसी उदास साम में ढल जाऊंगा l
तू जो मुकर गया है हर वादे से अपने,
देखना एक दिन मैं भी बदल जाऊंगा l
तू मत बता मुझे अपनी मजबूरियां,
तुझे इल्म है कि मैं पिघल जाऊंगा l
चाहे कितना भी तड़पूं इक दीद वास्ते
तू मत लौट के आना, मैं संभल जाऊंगा ll
:- शिवांश पाराशर "राही"✍️