इज़हार
इज़हार
रेलगाड़ी स्टेशन से चली तो मिताली ने ठण्डी आह भरी।उन भयानक यादों से पीछा छुड़ाने के लिए वो खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगी। पर भला यादें भी कभी किसी का पीछा छोड़तीं हैं। कहते हैं विवाह सात जन्मों का बंधन होता है। परन्तु यदि यह बंधन गले का फंदा बन जाये तो क्या इसे झेलते रहना ज़रूरी है? हमारे समाज मे नर और नारी के लिए इस समस्या से निकलने के दो अलग उपाय हैं। पत्नी अगर पसंद की न हो तो पति बहुत ही सरलता से उसका त्याग कर इस वैवाहिक बंधन से मुक्त हो सकता है। परन्तु, पत्नी अगर ऐसा करे तो, कुलटा, चरित्रहीन और न जाने किन - किन नामों से जानी जाती है। मिताली के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। परन्तु, उसने भी ठान ली थी की वो हार नहीं मानेगी। समाज के बनाए इन अन्धे नियमों से जूझने के लिए कमर कस ली थी उसने।
रेलगाड़ी की सीटी की आवाज़ ने उसका ध्यान आर्कषित किया और उसने देखा की गाड़ी किसी स्टेशन पर रूक गयी है। उस स्टेशन से एक आदमी रेल के ड़ब्बे में दाखिल हुआ और मिताली के सामने वाली सीट पर बैठ गया। उसे देखते ही मिताली के दिल की धड़कन मानो पल भर के लिए रूक गयी।
"ये तो राघव है न?" मिताली ने उसे ध्यान से देखते हुए मन ही मन सोचा, "हाँ... है तो वही। पर क्या वो अब मुझे पहचानेगा? भूल तो नहीं गया होगा मुझे?"
बीते दिनों की मधुर यादें, हवा के झोकों तरह मिताली के मन को छू कर गुज़रने लगीं। राघव काॅलेज में मिताली के साथ पढ़ता था। बड़ा ही शांत, सुशील और बुद्धिमान लड़का था। हर परीक्षा में अव्वल आता था। अई०ए०एस अफसर बनने के सपने बसे थे उसकी आँखों मे। फिर पता नही कब उन आँखों में मिताली बस गयी। राघव बस चुप-चाप उसे देखता रहता। मिताली जानती थी की राघव की उन खामोश आँखों में उसके लिये प्यार का सागर उमड़ रहा था। परन्तु वह चाहती थी की वो अपने प्यार का इज़हार शब्दों में करे। और इसी लिए वो जानकर भी अनजान बनी रही। बेचारा राघव अपने प्यार का इज़हार करने की हिम्मत कभी जुटा ही न सका। बस यहीं दोंनो किस्मत से मात खा गये और मिताली की शादी उसके पिता ने एक बड़े धनिक उद्योगपति रतीश से कर दी।
राघव अपना सामान रख कर अपनी सीट पर बैठा ही था की उसकी नज़र सामने बैठी मिताली पर पड़ी। उसकी आँखे फिर प्यार की चमक से रोशन हो उठी।
"तुम मिताली हो न?" हँसी की एक हल्की सी रेखा ने उसके आर्कषक चेहरे की रौनक और अधिक बढ़ा दी। "पहचाना मुझे? मै..."
"राघव हूँ।" मिताली ने उसका वाक्य पूरा कर दिया और वे दोनो खिलखिलाकर हँस पड़े।
"कैसी हो तुम, मिताली?"
राघव के उस प्रश्न में इतना स्नेह था कि मिताली का मन हुआ कि वो उसे सब कुछ सच-सच बता दे। कह दे, की उसकी शादी एक ऐसे स्वार्थी और लोभी इंसान से हुयी थी जिसको मिताली से रत्ती भर भी प्यार नहीं था। रतीश को सिर्फ धन कमाने और सफल बनने का मोह था। दिन भर वो ऑफिस के काम में व्यस्त रहता। और रात भर पार्टियों और मदिरापान में डूबा रहता। देर रात घर आता और मिताली के तन का उपयोग अपनी संतुष्टि के लिए करता। यही था मिताली का जीवन। पर मिताली इसे अपनी किस्मत समझ कर स्वीकार कर लेती और यूँही अपना सारा जीवन व्यतीत कर देती अगर उसे यह न पता चलता की रतीश की कई प्रेमिकायें है। एक पत्नी ऐसा घोर अपमान कैसै सहती? वह रतीश से रिश्ता तोड़ कर अपने घर वापस आ गयी। परन्तु उसके परिवार ने उसके इस फैसले की निन्दा की और उसे रतीश के पास वापस जाने को मजबूर किया। मिताली को यह मंज़ूर न था। उसने अपने परिवार से रिश्ता तोड़ लिया और अलग रहने लगी। उसने अखबार मे एक गवर्नस के लिये दिया गया विज्ञापन देखा और आवेदन पत्र भेज दिया। उसे वह नौकरी मिल गयी और वो वही जा रही थी।
"क्या हुआ, मिताली?" राघव ने मुस्कुराते हुए पूछा, "तुमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया।"
"मैं..."
इससे पहले की मिताली कुछ कह पाती एक चायवाला आ गया।
"चलो एक कप चाय हो जाये।" राघव ने मिताली से कहा और पैसे निकालने के लिए बटुआ खोला।
मिताली ने देखा की राघव के बटुए में एक लड़के की तस्वीर थी जो 3 - 4 साल का था।
"शायद, राघव का बेटा है।" मिताली ने सोचा और तय किया की वो राघव को सच नहीं बतायेगी।
दोनो में बातें होने लगीं। मिताली ने अपने पति रतीश के साथ अपने सुखी जीवन का बढ़ा -चढ़ा कर वर्णन किया। राघव खुश था कि मिताली को अच्छा जीवनसाथी मिल गया और वो उसके साथ खुश है। राघव के वैवाहिक जीवन के बारे में न मिताली ने पूछा, न ही उसने स्वयं बताया। दोनो अगले स्टेशन पर उतर गये और अपनी -अपनी राह चल दिये।
मिताली अखबार में दिये पते पर पँहुच गयी और दरवाज़े की घण्टी बजायी। एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला।
"आपने एक बच्चे के लिये गवर्नस का विज्ञापन दिया था न?" मिताली बोली, "मैं उसके लिये आयी हूँ।"
"आइए ," वो महिला मिताली को घर के अंदर ले गयी। "मैं आपको चिंटू से मिलाती हूँ। चिन्टू...देखो तुम्हारी नयी गवर्नस आयी है।"
3 साल का एक लड़का दौड़ता हुआ आया जिसे देख कर मिताली दंग रह गयी। ये वही लड़का था जिसकी तस्वीर उसने राघव के बटूए में देखी थी।
"2 साल पहले इस बेचारे के माँ-बाप एक कार दुर्घटना में मारे गये।"
"क्या?" मिताली चौंक गयी, "क्या ये राघव का बेटा नहीं है?"
"नही," वो महिला बोली, "ये उनकी बहन का बेटा है। राघव बाबू ने शादी न करने का प्रण ले रखा है। सुना है काॅलेज के दिनो में किसी लड़की से प्रेम करते थे। उसकी शादी किसी और से हो गयी तो उनका दिल टूट गया। आज भी वे उसी लड़की से प्यार करते हैं , इस कारण कभी किसी और से शादी न कर पाये।"
सुन कर मिताली की आँखें भर आयी। उसने ठान ली की अब कभी भी वो न तो राघव से झूठ बोलेगी न उसके प्यार को नज़रअंदाज़ करेगी। राघव करे न करे, अब वह स्वयं राघव से अपने प्यार का इज़हार करेगी।