हूँ तो, मैं एक अम्मा ही

हूँ तो, मैं एक अम्मा ही

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यहाँ की भाषा में हमें शरणार्थी कहा जाता है। हमें रहने के लिए जो जगह दी गई है उसे कैंप कहा जाता है। यहाँ आये हमें दो साल हुए हैं। अपनी और अपने छह छोटे बच्चों के पेट भरने के लिए मुझे कैंप से निकल कर खेतों में मजदूरी तलाश करनी होती है। जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती उस दिन अपने दो दूध मुहें बच्चों (लाचारी दिखाने) को लेकर मैं भीख माँगा करती हूँ।

आज, मैं आधे घंटे से उस दुकान पर खड़ी हूँ, जहाँ भीख में पहले मुझे 5 रू का सिक्का भी मिला है। लेकिन दुकान पर बैठे आदमी का ध्यान मेरी तरफ नहीं है। वह तन्मयता से टीवी देख रहा है। अब, मैं भी वही देखने- सुनने लगी हूँ। उस आदमी का ध्यान अब, वहाँ से हटा है, उसने दया से देखते हुए आज मुझे 10-10 के दो सिक्के दे दिए हैं। बीस रूपये में खाने का बहुत सा बासा सामान मिल गया है। जिसे, मैंने कैंप में आ कर अपने बच्चों में बाँट दिया है। थोड़ा मैं लेकर पास के एक वृक्ष के नीचे आ बैठी हूँ।

धीरे धीरे खाते हुए मैंने टीवी पर जो देखा सुना है उसके बारे में सोच रही हूँ। उस पर, यहाँ के पुलिस वालों ने चार लोगों को मार दिया दिखाया जा रहा था, जिन्होंने एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने के बाद उसे मार डाला था। उसे सोचते हुए मुझे अपनी याद आ गई थी।

वह पहला देश था, जहाँ मैं पैदा हुई थी। मालूम नहीं मैं कितने साल की हुई थी। दो तीन बार, उस वक़्त, कुछ कुछ दिनों में मुझे खून आने लगा था। जो कुछ दिन बाद अपने

आप ठीक हो जाता था। अम्मा को बताया था, उसने कहा था ठीक हो जाएगा। ऐसे समय वह पुराने फ़टे कपड़े मुझे दे देती थी। जिसे मुझे बाँध लेना होता था।

तब शायद यह चौथी बार हुआ था। उस दिन ऐसे ही कपड़े बाँधे थे और अम्मा के साथ खेत पर काम कर रही थी। कपड़ा बदलने में थोड़ी दूर आई थी।

छिपकर मैं, यह कर रही थी। तब मेरे बाप जैसी उम्र का एक आदमी आया था। उसने मेरा मुहँ बंद कर जो काम किया था, वैसा मैंने, कभी कभी अपनी अम्मा के साथ बाप को करते देखा था। मेरे साथ ऐसा होते हुए और लोगों ने देखा था। मुझे दर्द बहुत हो रहा था फिर भी, तीन ऐसे और लोगों ने यही मेरे साथ किया था। 

मुझे होश नहीं रहा था। फिर आधे होश में मालूम हुआ था, अम्मा आई थी ढूँढ़ते हुए। मुझे लादा था और घर ले गई थी। इस बार खून बंद होने में बहुत दिन लग गए थे। मैं घर में पड़ी रहती थी।

टीवी पर देखी घटना से अलग जबरदस्ती करने वालों ने मुझे जलाया नहीं था। अब समझ आता है मुझे, उस देश में हमारे साथ ऐसा करने वाले को सजा का डर नहीं होता था। इसलिए मेरी जान नहीं ली गई थी। मेरी अम्मा और बाप ने भी कहीं शिकायत नहीं की थी। ना ही वहाँ की पुलिस ने उन जबरदस्ती करने वालों मारा था।

जब मै ठीक हुई थी। मेरे बाप ने, मेरे से बहुत बड़े आदमी के साथ, मेरी शादी कर दी थी। वह, कहता था मुझे प्यार कर रहा है। मगर करता वैसी ही जबरदस्ती था जैसी, उन चार लोगों ने की थी।

मैं, बिलकुल भी पढ़ी लिखी नहीं हूँ। इसे प्यार कहूँ या जबरदस्ती जिसमें, मैं छह औलादों की अम्मा हो चुकी हूँ। यहाँ कैंप में मेरे से मेरी उम्र पूछने पर मैं जबकि, बता नहीं सकी तो पूछने वाले ने मुझे अठारह साल की बताया था और कॉपी में लिख लिया था।

इस बीच शादी होने से लेकर अब तक, हम देश देश भटकते हुए, इस तीसरे देश में आये हैं। कहते हैं, हम यहाँ शरणार्थी हैं। इस देश की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा होने वाली है, अतः हमारे लिए यहाँ जगह नहीं है। हम सबको वापिस जाना पड़ेगा। मैं बिना पढ़ी लिखी 18 साल में छह बच्चों की हुई अम्मा को, यह समझ नहीं आता कि यह क्या हो रहा है मेरे साथ ? जिस देश मैं हम रहते थे, वहाँ से हमें खदेड़ा गया। दूसरे देश से भी हमें खदेड़ दिया गया। यहाँ कहते हैं, हमारे लिए यहाँ भी जगह नही ।

हालात ये हैं तो, मुझे पैदा क्यों किया गया ? मेरे सिर्फ 18 साल की होते तक ही, प्यार या जबरदस्ती कहूँ, मुझ से, छह औलादें क्यों पैदा करवा दी गईं हैं। मैं तो, भूखी रह लूँ, रहते ना बने तो किसी कुएं मै कूद मरुँ। मगर इन मासूम को कैसे छोड़ूँ ? प्यार मुझे दुनिया में किसी से नहीं ! लेकिन कैसी है मजबूरी ? मेरी असहाय हालत में, मुझसे प्यार के नाम पर जबरदस्ती पैदा किये गए, इन छह मासूमों के लिए! मैं, कैसा अजीब है यह मन मेरा ? यह भी नहीं मान सकती कि इनसे मुझे प्यार नहीं!मैंने सुना है बहुत सुंदर सुंदर सड़कें हैं, दुनिया में बड़े बड़े आलीशान घर हैं। बहुत बहुत पढ़े लिखे एक से बढ़कर एक कई महान लोग हैं। बहुत दौलत है इनके पास। 

अरे ओ दौलत वालों, अरे ओ पढ़े लिखे लोग, अरे ओ आलीशान बँगलों में रहने वालों -जरा मेरी सोचो। मुझे पैदा होने से रोको। मुझसे कई कई औलादें पैदा होने से रोको।

और ऐसा अगर रोकने की ताकत नहीं तो, मुझे वह देश दे दो, एक छोटा घर दे दो। जहाँ मुझे भले कोई प्यार करने वाला न हो, मगर जबरदस्ती करने वाला कोई न हो। मुझे निकालो उस आदमी के चँगुल से जो कहता घरवाला हूँ तेरा। कहता है प्यार, और करता है जबरदस्ती मुझ पर, और साल बीतते न बीतते एक और औलाद रख देता है मुझ पर। 

दया करो मुझ पर, पैदा हो गए जो मुझसे उन्हें प्यार न करूं तो क्या करूं - अम्मा हूँ इनकी।

मेरी तंद्रा में यह सब चल ही रहा है कि अब तीन बड़े बच्चे जो चल लेते हैं, मुझे ढूँढ़ते हुए यहाँ आ गए हैं। मैं शिकवे शिकायत और नहीं रख सकूँगी इन्हें देखना है मुझे अब -

ओ दौलत वालों, बँगलों में रहने वालों, पढ़े लिखे महान लोगोंतुम और तुम्हारी औलादें सलामत रहें! तुम्हें तुम्हारे जो भी हैं देश मुबारक रहें!

मेरे मन में आये अनर्गल विचारों के लिए मुझे माफ़ करना ! अभी छह हैं ! कुछ और हो जायेंगे, शायद ! चाहे बेइज्जत करो ! चाहे लाचार करो ! चाहे हवस अपनी मुझ पर शांत करो !   

लेकिन हूँ तो, मैं एक अम्मा ही, इन्हें पालना होगा मुझे।


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