हरसिंगार
हरसिंगार
हमनें अपने घर माड्यूलर किचन बनवाने का काम लगवाया, मेरे पति ने कारीगर से सब तय किया उसका एक दो जगह पर काम किया था उसके फोटो देखें, हमनें कई करीगरों से बात की थी मगर रामदीन सही लगा एक तो उसके काम में सफाई और साफगोई पसंद आई, पैसे भी वाजिब तय हुए।
अगले दिन आने का कह कर चला गया हम से कह गया आप खाना बना कर किचन ख़ाली कर देना में शाम टाइम से काम बंद कर दिया करुंगा, दूसरे दिन उसके साथ आठ साल का बेटा आने लगा, वो सीढ़ी पर बैठ कर खेलता रहता मैंने देखा वो कुछ कीलें लेकर आता था छोटी, बड़ी साइज़ की उन को अलग करता और अपने पिता को देकर आ जाता।
मैंने उस बच्चे से बातचीत की तेरा क्या नाम है उस उस बच्चे ने तपाक से जवाब दिया मेरा नाम हरसिंगार है मैंने छेड़ते हुए कहा ये कैसा नाम है, नाम थोड़ी होता है तो वो बड़ी संजीदगी से बताने लगा अरे वो क्या है मैं जब पैदा हुआ तो बहुत कमज़ोर था मेरी दादी कहती रामदीन ये तो *हरसिंगार*के फूल की तरह है रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है।
ईश्वर जाने ये बच्चा बचेगा भी या नहीं इसिलिए मेरी दादी ने ये नाम रख दिया । दादी सुबह-शाम यहीं प्रार्थना करती इसको जीवन-दान देना हे'ईश्वर बस धीरे-धीरे मैं पनप गया। दादी यहीं कहती थी मेरी माँ से देख तो पुष्पा ये तो हरसिंगार ताकतवर हो चला है।
मुझे बड़ा इंट्रेस्टिंग लगी उसकी बातें मैं रोज़ देखती वो कीलों से कुछ न कुछ कलाकृतियां उकेरता रहता कभी सब निकाल देता।
और फिर से कुछ नया बनाने लगता, मैंने उसके पिता से कहा आप इसको क्यों लातें है तो रामदीन का जवाब था काम की बारीकियाँ सीखेंगा मेडम, इसको पढ़ने भेजो अरे नहीं मेडम हम गरीब है, पढ़ाई के खर्चे नहीं उठा पाऊंगा । कभी काम मिलता है कभी नहीं।परिवार का गुज़ारा नहीं होता है।
मैं हरसिंगार को कभी आलू के पराठे बनते तो उसको प्यार से खाने को देती, कभी नाश्ता दे देती मुझे हरसिंगार से कोई अनदेखा सा लगाव हो गया था।
हरसिंगार की भोली नटखट बातें अब वो मुझसे खुद ही बात करने की कोशिश करने लगा था,
कभी कहता मैडम जी आपको पता है मैं ये क्या बना रहा हूँ "मैं हंस कर कहती अरे नहीं मुझे कैसे पता होगा, वो कहता हां जब ही तो कहूँ मैं ये कीलों पर धागे से कुछ बना रहा हूँ बन जाएगा तो बताना कैसा लगा।
एक दिन मैंने देखा उसने कार्ड बोर्ड पर कीलों को करीने से ठोक कर हरसिंगार ने रंग-बिरंगे धागे को ऐसा लपेटा था कि बहुत सुन्दर कलाकृति बन गई थी *पतंग*की जैसे कई रंग को की पंतग हो मैं तो हैरान रह गई, मैंने उसके पिता से कहा तुम इसकी ये कृति मुझे दे दो मै अपने ड्राइंग रुम में लगाऊंगी।
वो दोनों जैसे ही काम खत्म करके जाने लगे उस वक़्त मैंने 100 ₹ हरसिंगार के हाथ में दिए तो उसने झट मेरे पैर छू लिए, मैंने कहा नहीं पैर मत छूओ, उसने कहा मैडम जी ये मेरा रोज़गार है। पैसों को भी सिर से छूकर पिता को दे दिए।