हमारा खजाना
हमारा खजाना


एक गांव मे मदन और गोपाल दो भाई रहते थे। जिनमें मदन बुद्धिमान और मेहनती था जबकि गोपाल आलसी और कामचोर था। उनके पिता गांव के जमींदार थे। मरने से पहले उन्होंने बहुत सा धन इकट्ठा कर लिया और जमीन भी कम न थी।
पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों ने बटवारा कर लिया। दोनों ने जमीन और धन बराबर बराबर बांट लिया। अब बची बेचारी लाचार बूढ़ी मां। कोई भी उसे अपने पास रखने को तैयार नहीं था।
समस्या बढ़ने पर बात पंचायत तक पहुंची। सारी बात समझकर पंचों ने कहा-अगर तुम दोनों अपनी मां को साथ नहीं रख सकते तो सारी संपत्ति के दो नहीं तीन हिस्से होगे एक हिस्सा मां को मिलेगा जिससे वह अपना गुजारा करेगी। और हाँ एक बात और इनकी सेवा म
े एक परिचारिका की आवश्यकता होगी जो इनका ध्यान रखेगी।
पंचों की बात सुनकर दोनों भाइयों के पैरो तले जमीन खिसक गई।
पंचों ने कहा -अरे तुम दोनों बहुत अभागे हो जो पाल पोस कर बड़ा करने बाले को भूलकर धन दौलत के पीछे भागते हो। हमारा सच्चा खजाना तो हमारे माता पिता ही है जो स्वयं कष्ट उठाकर हमें एक अच्छा जीवन देने का प्रयास करते हुए अपने सारे सुख भुला देते है। तुम उन्हें ही त्याग रहे हो कैसे इन्सान हो तुम दोनों।
पंचों की बात सुनकर दोनों बहुत लज्जित हुए और अपनी गलती की क्षमा मांगी और मां को अपने साथ घर वापस ले गये।
अपने बच्चों में आए बदलाव से मां बहुत खुश हुई। मां बेटों को आज सच्चा खजाना मिल गया।