Nand Kumar

Inspirational

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Nand Kumar

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पश्चाताप

पश्चाताप

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किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे। उनका नाम धनीराम था उनका किराने का व्यवसाय था। वह बहुत मेहनती और ईमानदार व्यापारी थे। अपनी मेहनत लगन और ईमानदारी के बल पर ही उन्होंने अपने व्यवसाय को इतना बढ़ा लिया कि अब उनकी गिनती नगर के चुनिंदा व्यापारियों में होनें लगी।

धनीराम की पत्नी लक्ष्मी एक शिक्षित धर्मपरायण कुशल गृहणी थी। वह अपनें पति एवं घर परिवार का बहुत अच्छे से ध्यान रखती थी। उन दोनों की एक ही सन्तान थी जिसका नाम मुकुल है। मुकुल बहुत ही सरल स्वभाव का माता - पिता की आज्ञा का पालन करनें बाला पुत्र है। उसकी इस अच्छाई से उसके माता-पिता बेहद प्रसन्न और सन्तुष्ट हैं।

मुकुल के युवा होनें पर उसके पिता नें उसकी शादी सेठ करमचंद की पुत्री कीर्ति से करवा दी। कीर्ति अपनें पिता करमचंद की तरह घमण्डी थी। वह मुकुल के माता-पिता से अच्छा बर्ताव नहीं करती थी। मुकुल की शादी को अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि कीर्ति मुकुल से कहने लगी हमें नहीं रहना तुम्हारे माता - पिता के साथ। यह दिनभर चकचक करते रहते हैं यह न वह करो , ये न पहनो वह पहनो , धीरे बोलो। मैं इनकी रोज की चकचक से तंग आ चुकी हूं अब तुम्हें ही फैसला करना है तुम्हें इनके साथ रहना है या हमारे।

मुकुल नें कहा कि हमारे लिए माता - पिता और तुम सभी महत्वपूर्ण हो मैं तुममें से किसी को नहीं छोड़ सकता।

कीर्ति नें कहा - ठीक है तुम इन्हें नहीें छोङ सकते हमें तो छोङ सकते हो मैं अब इस घर में नहीं रहूंगी। इसके बाद कीर्ति नें फोन करके अपने पिता को बुलाया और अपने मायके चली गई।

मायके में आए अभी चार दिन ही नहीं हुए कि उनकी दोनों भाभियाँ अंजुला और मंजुला ताने देनें लगीं। ये देखो महारानी व्याह के बाद भी हमारी छाती पर मूंग दलने आ गईं। जब यहीं रहना था तो व्याह ही क्यों किया। अब इस महंगाई में इन्हें भी झेलो। कीर्ति शान्तिपूर्वक सब सहती और चुप रहती लेकिन एक दिन भाभियों के कान भरने पर उसके भाइयों नें भी कह ही दिया - अब क्या जीवन भर यहीं रहोगी। तुमने इस घर को अनाथाश्रम समझ लिया क्या ?

भाइयों व भाभियों की इन जली कटी बातों को सुनकर उसका दिल बहुत दुखी हुआ वह बहुत रोई और उसने बापस अपनी ससुराल जाने का निश्चय किया। उसनेें अपने पिता से कहा- पिता जी अब हमें हमें अपने घर जाना है।

पिता नें कहा - बेटी तुम वहाँ परेशान थी तभी तो मै यहाँ ले आया ? अब फिर .........

बात पूरी ही नही हुई कि कीर्ति नें कहा -पिता जी यह हमारी भूल थी , मैं अब उसे सुधारकर अपनें घर वापस जाना चाहती हूँ। अपने पिता करमचंद के साथ कीर्ति वापस ससुराल आ गई। सास , ससुर व पति से अपनी गलती की क्षमा माँगी। और फिर पूरा परिवार हंसी खुशी से साथ रहने लगा।


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