Nand Kumar

Inspirational

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Nand Kumar

Inspirational

उपेक्षा

उपेक्षा

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मधुर एक आठ वर्ष का बालक है । उसके ह्रदय में बाल सुलभ मासूमियत एवं अपनेपन का भाव भरा हुए है । उसके परिवार में  उसके माता पिता के साथ दादा दादी भी रहती है ।  वह अपने दादा दादी से बहुत प्यार करता है । वह प्रतिदिन बड़ो को प्रणाम करने के उपरांत ही अन्य कार्य करता है । वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है । अतः सभी उसका बहुत ध्यान रखते हैैं । 

मधुर कक्षा तीन में पढता है । वह प्रतिदिन नहा धोकर ईश्वर का स्मरण करके घर के सभी सदस्यों का अभिवादन करके नियत समय पर स्कूल जाता है । मधुर बहुत ही होनहार और बुद्धिमान छात्र है अतः स्कूल की सभी शैक्षिक गतिविधियो में बढ चढकर भाग लेता है और हमेशा अव्वल रहता है ।

मधुर के पिता एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और मां एक बैंक में क्लर्क का काम करती हैं । सुबह होते ही दोनों खा पीकर अपनें - अपनें काम पर चले जाते हैं । मधुर को स्कूल के लिए तैयार करने की सारी जिम्मेदारी उसकी दादी उठाती है । वह उसे स्कूल के लिए तैयार करती हैं तथा दादा जी उसे स्कूल छोड़कर आते । छुट्टी के समय दादा जी उसे स्कूल से घर बापस लाते । 

 स्कूल के बाद मधुर का अधिकतर समय दादा दादी के साथ ही बीतता है । वह अपने दादा दादी से बहुत प्यार करता है। साम को वह दादा जी के साथ पार्क मे खेलनेे के लिए जाता है । साम को दादी की कहानियां सुनकर ही वह सोता है।

एक दिन की बात है उसके दादा जी छत पर कपङे डालने गए तो बापस उतर रहे थे कि तभी अचानक सीढियों पर लगी काई पर पैर फिसल गया और लड़खड़ाकर गिर पड़े ।

मधुर नें देखा तो वह दादी को पुकारता हुआ भागा । पास आकर दादा जी को सहारा देकर उठाया और चारपाई तक ले आया । फिर मधुर ने अपनें पापा को फोन किया तो पिता जी ने चिकित्सक को घर भेज दिया। चिकित्सक नेें  पैर देखा और बताया कि दादा जी के जी के पैर की हड्डी चिटक गई है । फिर उप्लास्टर दादा जी के पैर पर प्लास्टर चढा दिया ।

साम को माता पिता आफिस से घर आए और खाना खाकर सो गये। कोई भी दादा जी के पास नही आया। अपने माता-पिता का  दादा जी के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर मधुर को बहुत बुरा लगा। उसनें मन ही मन निश्चय किया कि जब तक दादा जी ठीक नही होंगे हम स्कूल नही जाएंगे घर पर ही दादा जी के पास रहेगे और उनकी सेवा करेगे। 

मधुर नें घर पर रहकर दादा जी की अच्छे से देखभाल की । दवाई के साथ साथ प्यार और अपनेपन को पाकर दादा जी शीघ्र स्वस्थ हो गये।


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