"हासिल"
"हासिल"
बेहिस से आगे बढती कहानी
तरन्नुम की उम्र का आख़िरी पड़ाव है।उम्र 60 की हो गई है।"डॉक्टर फैज़ान" भी इस सफ़र में तन्हा छोड़ गए हैं।
डॉक्टर फैज़ान को गए हुए महज़ चालीस दिन भी नहीं हुए है। उम्र के इस पड़ाव पर तरन्नुम अपनी ज़िन्दगी के "हासिल" को तलाशती सी तन्हा खड़ी है....!
"बेटे रईस ने "डेडी" के जाने पर,आने की ज़हमत भी ना कि वजह थी,अमेरिका में मसरुफ़ियत बड़ा "डॉक्टर"..!जो था वहीं से अम्मी को चंद लफ़्ज़ों की तसल्ली दे कर अपने फ़र्ज़ से बरी ज़िम्मे हो गए थे।तरन्नुम लगातार रिश्ते- नातेदारों से रईस की मसरुफ़ियत का झूठा बहाना बना रही थी, पर कहीं ना कहीं तरन्नुम को दिल में कसक थी, कि आख़िरी वक़्त में अपने "डेडी" को कंधा भी ना देने आया।सुरैया की शादी लखनऊ के नवाब ख़ानदान में डॉक्टर फैज़ान ही कर गए थे।
सुरैया और डॉक्टर इक़बाल की निगाहें तोमरहूम डॉक्टर फैज़ानकी प्रापर्टी पर थीं।सारे रिश्तेदार चले गए थे।सुरैया और इक़बाल , तरन्नुम और उनके वफ़ादार (ख़ादिम)"चचा इदरीस मियाँ" और उनकी बीवी रह गए।
सुरैया ने अम्मी से ज़िक्र किया अब "डेडी"के हास्पिटल और इस कोठी का क्या करना है।तरन्नुम पथराई सी आंखो ं से उन दोनों को देखती रह गई थी।दूसरे ही पल तरन्नुम अपने को संभालती सी बोली क्या मतलब है....?
अभी डॉक्टर फैज़ान की शरिके -हयात(बीवी) ज़िंदा है।ये " हास्पिटल गरीबों और बेसहारों" के इलाज के लिए "मरहूम डॉक्टर फैज़ान" के नाम वक़्फ़ कर दूंगी... रही इस कोठी की तो ये फैज़ान मेरे नाम वसीयत कर गए हैं।जब तक में "हयात" हूँ मैं रहूंगी....।
"पर अम्मी हम आपको यहाँ कैसे अकेला छोड़ सकते हैं।आप ये सब प्रापर्टी बेच कर हमारे साथ रहें ... ! "
तरन्नुम का सीधा सा जवाब था ......"नहीं"
सुरैया और इक़बाल नाराज़ हो कर हो चले गए।
कुछ दिनों बाद रईस का फोन आया "इदरीस चचा अम्मी कहाँ है ? " बीबी जी आपका फोन है "रईस बाबा" का तरन्नुम ने कहा हां कहो ,तो उधर से सलाम के बाद अम्मी आप "सुरैया आपी" की बात क्यों नहीं मान लेतीं है।अच्छी प्रापर्टी है क्यों...?
इतना सुनना था, कि तरन्नुम ने फोन काट दिया और सोचने को मजबूर हो गई....!
ज़िन्दगी का "हासिल" क्या मिला...! बेरुख़ी, बेमुरव्वत, और बेहिस बच्चे....!