हाँ मैं जीवित हूँ
हाँ मैं जीवित हूँ
वह बूढ़ा आदमी बैंक में खड़ा होकर भुनभुना रहा था कि हाँ मैं जीवित हूँ।
मैनेजर साहब हमारा लाइफ सरटिफिकेच तो बनवा दें कम से पेंशन तो मिले, कम से कम अपना पेट तो भरूँ। अपने ही जीवित होने का इससे अधिक सबूत कया हो सकता है, पर बैंक मैनेजर जैसे बहरा हो गया था।
उसको किसी से कोई सरोकार नहीं, अपना वेतन पा ही रहा है। लोन पास करने में घूस मिल ही जाता हैं और कितना पैसा चाहिये जीवन के लिये, किसी को उस बूढञे आदमी से कोई सरोकार नहीं। बहुत देर तक बुदबुदाने के बाद भी जैसे उसका साहस जवाब दे गया और धड़ाम से जमीन पर गिर गया।
पता नहीं उसने कई दिन से खाना भी ना खाया था कि नहीं, पर हाँ जैसे ही गिरा पूरे बैंक में हड़कंप मच गयी। बैंक मैनेजर भागा- अरे देखो कौन मर गया, अब पुलिस बुलाओ झड़वाओ, फुकवाओं पर शायद दुनिया अभी भी बढ़िया लोगो से खाली नहीं है।
एक बैंक का ही मुलाजिम पानी की बोतल लेकर दौड़ा और हाँ तुंरत फुंरत पानी के छीटे से होश तो आ गया पर वह बूढ़ा बुदबुदा रहा था।
हाँ मैं जीवित हूँ, तब किसी ने पूछा दादा नाम बताओ अपना।
बोला कि मनोहर, बेटा एक ही था, बड़ी मेहनत से पढ़ाया-लिखाया पर धोखे से हमारी जायदात मकान वकान सब अपने नाम कर लिया और घर से निकाल दिया। अब बताओ सालों सरकार को अपनी सेवा दी है पर यहाँ भी अपने को जीवित कराने का कागज देना पडता है।
कहाँ जाऊँ ? चलो तो कागज तो बन गया, पेंशन भी मिल गयी। शायद छत भी मिल जायेगी पर मनोहर का जो भरोसा टूटा है वह कहाँ से आयेगा ?
कैसा परिवार कहाँ का परिवार कोई मायने ही नहीं रह गये अब इन बातों के।