हाँ मैं हिंदी माध्यम वाली हूँ
हाँ मैं हिंदी माध्यम वाली हूँ


दीप्ती और अंश की शादी को एक महीना ही हुआ था। दीप्ती का ससुराल एकदम उसके विपरीत था। दीप्ती सीधी साधी और उसके ससुराल और वहाँ के लोग एकदम हवा हवाई। वो हाई क्लास के लोग और दीप्ती मध्यम वर्गीय, दीप्ती ड्रामे और दिखावे से दूर भागने वाली लड़की थी और उसकी ससुराल में आधे से ज्यादा लोग दिखावा पसंद थे।
दीप्ती ज्यादा किसी से बोलती नहीं थी। घर में सास ससुर और पति ही थे। अंश काफ़ी सुलझे हुए थे और उन्हें भीं सिम्पल रहना ही पसंद था, जो वो पहले ही दीप्ती को बता चुके थे। कोई खास दिखावा पसंद थी तो वो दीप्ती की सासु माँ। उन्हें हमेशा अच्छा दिखना, अच्छा रहना बड़े घर, बड़ी गाड़ी, स्टाइल और स्टेटस ये ही सब पसंद आता था। पर वो दीप्ती से कुछ नहीं कहती, दीप्ती ने भी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। जब कोई आने वाला होता तो दीप्ती सासु माँ के हिसाब से तैयार हो जाती थी।
दीप्ती की सासु माँ बहुत से क्लब और समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ी हुई थी तो किसी ना किसी का आना जाना लगा रहता था। वो सबसे दीप्ती को मिलवाना चाहती थी क्योंकि दीप्ती बहुत पढ़ी लिखी थी। घर बाजार का सारा काम कर लेती थी, अंग्रजी भी जानती थी, ये सब बातें सासु माँ को बड़ी पसंद थीं।
सासु माँ निशा जी की बहुत सारी किट्टी पार्टी भी होती रहती थीं, वो घर में सबसे ज्यादा व्यस्त रहती थीं। इस माह उनकी किट्टी खुली थी, हमेशा तो वो होटल में ही पार्टी करती थीं पर इस बार अपनी बहु से सबको मिलवाना था, उसके हाथ का बना कुछ खिलाना था, सबसे तारीफें सुननी थीं तो इस बार पार्टी घर पर ही रखी गयी।
दीप्ती आज से पहले कभी किसी किट्टी पार्टी में नहीं गयी थी, ना कभी तम्बोला खेला था, ना उसे और कुछ पता था। बस वो इतना जानती थी कि सब आते हैं कुछ खेल खेलते हैं, उन्हें कुछ खिलाना होता है और लास्ट में किसी की किट्टी खुलती है। पर क्योंकि सारी जिम्मेदारी सासु माँ ने उसे सौंप दी थी तो उसने गूगल का सहारा लेकर कुछ नए खेल निशा जी को सुझाए फिर पूरे घर का हुलिया अपने हिसाब से बदलवाया।
निशा जी के साथ मिलकर मेन्यु बनाया, पुराना रखा हुआ तम्बोला देखकर नया तम्बोला बनाया। सब निश्चित हो गया था, शनिवार को थी सासु माँ की किट्टी। सब आये माँ ने सबसे मिलवाया, दीप्ती ने आते ही सबको चाय के साथ कॉर्न कटोरी चाट खिलाई, सबको मजा आ गया। फिर खेल खिलवाये, फिर नाश्ते में रंग बिरंगी इडली, सांभर और चटनी के साथ गरम-गरम गाजर का हलवा, आइसक्रीम के साथ। सबको दीप्ती के हाथ का स्वाद बहुत अच्छा लगा। अब बारी थी तम्बोला की, सबने दीप्ती को खिलाने को कहा तो उसने कह दिया "मुझे नहीं आता, मुझे एक बार बता दीजिए मैं खिला दूंगी।" सब निशा जी का मुँह देखने लगे।
निशा जी ने उठ कर उसे बता दिया क्या करना है, फिर जब सबने तम्बोला के कागज़ उठाए तो देखा उसके पर सब कविताओं में लिखा है। सबने बहुत तारीफ की तो दीप्ती ने बताया उसे बचपन से कविता कहानियों का बहुत शौक है। वो अपने स्कूल में सबकी कहानी की किताबें पढ़ डालती थी। तो इस पर एक दीदी ने कहा "एक ही तो किताब रहती है हिंदी की, उसमें कहां ज्यादा पढ़ने को मिलता है?"
तो दीप्ती ने कहा, मैं हिंदी माध्यम में पढ़ी हूँ, मेरी तो सारी ही किताबें हिंदी में ही होती थीं। और मुझे हिंदी साहित्य में शुरू से ही बहुत रूचि थी तो मैं पढ़ती रहती थी ।
दीप्ती ने ध्यान दिया उसके इतना बोलते ही सब उसे आश्चर्य से देखने लगे। यहाँ तक कि निशा जी भी, दीप्ती को अच्छा नहीं लगा। उसने फिर कहा "हाँ मैं हिंदी माध्यम से सरकारी स्कूल में पढ़ी लिखी हूँ और मेरा कॉलेज भी हिंदी माध्यम में ही हुआ है, इसमें क्या कुछ गलत है?"
तो निशा जी अपनी झिझक छुपाती हुई बोलीं "नहीं कुछ गलत नहीं है, तुम खेल खिलाओ।"
दीप्ती को अजीब सा लगा, पर उसने माँ का कहना माना और खेल खिलाया। फिर किट्टी खुली और सब अपने अपने घर चले गए, जाते समय सबका व्यवहार बदला हुआ था।
दीप्ती को शाम को माँ ने कुछ नहीं कहा, ये भी नहीं कि नाश्ता अच्छा बना था या सब अच्छा हुआ। दीप्ती अपने कमरे में बैठी थी, तभी उसे नीचे अंश और निशा जी की कुछ बातें सुनाई दीं।
उसने ध्यान दिया निशा जी अंश से कह रही थीं, "बेटा दीप्ती हिंदी माध्यम में पढ़ी है, ये बात उसने हमें पहले क्यूँ नहीं बताई? पूरे खानदान में वो एकलौती ही होगी जो हिंदी माध्यम वाली है। बाकी की सारी बहुएं कान्वेंट और इंग्लिश मीडियम वाली हैं, अब मैं सबसे क्या कहूँगी? और तो और आज सबके सामने उसने कह दिया कि वो हिंदी माध्यम वाली है, अब सब मेरा मज़ाक उड़ा रहे होंगे।"
अंश बोला "क्या माँ आप भी? इतनी सी बात पर कोई मज़ाक उड़ाता है क्या? और इससे क्या फर्क पड़ता है कि वो कौन से मीडियम से पढ़ी हुई है? आपकी सारी दोस्तों में से किसी की भी बहुएं उनकी सुनती तक नहीं, आपकी हिंदी माध्यम वाली बहु आपकी सुनती तो है। आप जो बोलते वो करती है और क्या चाहिये आपको?"
निशा जी मुँह बना कर निकल गईं, "तुम नहीं समझोगे।" निशा जी कई दिनों तक कहीं बाहर नहीं गईं। दीप्ती से भी वो नाराज़ रहने लगीं और बात करना कम कर दिया।
एक दिन दीप्ती अंश के साथ बाहर गयी थी तो उसके नाम की डाक आयी, जो निशा जी ने ली। सरकारी डाक थी तो निशा जी ने उसे खोल लिया। उसकी किसी रचना के लिये उसे साहित्य का कोई पुरस्कार मिलने वाला था, उसी के समारोह का आमंत्रण था। निशा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि दीप्ती ने ऐसा कुछ बताया ही नहीं था। शाम को दीप्ती और अंश आये, तब निशा जी बाहर चली गयी थीं तो उनकी दीप्ती से मुलाक़ात नहीं हो पायी। पत्र देख अंश ने दीप्ती को बधाई दी और कहा "तो मेरी हिंदी वाली मैडम अब तो पार्टी बनती है" और उसे पार्टी देने के लिये होटल ले गया। रात को वो लोग आये तब सब सो चुके थे।
सुबह दीप्ती को मिलने वाले पुरस्कार की खबर अख़बार में भी छपी थी। ससुर जी ने दीप्ती को बधाई दी और निशा जी ने भी उसे बधाई दी कहा बहु ने नाम रोशन कर दिया और पूछा कि उसने इससे पहले कुछ बताया क्यूँ नहीं? तब दीप्ती बोली "माँ आपको मेरे हिंदी माध्यम का होने की वजह से तकलीफ़ थी। आपको अच्छा नहीं लगा था की मैं हिंदी माध्यम में पड़ी लिखी हूँ। हिंदी हमारी मातृ भाषा है और मुझे बहुत गर्व है कि मैं हिंदी में पड़ी लिखी हूँ। अंग्रेजी तो सारे देश के लोग बोल लेते हैं लेकिन हिंदी सिर्फ वही बोलता है जो सच्चा हिंदुस्तानी होता है। और ऐसा नहीं है कि मैं दूसरी भाषाओं का सम्मान नहीं करती, मुझे अंग्रेजी भी आती है और मराठी और उर्दू भी। पर अच्छे से मैं अपने आप को हिंदी में व्यक्त कर सकती हूँ उतना किसी और भाषा में नहीं कर सकती। मुझे माफ़ कीजिएगा मैंने आपको ये पहले नहीं बताया, अगर मुझे पता होता आपको हिंदी माध्यम से तकलीफ़ है तो मैं कभी आपके बेटे से शादी नहीं करती।" कहते कहते दीप्ती की आंखे छलक पड़ीं।
निशा जी ने आकर उसके आँसू पोछे और उसे गले लगाकर उससे माफ़ी मांगी और कहा "बेटा मुझे माफ़ के दो। वाकई में मैं खुद इस दिखावे में ये भूल गयी थी कि मैंने भी अपनी पढ़ाई हिंदी में ही की है। कभी-कभी हम किसी ढर्रे में इतना बह जाते हैं कि खुद की पहचान भी भूल जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृती की होड़ में हम अपनी भारतीयता को भूलते जा रहे हैं पर मुझे गर्व है तुम पर जिसने अपनी पहचान को बरकरार रखा और हम जैसों को आईना भी दिखाया। कल मेरी तरफ से बहु की इस सफलता पर जलसा होगा। मुझे सबको बताना है मेरी बहु हिंदी माध्यम वाली है।"