गुरु
गुरु


ऋषिकेश के शिशु निकेतन की प्रिंसिपल मैम श्रीमती विद्या तनेजा मैम के दिशा-निर्देशन में नर्सरी क्लास से शुरू हुआ मेरा शिक्षा का सफर राजकीय महाविद्यालय ऋषिकेश में डॉ राकेश रंजन बख्शी सर के सानिध्य में एमए (इतिहास) के स्टूडेंट के रूप में खत्म हो गया। यूं तो इस सफर में कई मौकों पर मैं पूरी तरह से असफल रहा, लेकिन मेरे कॉन्फिडेंस का भ्रम जबरदस्त रूप से मेरे साथ रहा कि मैं कभी भी कुछ भी कर सकता हूं। क्योंकि मैं जानता था, जब इंसान चाँद पर पहुंच गया, तब ऐसा क्या है जो नहीं किया जा सकता। बस बात करने या ना करने की है। मुझे मेरे टीचर्स ने बखूबी पहचाना, लेकिन अपनी जिदबाजी के चलते उसका खामियाजा आज भी मेरे साथ साए की तरह चलता है। जैसे पंजाब सिंध क्षेत्र इंटर कॉलेज 10th क्लास में श्री देवराज चौहान से मैथ्स पढ़ने के बाद श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज में 11वीं क्लास में श्री एससी अग्रवाल जी की मुझ को मैथ्स में एडमिशन देने की बात को ना मानने का मेरा फैसला गलत ही साबित हुआ। खैर शिक्षा के सफर में जो हुआ, वही होना ही था मेरी जिंदगी में। 3 बार फेल होने के बावजूद अपना आत्मविश्वास बनाए रखना और हर मुसीबत का डट कर सामना करना भी मैं अपने टीचर्स से ही सीखा है। कभी मैं खुद स्टूडेंट था तो कभी मैं खुद टीचर बन गया। और सर बनकर ही मैंने जाना कि इस दुनिया का सबसे कठिन काम है गुरु बनना। गुरु गलत हो या सही इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि बच्चे छोटे हो या बड़े अपने गुरु को ही फॉलो करते हैं, गुरु की हर बात के महत्व को समझा जा सकता है। बस इतना ही बाकी फिर कभी।