गुनहगार
गुनहगार
अब क्या लेने आये हो? तुम तो मुझे तेल चढ़ी छोड़ गए थे। मेरे पापा कभी नहीं चाहते थे कि मैं तुमसे शादी करूं। वे शुरू से ही कहते रहे, "यह लड़का सही नहीं है, तुम्हारे योग्य नहीं है"
उन्होंने कितना समझाया मगर मुझ पर तो इश्क का भूत सवार था जो किसी भी तरह उतर ही नहीं रहा था। आखिर मेरी मुहब्बत के आगे बेचारे मेरे पापा ने घुटने टेक दिए। मेरी खातिर मम्मी ने भी उन्हें कितना मनाया था और मैं पापा की हामी पाकर इतनी खुश थी कि पूछो ही मत। मेरे तो पैर ही ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे।
आखिरकार वो दिन भी आया। पापा ने हमारी शादी की तारीख पक्की कर दी। भले बेमन से ही सही पर बाद में पापा पूरी तरह से, पूरे मन से मान गए थे। उनकी इकलौती बेटी जो थी तो भला नाराज़ भी कब तक रहते। खुशी-खुशी तैयारियां भी कर रहे थे। इतने उत्साही थे कि ऐसा करूंगा, वैसा करूंगा, ये करूंगा, वो करूंगा, वगैरह-वगैरह और उन्होंने किया, बहुत-बहुत किया। अपनी सारी मुरादें पूरी की मगर तुमने हजारों मेहमानों के आगे उनकी पगड़ी उतार दी। हमने प्यार किया था अपनी मर्जी से शादी के लिए तैयार थे। तुम क्या कहते थे, याद है? या मैं याद दिलाऊं। यही कहते रहते थे ना, "अगर तुम मुझे नहीं मिली, मेरी शादी तुमसे नहीं हुई तो मैं जान दे दूंगा ईशा, मैं तुम्हारी कसम खाकर कहता हूँ। क्या हो गई तुम्हारी वो कसम? और तुम्हारी तो जान भी सही सलामत है। सब कुछ तुम्हारे मनमुताबिक होने के बावजूद छोड़ गए वो भी बारात वाले दिन। बारात आ गई लेकिन बिना दूल्हे के। कमाल है जिन्दगी में पहली बार बिना दूल्हे के बारात देखी और वो खुद की। उस वक्त मुझ पर, मेरे माता-पिता पर क्या गुजरी होगी? तुम्हें अहसास भी नहीं होगा। हम पांच साल से प्यार करते थे , एक-दूसरे को जी-जान से चाहते थे। उन पांच सालों में तो ऐसा कभी नहीं जताया कि इस तरह छोड़ जाओगे।
गये तो गये, लेकिन अब किस मुंह से आये हो। आते हुए तुम्हें जरा भी झिझक नहीं हुई? शर्म नहीं आई? तुम्हें मालूम है, पापा ने मुझे पता भी नहीं चलने दिया कि तुम नहीं हो बारात में। मुझे तो यह पता भी नहीं चला कि मेरी शादी तुमसे नहीं हो रही है घूंघट में होने के कारण। मेरी दादी ने शर्त रखी थी, शादी तो घूंघट में ही होगी नहीं तो जाने कितनों की नज़र लग जायेगी। इसका चेहरा तो सीधा दूल्हा ही देखेगा। भला हो नितिन का जिसने मेरे पापा की लाज रख ली। अगर घूंघट न होता तो पापा की लाज नहीं रहती। मैं तो तुम्हारी दीवानी थी इसलिए हंगामा भी हो जाता।
"तुम्हारे पापा की लाज रखने वाले नितिन ने ही तो मुझे गायब किया था। आज किसी तरह उसके चंगुल से छूटकर आया हूँ। मेरी हालत देखो ना! देखो, ये रस्सियों के निशान!"
"मैं कैसे विश्वास कर लूं? तुम सही कह रहे हो, शायद यह भी तुम्हारी कोई चाल हो"
"आज नितिन दो दिन के लिए बाहर गया है? रोज़ सुबह करीब दस बजे निकलता है ये कहकर अभी आता हूँ। उस वक्त वो मेरे पास आता है। अभी आता हूँ ये तो उसका तकिया कलाम है। वो भी तो तुम्हारा दीवाना था। तुम्हें कभी बताया नहीं था। उसने तो हंसी-हंसी में कई बार कहा था "ईशा प्यार भले तुझसे करती है पर शादी तो मुझसे ही करेगी। उसने कर दिखाया। उसी दिन मेरे पास आकर बोला, "चल यार तुझे पार्लर से तैयार करवाकर लाता हूँ। भाई तेरा दोस्त हूँ इतना हक तो बनता है"
रास्ते में इसने पान दिया खाने को, उसने खुद भी खाया तो मैंने भी खा लिया। शक की गुंजाइश ही नहीं थी। पहले जो भी कहता था मज़ाक ही लगता था, कभी कहीं सीरियस मेटर लगा ही नहीं। पान में जाने क्या था, मैं कुछ देर बाद ही गाड़ी में सो गया बाद में क्या हुआ? कुछ भी पता नहीं। जब आंख खुली तो एक अंधेरी कोठरी में खुद को बंधा हुआ पाया। मैं तुम्हें किसी भी तरह से उसके चंगुल से बचाना चाहता था मगर कैसे बचाता?
मोबाइल मेरे सामने पड़ा था लेकिन दो हिस्सों में और सिम भी वहीं पड़ी थी चूर-चूर की हुई। मेरा मुंह चिढ़ा रही थी। मैं असहाय पड़ा कोठरी में इधर-उधर देख रहा था। हंसी-हंसी में कहा गया वो उसका मज़ाक नहीं था। काश, पहले समझ गया होता तो ये नौबत ही नहीं आती। मैं तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी को किसी तरह का डिस्टर्ब करने नहीं आया हूँ। बस इतना ही बताना चाहता हूँ कि मैं बेगुनाह हूँ। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना"
"तुम्हें क्या लगता है मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी खुशी से जी रही हूँ? नहीं तुम्हारे सिवा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन नितिन की कर्जदार थी। मेरे मम्मी-पापा को बेइज्जत होने से बचाया था ऐसी स्थिति में उनके पास जान देने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं था। मुझसे बेहतर यह कौन समझ सकता है इसलिए नितिन की शुक्रगुजार थी। मैंने नितिन से कुछ समय मांगा। वह एक ही बार में मान गया। सच में मैं तो उसकी भलमनसाहत की कायल हो गई थी। सच कहूँ आज मैंने मन से तय किया था कि अब उसे उसके पति होने का हक दूंगी। सोचा था अब हमारी सुहागरात होगी यह जानकार वो बहुत ही खुश होगा। उसने पहली रात को ही मेरे समय मांगने पर कहा था, "ईशा, मैं तुम्हें तभी हाथ लगाऊंगा जब तुम खुद कहोगी। अब तुम दोनों में कौन सच्चा और कौन झूठा? तुमने जो किया वो सच है या उसने जो किया वो सच है?
"सच तो वही जो मैंने कहा"
"साबित कर सकते हो?"
"बिल्कुल! मेरी एक गुजारिश है अंकल-आंटी से हमें बात करनी चाहिए"
"तुम्हें देखते ही गोली मार देंगे समझे"
"लेकिन उनको अंधेरे में नहीं रखना चाहता। जो हो उनकी जानकारी में हो, पहले भी उन्हें मेरी वजह से बहुत तकलीफ हुई है। मेरे मम्मी-पापा को भी इस नितिन के कारण बहुत अपमानित होना पड़ा है। वे भी तो मुझे ही गुनहगार समझते होंगे। मैंने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। किसी भी तरह मुझे अपना यह कलंक धोना है। मैं बेगुनाह होकर भी गुनहगार हूँ सबका"
"नहीं बेटे, अगर तुम गुनहगार होते तो यूँ वापस नहीं आते"
आवाज़ सुनकर दोनों ने पलटकर देखा "पापा आप ?"
"हाँ मैं, मैंने शुरू से तुम्हारी सारी बातें सुनी है। तबसे एक बात सोच रहा हूँ। जब तुम्हें तुम्हारा प्यार बड़ी मशक्कत के बाद मिल रहा था तो शादी वाले दिन छोड़कर जाने का क्या कारण हो सकता है? आखिर तुम ऐसा तो कर ही नहीं सकते और क्यों करोगे? अपना पांच सालों का इतना गहरा प्यार छोड़कर क्यों जायेगा कोई भला? तो तुम्हें अपना सच साबित करने का दिया मौका। मुझे अपनी ईशा पर भी गर्व है। नितिन परसों आयेगा तब तक सारे सुबूत इकट्ठे करने है। पहले तो हमें वहाँ ले चलो जहाँ तुम कैद थे"
वहाँ जाने के बाद कोठरी की हालत देखकर शिव की बातों पर भरोसा हो रहा था। ईशा के पापा सुजान सिंह ने अपने मित्र कमिश्नर चढ्ढा को फोन पर सारा माजरा बयान किया।
चढ्ढा साहब ने कहा "डोंट वरी मैं फोरेंसिक टीम को भेज रहा हूँ। तुम लोगों ने किसी चीज को छुआ तो नहीं। खैर छुआ भी तो कोई बात नहीं। तुम सभी अपनी उंगलियों के निशान दे देना और हाँ नितिन के भी लेने होंगे उसका कोई पर्सनल सामान होगा?"
"है ना, उसके कपड़े और उसकी किताबें"
"ठीक है फिर टीम को घर भी ले जाना। कल शाम तक मैं तुम्हें रिपोर्ट्स के साथ मिलता हूँ"
"कोठरी की हर सामान पर नितिन के फिंगर प्रिंट्स थे और मोबाइल तथा अन्य कुछ जगहों पर शिव के भी थे। अब एकदम पक्का हो गया था, शिव को नितिन ने ही अगवा करके कैद किया था। सब सोच रहे थे नितिन इतना कांइयां हो सकता है? दिखने में इतना भोला और सीधा।
दूसरे दिन नितिन आया। उस वक्त चढ्ढा साहब और दो कांस्टेबल भी थे साथ में शिव भी बैठा था। शिव के कारण थोड़ा घबरा गया था। घबराहट उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। लेकिन खुद को संभालते हुए बोला "कमिश्नर अंकल आप और फिर शिव की तरफ देखते हुए बोला, लगता है मुजरिम पकड़ा गया"
"बिल्कुल पकड़ा गया कहते हुए अपने सिपाहियों से कहा - अरेस्ट हिम, सिपाहियों ने आज्ञा का पालन किया। अंकल, यह आप क्या कर रहे है ? सच जानने पर पछताएंगे"
हाँ पछता तो रहे ही है। हमसे कितनी बड़ी गलती हुई। कुछ भी छानबीन किये बिना अपने जिगर का टुकड़ा सौंप दिया। अपने मित्र तक को पता नहीं चलने दिया बदनामी के डर से। माफ कर दे यार, तेरे जैसे दोस्त को पाकर भी बदनामी से डर गया। तू भला बदनाम होने देता? नहीं ना फिर भी मैं गलती कर गया। यार माफ कर दे कहते-कहते रो पड़े"
"यार, तू कादे वास्ते रो रहा है? हुण ते रोण वाली केड़ी गल हैगी? रब दा शुकर कर हमारी कुड़ी एकदम सुरक्षित है' चढ्ढा साहब ने अपनी जेब से तलाक़ के पेपर निकाले और नितिन से बड़ी तीखी आवाज कहा "ये ले साइन कर"
"मैं न करूं तो?"
"तो हम तेरी दो उंगलियां जख्मी करके फिर अंगूठा लगवा लेंगे और यह तो साबित करेंगे ही कि तुम पति-पत्नी नहीं हो और यह भी कि तुमने मर्डर किया है। दफा तीन सौ दो भी लगेगी तो कैसा रहेगा बच्चू? इसीलिए तेरी भलाई इसी में है, तू चुपचाप साइन कर दे। वो अच्छी तरह से समझ रहा था कि चढ्ढा के शिकंजे में बुरी तरह फंस गया है, निकलना नामुमकिन-सा है।
नितिन को सात साल की सज़ा हुई। शिव और ईशा की शादी की सारी तैयारियां की चढ्ढा साहब ने। सुजान सिंह ने कहा "अब ईशा तेरी बेटी है। इस नाते कन्यादान भी तुम और भाभी करेंगे" शिव के माता-पिता को बुलवाया गया। बुलावे पर बेचारे डरते - डरते आये मगर बेटे को देखकर डर के साथ गुस्सा भी था। लेकिन बेटे के बारे में जाना तो उनकी खुशी का पारावार न था। खुशी-खुशी बहू को विदा कराकर ले गये। बेटी की विदाई से माहौल भारी था ही। चढ्ढा साहब बोले, "भाभीजी, बढ़िया - सी चाय पिला दो। वैसे आपकी देवरानी पकौड़े बड़े अच्छे बनाती है तो उससे बनवा लीजिए आपका काम हल्का हो जायेगा"
"चलिए आप बैठिए भाभीजी, मैं सबके लिए चाय के साथ पकौड़े भी बना लाती हूँ। चढ्ढा साहब मुझे बैठने थोड़े ही ना देंगे, पकौड़े के साथ पता नहीं और क्या फरमाइश कर दें" सुनकर सबका ठहाका एक साथ लगाने लगे और साथ ही मिसेज चढ्ढा किचन की तरफ जाने लगी।

