गुलाम बचपन की आजाद जिंदगी
गुलाम बचपन की आजाद जिंदगी


'बंधुआ मजदूर मुक्ति के सम्मेलन में ' मजदूर मुक्तिमोर्चा ' का एनजीओज सत्यजीत से रमिया ने दबे - कुचले वर्ग को साक्षर कर और महिला कामगारों और बंधुआ मजदूरों के हकों की समस्याओं को सुलझा के आदर्श शिक्षिका का अवार्ड ले रही थी तभी उसे अपने माता - पिता के अभिशिप्त बंधुआ मजदूरी के तहत ईंट भट्ठे के मालिक के घर में गिरवी हुए गुलामी की मार से अभिशापित बचपन याद आ गया।
एक दिन रमिया तसले में ईंटें भर के ट्रक की ओर जा रही थी तो ड्राइवर ने रमिया की चुन्नी खींच दी तभी रमिया ने ड्राइवर की आँख पर एक ईंट मारी थी ड्राइवर की आँख बच तो गयी थी, लेकिन भौंह का घाव इस वारदात का गवाह था तभी निर्लज्ज ड्राइवर वहाँ से रफा - दफा हो गया।
तभी वहाँ ' मजदूर मुक्ति मोर्चा ' का एनजीओज इस गाँव में आया तो इस भट्ठे के मालिक के यहाँ बंधुआ मजदूरों का पता लगा वहीं पर रमिया के पीड़ित परिवार से सत्यजीत की मुलाक़ात हो गयी। उन्हें रमिया के पिता ने आप बीती सुनायी।
कैसे तैसे अदालत के द्वारा एनजीओज ने इन बंधुआ मजदूरों को आजाद करा के बच्चों को बाल गृह में रख कर ' सर्व शिक्षा अभियान ' की तहत रमिया को शिक्षा दिलायी।
सशक्तिकरण की मिसाल बनी रमिया ने शिक्षिका बन के समाज में शैक्षिक मूल्यों और ज्ञान की रौशनी से यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, शोषण के प्रति लोगों को जागरूक करती और सशक्त रमिया ' मजदूर मुक्ति मोर्चा ' के एनजीओज से जुड़ कर बेगारी प्रथा, महिला उत्पीड़न आदि को मिटाने में जुट गयी थी ।
तालियों की गड़गड़ाहट में ख्वाबों से निकल रमिया की मुस्कान चमकती उपलब्धि को जता रही थी।