होली में छलके रंग
होली में छलके रंग
हमारा देश भारत सभ्यता – संस्कृति, मूल्यों के नाम से विश्व में पहचाना जाता है। भारतीय संस्कृति त्योहारों की संस्कृति है।हमारे देश में हर महीने । में कोई न कोई पर्व आता है, ताकि हम उदास – तनाव से भरे जीवन में इन पर्वों के माध्यम से खुशियाँ ला सके। ऐसा ही त्यौहार है होली।
लोक जीवन में होली के त्यौहार में रंगों से खेलने की सुंदर परिकल्पना की है। रंगों का लोक जीवन में बहुत ही महत्व है ।पुराने जमाने में शादी , जन्मोत्सव आदि की खुशखबरी पोस्टकार्ड द्वारा दी जाती थी। चिट्ठी के अग्रभाग में लाल रंग छिटक कर भेजते थे , जिससे पता लग जाता था कि ख़ुशख़बरी आयी है। जमाना बदला इंटरनेट क्रांति से पत्रलेखन रसातल में चला गया।अब तो सोशल मीडिया क्रांति से पल भर में संदेश दुनिया को पता लग जाते हैं।
रंग तो जगजीवन में खुशियाँ बिखरते हैं, ऐसी खुशियाँ होली के रंगों में नजर आती है।
होली को फाग , फगुआ , फागुन , मदनोत्सव , कौमिदी उत्सव आदि के नाम से भी पुकारा जाता है। फागुन माह की पूर्णिमा पर हम यह त्यौहार मनाते हैं। सदियों से होली खेलने से एक दिन पहले जिसे हम छोटी होली भी कहते हैं। आग जलाकर उसकी पूजा करने की परंपरा भी है।
इसका संबंध असुरी वृत्ति वाले असुरों का राजा हिरण्यकश्यप से है। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वर माँगा था कि कोई भी मनुष्य , स्त्री , देवता , पशु – पक्षी , जलचर आदि न ही दिन , न ही रात , न ही घर के बाहर , न ही घर के अंदर किसी भी प्रकार के अस्त्र – शस्त्र से मार नहीं सकेगा । यह वरदान पाकर हिरण्यकश्यप को गलतफहमी हो गयी कि वह अमर हो गया। इस वर को पाकर वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा। बलपूर्वक लोगों से वह अपनी पूजा करवाने लगा और भगवान मानने के लिए बाध्य करने लगा।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति करते थे। पिता को भगवान मानने से इनकार कर दिया।तब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए ।लेकिन पुत्र मरा नहीं हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला था । होलिका अपने भाई के कहने से प्रहलाद को अपनी गोद में बिठा के जलती आग में बैठ गयी। भगवान भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गयी। बुराई पर अच्छाई की जीत हुयी . अधर्म पर धर्म की विजय हुयी ।असुरी वृत्ति वाली होलिका का विनाश हुआ। प्रह्लाद ने अधर्म , अन्याय का विरोध करके संसार का पहला सत्याग्रही नागरिक बना . प्रह्लाद सत्य , धर्म , सद्गगुणों का प्रतीक है।
मानव को अपने मन में , समाज में होलिका को भस्म करने के संदेश को मैं अपने दोहे में कहती हूँ –
छली होलिका धृष्ट को , शीघ्र लगाओ आग।
आँच न आएगी कभी , लगे न दामन दाग।
हमारी संस्कृति के मूल का यही गहन चिन्तन भी है। कहने का मतलब यह है कि असुरीवृत्ति का नाश हो और परहित का चिंतन हो।
आज भी समाज में बलात्कार , शोषण , छल, कपट , भ्रष्टाचार , सांप्रदायिकता , असमानता ,लिंग , नस्ल भेद आदि बुराइयाँ देखने को मिलती हैं।
इन बुराइयों का दहन करें ।
होलिका दहन से जनमानस में खुशी की लहर दौड़ गयी ।लोगों ने उत्सव मनाया । आनन्द – उल्लास से लोगों ने चारों दिशाओं में रंग बिखेरा और रंग एक दूजे को लगाया। अगले दिन लोग मस्ती , खुशी में आपस में हरे , पीले , नीले , लाल , गुलाबी रंग लगा के होली खेलने जाने लगे ।होली की खुशी में घर , बाजार में मिठाई , गुजिया का अंबार लग जाता है ।गीत – संगीत ,शिक्षाप्रद दोहों को गा के समाज को नवचेतना लाते हैं . देश – विदेश में , जूम , फेसबुक , व्हाट्सएप पर होली पर विशेष कविसम्मेलन होते हैं।
प्रकृति भी रंग – बिरंगे कुसुमित फूलों , नव कोपोलों , हरियाली से नव श्रृंगार करती है ।धरा की गोद पर रंगों अंबार भर देती है । हमारी माँ टेसू के फूलों ,चुकन्दर को उबाल कर सूर्ख लाल रंग बनाया करती थी . हम बचपन में पिचकारी में इन्हीं हर्बल रंगों से होली खेलते थे ।सूखे लाल गुड़हल , गुलाब , गेंदा के फूलों से गुलाल बनाते थे ।क्योंकि यह प्राकृतिक रंग हमारे लिए स्वास्थ्यवर्द्धक हैं. हमारे शरीर , त्वचा को सुरक्षित रखते हैं . जिनकी महक से हमारा बदन कई दिनों तक महकता था।अब हम रसायनिक रंगों से होली खेलते हैं ,जो हमारी त्वचा के लिए हानिकारक है । एलर्जी , जलन , बीमारियाँ को जन्म देता हैं । ऐसे में हमें प्राकृतिक हर्बल रंगों का उपयोग करना चाहिए । ये रंग हमारे शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक और इकोफ्रेंडली हैं।
अंत में स्टोरी मिरर के संस्थापक, के संग पूरी टीम , पाठकगण को गुलाल के संग होली की शुभकामनाएँ प्रेषित कर रही हूँ।होली के रंगों से जनमानस का जीवन खुशियों के रंग , प्रेम रस से सराबोर रहे ।