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डॉ मंजु गुप्ता

Inspirational

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डॉ मंजु गुप्ता

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अगर वे न होते

अगर वे न होते

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प्रोफेसर मधु आज प्रधानाचार्या की पदोन्नति का नियुक्ति पत्र ले के घर आयी तो खुशी से फूली न समा रही थी । अतीत की यादों में खो गई।शादी होने के बाद जब मैं दिल्ली से अपनी प्रोफेसर की नोकरी छोड़कर मुम्बई में अपने ससुराल में आई तब मुझे मुम्बई का नाम अपनी कल्पनाओं की उड़ानों को पंख लगाने के समान लगा लेकिन मेरे अरमानों के पंख कुतर दिए थे ।मैंने माताश्री से कहा , " मुझे नौकरी करनी है ।"उन्होंने कहा , " हमारे खानदान में बहू घर -गृहस्थी सँंभालती है , न कि नौकरी करती है ।" तभी चहक के नन्द बोली , " भाभी , भूल जाओ अपनी डिग्रियों को ।यहाँ तो सबको दोनों वक्त उतरती गर्म रोटी परोसनी होती है ।" पिताश्री बोले थे , " बहु , यहाँ मास्टरगिरी नहीं चलेगी ।" यह सुनकर मेरी आँखों की नमी के बादल बरसने लगे और सोचने लगी कि केरियर बनाने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की थी तभी पति किशोर ने मुझे धैर्य से कहा , " मैं तुम्हारे हर सपने को पूरा कर रहा हूँ ।तुम्हें नौकरी करने क्या जरुरत ? "धीरे - धीरे मुझ में नौकरी करने की भावना दब गयी । इस बीच इतफाक से किशोर का तबादला वाशी , नवी मुम्बई हो गया तब मैंने किशोर से कहा , " अब मैं शिक्षण कार्य करुँगी ।"  उन्होंने कहा , " मैं तो कम्पनी के कामों से बेंगलोर टूर पर रहता हूँ , बिटिया कनिका अभी छोटी है । तुम अकेली घर की जिम्मेदारी नहीं निभा पाओगी ।"यह सुनकर मुझे लगा कि मेरे सपनों पर फिर पानी फिर गया ।मैंने हिम्मत नहीं हारी । कुंठित , हीन भावना मन में भरगयी थी लेकिन मुझ में आत्मविश्वास जगा ।

उनकी अनुपस्थिति में पास के कॉलिज में अर्जी दे आयी ।कुछ दिनों के बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया और मुझे प्रोफेसर नियुक्त कर दिया लेकिन मैने किशोर के डर से प्रधानाध्यापक को न कर दिया । अनुभवी , शुभचिंतक प्रधानाध्यापक ने मेरे चेहरे पर पर आते -जाते भावों को पढ़के मुझे प्यार से समझाया , '' तुम एम. , बीएड हो , तुम्हारे में योग्यता है , शिक्षा की पूरी डिग्री है , घर की चार दीवारी से बाहर निकलो , स्वयं अपनी पहचान नाम और अस्तित्व बनाओ । पति की अँगुली पकड़ कब तक चलोगी ? "उनकी बातों का मुझ पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा और मैंने स्वनिर्णय ले कर नौकरी के लिए हाँ कर दी और कॉलिज में पढ़ाने लगी ।

जब वे टूर से वापस आए तो कनिका ने कहा , पापा - पापा मम्मी तो कॉलिज में पढ़ाने लगी हैं । "मैं वहीं खड़ी सोच रही थी कि ये हाँ करेंगे या न।उन्होंने हँसकर हाँ में अपनी सहमती जताई तभी मुझ को लगा कि खुशियाँ स्वाबलंबन के आसमान को छू रही थीं । कनिका ने माँ ओ माँ कह के मेरा ध्यान भंग किया और होंठों पर चौड़ी मुस्कान बिखरते हए कहने लगी , " माँ ,   लो , गरमा गरम चाय ।" तभी मधु ने दूनी खुशी के साथ अपनी पदोन्नति  का  नियुक्ति पत्र कनिका और किशोर को दिखाया ।

आँखों में खुशी की चमक लिए किशोर ने मधु को कहा , " प्रधानाचार्या के पाँच सुनहरे अक्षरों ने ' नारी सशक्तिकरण ' , बेटी बचाओ - बेटी बढ़ाओ ' की मिसाल साकार कर दी । "



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