गुलाबी साड़ी
गुलाबी साड़ी
"गीता ओ गीता ? अरे भाग्यवान कहाँ हो ? चलो जल्दी से कितनी देर लगाती हो तुम अभी भी तैयार होने में।" गीता के पति विजय जी हॉल में खड़े हो कर आवाज लगा रहे थे।
"आ रही हूँ.... आ रही हूँ......" बोलते हुए गीता जी कमरे से निकल कर विजय जी के पास पहुँच गई।
"हाय आज ये बिजली कहाँ गिरेगी?" विजय जी ने अपने सीने पर हाथ रख गीता जी को छेड़ते हुए कहा।
"आप के बटुए पर" गीता जी ने भी खिलखिला कर जवाब दिया। और झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली "अब देर नहीं हो रही क्या?"
"हाँ.. हाँ चलो चलो" अपनी कार की चाबी उठाते हुए विजय जी ने कहा।
गीता जी भी घर को लॉक कर कार में जा कर बैठ गई।
गीता और विजय एक साठ ,पैसठ साल का खुश मिजाज जोड़ा। जिनके दोनों बेटे बाहर अपने परिवार के साथ रहते थे।और विजय जी एक सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हो चुके थे।दोनों पति, पत्नी एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते। और आपस में ही हँसी मजाक कर जीवन का आनन्द ले रहे थे।
कुछ दिनों में विजय जी के बड़े भाई के बेटे की शादी है। तो विजय जी गीता जी को आज नई साड़ी दिलाने ले जा रहे है।
गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर दोनों साड़ियों के एक शोरूम मे पहुँच गये। चारो तरफ एक से बड़ कर एक साड़ी है।
आइये मैडम आइये ... बैठिये एक सेल्समैन ने दोनों को एक साइड इशारा कर बैठने को कहा।
दोनों के बैठते ही उसने पूछा...
कहिये मैडम कैसी साड़ी दिखाऊ आपको..
देखिये भैया मुझे अपने लिये पार्टी वेयर साड़ी चाहिये!
गीता जी ने कहा।
जी मैडम जी .... बोल कर वो गीता जी के सामने एक से बड़ कर एक साड़ियां दिखाने लगा।
तभी गीता जी की नजर एक गुलाबी साड़ी पर गई। जरी गोटे से सजी वो साड़ी देख कर गीता जी के मुँह से अनायास ही निकल गया.....
"अरे ये साड़ी ये तो बहुत पुरानी डिजाइन है।,,
"अरे मैडम फैशन का क्या है। वही पुरानी डिजाइन को कुछ नया टच देकर दोबारा आ जाता है। और वैसे भी वो साड़ी आप के हिसाब की नहीं है। ये देखिये सिंपल सोबर पार्टी वेयर साड़ी। जो आप के ऊपर खूब जाँचेंगी।,,
वो गुलाबी साड़ी देख कर गीता जी का मूड खराब हो गया था। तो यू ही अनमने मन से एक हल्के कलर की साड़ी बिना चमक दमक वाली जो उनके उम्र के हिसाब से उसे ठीक लगी लेकर घर आ गई।
वो गुलाबी साड़ी गीता जी को पुरानी यादों में ले गई।
शादी के बाद गीता जी पहली बार विजय जी के साथ अपने लिये साड़ी लेने गई थी। दुकान पर उस की पैसों की रेंज पूँछ कर दुकान वाले ने कितनी रंग बिरंगी साड़ियां बिछा दी थी। तब भी उन्हें दूर पड़ी वो गुलाबी जारी गोटे वाली साड़ी पसन्द आई थी।
दुकान दार ने साड़ी की तारीफ करते हुए कहा था "ले लीजिये मैडम खूब जचेगा आप के गोरे रंग पर ये गुलाबी रंग।,,
गीता ने भी तुरंत हामी भर दी थी उसे लेने के लिये।
पर विजय ने उसे ये कह कर मना कर दिया की " अभी कोई और साड़ी ले लो। इसे बाद में ले लेना।,,
ये सुन कर गुस्से में गीता बिना साड़ी लिये ही वापिस आ गई। और जाने कितने दिनों तक विजय से बात भी नही की थी।
फिर एक दिन विजय ने गीता का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा था.... "गीतु अभी मेरी नौकरी छोटी है। और जिम्मेवारी ज्यादा है। मेरे पास अभी उस साड़ी को लेने के लिये पैसे नहीं थे। पर में बहुत मेहनत कर रहा हूँ। में पूरी कोशिश करुगा की तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी कर सकूँ। बस इस बार माफ कर दो।,,
ये कहते हुए विजय की आँखों में आँशु आ गये।
गीता ने तो ये सोचा ही नही था। की पैसों की वजह से विजय ने वो साड़ी दिलाने से मना किया था। उसे तो लग रहा था की विजय की नजर में उस की पसन्द कोई मायने ही नहीं रखती। इसी लिये वो मना कर रहे है।
विजय की आँखों में आये आँसुओ के लिये वो खुद को जिम्मेवार समझ रही थी।
उसने उस दिन के बाद कभी भी किसी चीज के लिये विजय से जिद नही की।
और विजय ने भी अपना वादा निभाया उन्होंने पूरी कोशिश की गीता को हर खुशी देनी की।
इतने सालों में जाने कितनी साड़ी खरीद ली होगी गीता ने। पर वो गुलाबी साड़ी वो कभी नहीं भूली। और आज इतने सालों बाद जब बिल्कुल वैसी साड़ी दिखी और आज वो उसे लेने में समर्थ थी तो दुकान दार ने उसे उसकी बड़ी हुई उम्र का एहसास करा दिया।
दुखी मन से जाकर गीता जी सो गई। सुबह विजय जी ने उन्हें बेड टी के साथ जगाया तो गीता जी घबरा कर उठते हुए बोली.... "हे राम इतनी देर हो गई की आप को चाय बनानी पड़ी,,।
विजय जी ने शरारत से मुस्कराते हुए कहा....
अरे मोहतरमा कभी कभी हमें भी मौका दिया करो सेवा करने का।
उन की इस बचकानी हरकत पर गीता जी मुस्करा दी।
विजय जी ने उसी मुस्कराहट के साथ कहा " आप जल्दी से तैयार हो जाइये आज हम डेट पर जाएँगे।,,
गीता जी ने आश्चर्य से विजय जी को देखते हुए कहा "डेट इस बुढ़ापे में,,
" अरे बूढ़ी होगी तुम। में तो अभी जवान हूँ।
गीता जी उठ कर नहाने चली गई। बाहर निकली तो बेड पर वही गुलाबी साड़ी रखी थी। साथ में एक चिट भी....
मेरी पहली डेट का पहला तोहफा|
साड़ी देख कर गीता जी खुश तो बहुत हुई। पर दुकान वाले के वो शब्द कान में गूंजने लगे।
तभी पीछे से विजय जी ने आकर कहा " गीतु मेरे लिये तुम आज भी वही प्यारी सी नई नवेली दुल्हन हो। उम्र तो एक नंबर मात्र होता है। असली जिंदगी तो दिल से जी जाती है। और दिल से तो हम दोनों जवान है। तो तुम्हे ये साड़ी पहनने में क्या परेशानी है। और ये कहा लिखा है,की बड़ती उम्र के कलर और कपड़े अलग होते है। हमें हमेशा वही पहनना चाहिये जो हमें खुशी दे।,,
गीता जी भी अब खुश हो कर गुलाबी साड़ी पहन कर आ गई। उस गुलाबी साड़ी की खुशी ने उनके गोरे मुखड़े को और दमका दिया था।
उन्हें देख कर विजय जी सीने पर हाथ रख गाना गाने लगे.......
ओ मेरी जोहरजबी, तुम्हे मालूम नहीं...
तू अभी तक है, हंसी और मे जवान...
उन की इस बुढ़ापे में चॉकलेटी हीरो की स्टाइल देख गीता जी शर्म से लाल हो गई।