'गृहस्थी'
'गृहस्थी'
वह बेख्याली में गाड़ी चला रहा था। अचानक किसी के कराहने से उसके विचारों पर पहरा लगा। उसने गाड़ी रोकी और उस दिशा की ओर चला जिधर से आवाज़ आ रही थी।
उसने देखा प्रसव पीड़ा से एक महिला बुरी तरह कराह रही थी। उसने आनन-फानन उस महिला को गाड़ी में बैठाया और अस्पताल भागा। उस महिला को तुरंत ही लेबर रुम में ले जाया गया जहाँ उसे जुड़वाँ बच्चे हुये एक लड़का और एक लड़की। जब तक महिला को होश नहीं आता तब तक उसे वहाँ रहना ही था।
जब महिला को होश आया तो उसने उसका पता जानना चाहा। महिला ने बताया कि उसके पति और देवर ने मिलकर उसकी यह दुर्दशा की है। नये साल की पार्टी में ज़बरदस्ती उसे शराब पिलाई और फिर यह कुकर्म किया। और जब वह गर्भवती हो गई तो दोनों ने गर्भ गिराने को कहा पर उसकी हालत गर्भपात सहने की नहीं थी इसलिए डॉक्टर ने इनकार कर दिया। उसके बाद लानत-मलामत का दौर शुरु हुआ। सात -आठ महीने तो वह झेलती रही फिर उसके शिशु को न मार दिया जाये इस डर से वह घर से भाग गई। कभी मंदिर में कभी मस्जिद में तो कभी गुरुद्वारा के लंगरो में वह खाना खाती रही पर कितने दिन?
आज वह तंग आकर आत्महत्या करने जा रही थी तभी दर्द शुरू हो गया उसके बाद तो आपको सब मालूम ही है यह कह कर वह चुप हो गयी।
उस आदमी ने कहा "अजीब संयोग है, चार साल पहले उसकी गर्भवती पत्नी की कार दुर्घटना में मौत हो गयी, गाड़ी वही चला रहा था लेकिन वह बच गया।तबसे हर साल वह वहाँ जाता है, पत्नी और होने वाले बच्चों को याद करता है। उस दिन भी वहीं जा रहा था कि रास्ते में आपको देखा।"
इस अद्भुत संयोग को ईश्वर का आशीर्वाद मानकर दोनों ने पति-पत्नी के रुप में एक दूसरे को स्वीकार किया। और दोनों बच्चों के साथ वह सबको अपने घर ले आया।
एक सुखद गृहस्थी की शुरुआत हो चुकी थी।