गलवन की गौरव भारतीय सेना
गलवन की गौरव भारतीय सेना
पिछले वर्ष 15-16 जून को हमारे सैनिकों के साथ चीन की सीमा पर गलवन में जो हिंसक झड़प हुई वह चीन की विस्तारवादी नीति और धोखेबाजी की पुरानी आदत का परिणाम था। चीन हमेशा से पीठ में छूरा घोपने का काम करता है। हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे के धोखे में रखकर उसने 1962 में देश पर आक्रमण किया था। ठीक इसी तरह वर्तमान विवाद में लगातार देश के नेतृत्व स्तर और सैन्य स्तर पर बात चल रही थी। दोनों देश बातचीत से विवाद हल करने की बात कह रहे थे। इसी बीच गलवन में चीनी सैनिकों ने योजना बनाकर कायराना हरकत कर दी।
भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर असहज स्थिति बनी हुई है। सीमा से सैनिकों को हटाने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है। इसके बाद भी भारत-चीन सीमा पर कई ऐसे चौकियां मौजूद हैं जहां जहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। लद्दाख के इस अशांत क्षेत्र में जैसे-जैसे बर्फ पिघल रही है वैसे वैसे चीनी सेना अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है।
पिछले वर्ष सर्दी की शुरूआत में दोनों देशों की सेनाओं ने कोर कमांडर मीटिंग में बनी सहमति के बाद पैंगोंग त्सो झील के दोनों किनारों से अपने अपने सैनिकों को हटा लिया था। इस झील के दक्षिणी किनारे पर हमारी सेना को महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त हासिल थी। हमारे नेतृत्व को आशा थी कि शायद चीन गोगरा-हॉटस्प्रिंग, डेपसांग और डोकलाम से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
गलवान घाटी भारत की तरफ लद्दाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है। गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समांगलिंग से निकलकर फिर पश्चिम में जाकर श्योक नदी में मिल जाती है। गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है। वास्तविक नियंत्रण रेखा अक्साई चीन को भारत से अलग करती है।
सामरिक दृष्टिकोण से चीन हमसे सबल है। उसके पास संख्या में बिश्व की सबसे बड़ी सेना है। लेकिन संख्या बल के कारण यह मान लेना गलत होगा कि वह हर दृष्टिकोण से सबल है। युद्ध केवल उपकरण और गोला बारूद के बल पर नहीं लड़े जाते। युद्ध मनोबल और स्त्रातेजिक से लड़े जाते हैं। पहाड़ों पर लड़ने के लिए हमारी सेना बिश्व की सबसे माहिर सेना हैं, यह बात एक अन्तर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में कही गयी है। यह बात चीन को पता नहीं थी। उसने शरीर को गला देने वाली सर्दी सिर्फ किताबों में पढ़ी थी। उसे जब गगनचुंबी पहाड़ों की सर्दी देखी तो उसके पसीने छूट गये। वह बार बार मोर्चों से अपने सैनिकों को बदल रहा है। वहीं हमारे बीर जवानों का शौर्य हिलोरें मार रहा है। चीन से दो दो हाथ करने और अपने पूर्वजों के बलिदान का बदला लेने के लिए हमारी सेना तैयार खडी है। गलवन में चीन ने अपनी धोखेबाजी वाली पुरानी रणनीति अपनायी थी। फिर भी हमारे सैनिकों से पांच गुना ज्यादा नुकसान चीन को उठाना पड़ा था।
यह हमारी सरकार और भारतीय सेना की बहुत बड़ी जीत है। चीन अब तक 1962 के मुगालते में था। जब हमारी सरकार और सेना ने आंखें तरेर कर बातें की तब विस्तारवादी और धोखेबाज चीन को याद आया कि यह तो 1962 नहीं 2021 का भारत है। हमारी सेना कि अब तक यह नीति रही है कि हम किसी भी देश के ऊपर पहले आक्रमण नहीं करेंगे और जो देश हमारी सीमा में घुसने की कोशिश करेगा उसे छोड़ेंगे नहीं। इस सिद्धांत पर वह आज भी कायम है।
हमारी सरकार ने अपने स्तर पर सैन्य और कूटनीतिक कार्यवाही करके चीन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। वह बस अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी में अपनी नाक बचाने के लिए मोर्चे पर टिका हुआ है। वह चाह रहा है कि कोई अन्य देश आकर समझौता करवा दे जिससे उसकी इज्जत बची रह जाय। एक नागरिक होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य है कि हमसे जो भी बन पड़े वह सब करें। अपने देश को सबल बनाने के लिए चीनी उत्पाद का बहिष्कार आवश्यक है। ताकि वह आर्थिक रूप से कमजोर हो।
आप अपने देश के किसी भी शहर में देखें तो आपको चीनी सामानों का एक बाजार जरूर मिल जायेगा। इसका मुख्य कारण है अपने देश में बने सामानों से ज्यादा बिबिधता और सस्ता होना। देश का ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां पर चीन के बने सामान न हों। अपने उत्पादों को बेचने के लिए चीन ने आजकल मेड इन चाइना लिखना छोड़ दिया है। पिछले साल सरकार ने चीन के तमाम साफ्टवेयर पर नियन्त्रण लगाकर उसे तगड़ा झडका दिया है जिससे चीन और तिलमिला गया है। हमें अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। चीन का बना हुआ कोई भी उत्पाद न खरीदें। सरकार को न चाहते हुए भी आयात बंद करना पड़ेगा। सरकार की अपनी मजबूरियां हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियम है। फिर भी यदि देश का कोई नागरिक सामान ही न खरीदेगा तो सरकार क्यों आयात करेगी।
हमारे देश के जो लोग चीनी वस्तुओं का बिज्ञापन करते हैं उन्हें विज्ञापन करना छोड़कर देश के लिए अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेलों में जो चीनी कम्पनियां स्पान्सर कर रही हैं , कंट्रोल बोर्डों को उन्हें अलबिदा कह देना चाहिए।
सरकार को भी चीनी सामानों के विकल्प तेजी से तलाशने होगें। उचित दाम का भी ध्यान रखना होगा ताकि सबकी पहुंच में हो। इसके लिए भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें ज्यादा छूट देनी होगी। अपने कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित कर दैनिक जीवन में उपयोग होने वाला हर सामान बनाना होगा।
यदि हमें अपने शहीदों की शहादत याद है तो हमें चीन का अपने हिस्से का विरोध करना होगा और चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाना होगा। यह प्रयास केवल सेना और सरकार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को करना होगा। यह देश हम सबका है। चीन जैसे धोखेबाज देश पर कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता। हमें हमेशा अपनी सामरिक, राजनीतिक और कूटनीतिक तैयारी रखनी होगी। सीमा विवाद के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को सरकार के साथ खड़ा होना होगा। यह समय तू तू मैं मैं का नहीं है। जब देश की गरिमा और अखण्डता रहेगी तब ही हमारा अस्तित्व सम्भव है। हमारी एकजुटता और देश हित की प्रतिबद्धता ही गलवन में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि होगी।