गहरा साया
गहरा साया
एक गांव है शहर से कोशों दूर जंगलों पहाड़ों को पार करते हुए वहां पहुंचा जा सकता है। चार कॉलेज के लड़के अपने कार से उस गांव की ओर जा रहे थे साथ में एक अधेड़ व्यक्ति भी था। इतने में कार चालक लड़के जिसका नाम परम था उसने पूछा: और कितनी देर लगेगी विश्वास तुम्हारे गांव पहुंचने में जो उसकी बगल वाली सीट पर बैठा था। लेकिन उस से पहले ही पीछे बैठे अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने एक और प्रश्न पूछने लगा। "क्या ये सच है विश्वास की तुम्हारे गांव के पुराने खंडहरों में एक साया घूमता है " । हां प्रोफेसर साहब मेरे पिताजी हमेशा उस साए की बात करते थे विश्वास ने उत्तर दिया। इतने में प्रोफेसर के बगल में बैठे नितिन ने कहा अगर हमने उस साए को अपने कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया तो हम प्रसिद्ध हो जायेंगे।। क्यों अमरीश जो उसके नितिन के बगल में बैठा था वो हां कहा। फिर वो हंसी ठिठोली करते आगे बढ़ गए वैसे भी मई का महीना था गर्मी जोरों पर थी और दोपहर का वक्त हो चला था।।
शाम होने को है अब उनकी गाड़ी ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर थी परम ने खीझ कर कहा अब लगता है दो चार दिन लगेंगे उस भूतिया गांव में पहुंचने में इतने में नितिन कहने लगा दो चार दिन और लगेगा तो हम ही साया बन जायेंगे इस बीरान बियाबान में। और सब ठहाका मार कर हंसने लगे।। कुछ दूर चलने के बाद कुछ ग्रामीण दिखने लगे। फिर आगे बढ़े दाईं ओर एक चाय की टपरी दिखी विश्वास ने अपना सर निकाला और उस टपरी वाले से पूछा :ओ काका यहां धरम प्रसाद का मकान किधर पड़ेगा। चाय वाले ने उत्तर दिया धरम बाबू का मकान आगे चलकर बाईं ओर पड़ेगा वो अभी घर पर ही हैं। अभी यहीं पर थे।। ठीक है काका धन्यवाद बोलकर विश्वास ने परम को चलने का इशारा किया।
उनकी गाड़ी एक खपरेल मगर बड़े घर के दरवाजे के पास रुकी तो गाड़ी की आवाज सुनकर एक मोटा व्यक्ति उनकी ओर बढ़ा और उनको अपने पीछे आने का संकेत किया। वो सब अंदर आए अंदर भी एक आंगन था वहां तीन लोग बैठे थे इतने में एक नाटा आदमी खड़ा हुआ और उनका स्वागत करने लगा। आइए आइए प्रोफेसर साहब हमारे गांव जौनापुरा में आपका स्वागत है। प्रोफेसर साहब उनसे हाथ मिलाए और सब बैठ गए। और एक महिला घूंघट ओढ़े आई सबके लिए चाय बना लाई थी। सब खामोश थे सबको चाय दी और वापस अंदर चली गई। सब थके हुए थे तो सबको आराम करने की जल्दी थी। विश्वास ने उस नाटे आदमी से पूछा धरम जी हमारे रहने की व्यवस्था आपने कर दिया है। धरम जी ने चाय की आखरी चुस्की लगाई और हां में सिर हिलाया और उसने सबको अपने पीछे चलने को कहा। सबने अपने अपने बैग उठाए और उसके पीछे चल गए।
उस खपरेल घर से कुछ दूरी पर ही एक छोटा बिल्डिंग था वहां आकर वह नाटा आदमी जेब से चाभी निकाल कर खोलने लगा और बोला" प्रोफेसर साहब यहां बस यही व्यवस्था हो सकता है। ज्यादा जनसंख्या नही है इस गांव में बहुत से लोग चले गए यहां से।" कहां गए और क्यों गए" इतने में नितिन ने पूछा। "वे सब लोग शहर की ओर चले गए हैं यहां डर का एक माहौल बना हु़वा है शाम 7 बजे के बाद गालियां सुनसान हो जाती हैं" ये बोलते बोलते धरम जी के आवाज में भी डर साफ झलक रहा था। सभी अपना सामान उठाए और चुपचाप अंदर दाखिल हो गए धरम जी ने लालटेन जलाई और कहा"आज ही साफ सफाई हुआ है इन कमरों का और बिस्तर भी लगा दिया गया है आपलोग अब आराम करें" इतना कह कर धरम जी वापस लौट गए। सभी अपना सामान रखे और कपड़े बदलने के बाद अपने साथ लाए भोजन को खाकर सो गए।
अचानक रात को विश्वास की आंखे खुल गई उसे किसी के दर्दनाक कराहने की धीमी आवाज सुनाई दी जैसे कोई बहुत दर्द में है उसने खिड़की खोली ही थी की एक भयानक चेहरा जिसकी लाल लाल आंखें थी उसे दिखा डर से उसकी चीख निकल गई। और उसकी नींद खुल गई वो अभी भी कांप रहा था जैसे वो साया उसके अंदर समा गया हो।
इतने में प्रोफेसर साहब उसके सर में हाथ फेरने लगे और बोले" शांत हो जाओ विश्वास ये सिर्फ एक सपना है"
इतने में नितिन और परम ब्रश करते हुए कमरे में दाखिल हुवे।
"यहां ज्यादा ग्रामीण नहीं हैं प्रोफेसर यहां जरूर कुछ गड़बड़ है अंधविश्वास यहां के लोगों को ले डूबा "
नितिन ने कहा।
"नहीं नहीं नितिन यहां जरूर कुछ रहस्य है" प्रोफेसर बोले।
"अब आप ही बताइए प्रोफेसर साहब यहां क्या रहस्य है"
परम इतने में पूछ पड़ा।
"यहां किसी शैतान का साया है जिससे लोग डरते हैं"
प्रोफेसर बोले।
"यहां हम इसी लिए तो आए हैं प्रोफेसर ताकि उस शैतानी आत्मा का खात्मा कर सकें उसके रहस्य को समझ सकें"
नितिन बोला।
तभी दरवाजे पर धरम जी आए और सबको नमस्कार किया और सबको नाश्ते के लिए आमंत्रित कर वापस चले गए।
सबने नाश्ता किया और पैदल ही पुराने किले और गुफाओं की छानबीन करने के लिए निकले आगे आगे धरम जी अपने लोगों के साथ कंधे पर बंदूक टांगे जा रहे थे और बाकी सब पीछे।
विश्वास ने पूछा" धरम जी यहां के जमींदार राजेश्वर सिंह के परिवार के साथ क्या हुआ था"
"नाम ना लो उस मनहून ज़मीदार का उसी ने उस साए को आजाद किया था धन और ताकत के लालच में" नफरत से धरम जी उत्तर दिया।
"आजाद किया था कहां से धरम जी " प्रोफेसर पूछ पड़े।
धरम जी ने आगे कहा" कहा जाता है की पहाड़ियों की चोटी पर एक गुफा है कोई जमाने में वहां नरबली दी जाती थी किसी अनजान देवता की पूजा की जाती थी।" सब ध्यान से सुन रहे था फिर आगे" एक दिन उसी जमाने में राजा चंद्रपाल ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया लेकिन वो जो उस देवता के अनुयाई थे उन्होंने विरोध कर दिया राजा के सैनिकों और उनके अनुआइयों के बीच घमासान युद्ध हुआ उसके सारे आनुआइयों को मार डाला लेकिन वो देवता नाराज हो गया उसने रात के अंधेरे में राजा रानी और उसके छोटे बेटे को मार दिया ऐसा कहते हैं और भी बहुत से लोग मरे पाए जाने लगे कोई उन्हें मार कर उनका खाल खींच लेता था। राजा का बड़ा बेटा दक्षिण की ओर था उसने अपने पिता की मृत्यु का पता चला तो वो आया और अपने साथ तांत्रिकों की फौज लेकर आया तांत्रिकों ने मंत्र शक्ति से पता लगाया की पहाड़ी की चोटी पर जो गुफा है वहीं से वो दुष्ट शक्ति जागृत होती है कोई अलग ही दुनिया का द्वार खुलता है उस गुफा में उसे बंद करना होगा। सभी ने मंत्रना किया और गुफा में इक्कीस दिन का महायज्ञ करना शुरू किया बहुत से तांत्रिकों ने अपनी जान दे दी तब जाकर उसका द्वार बंद हुवा।" इतना कहने के साथ की धरम जी खामोश हो गए।
"और उस जमीदार की कहानी क्या है धरम जी" नितिन पूछ पड़ा।
"ठीक है बताता हूं" कह कर धरम जी ने एक लंबी सांस लिया।
कहानी शुरू होती है इस इलाके में अंग्रेजों के आने से उस समय यहां के जमींदार राजेश्वर सिंह थे अंग्रेजों ने उनसे उनकी सारी संपत्ति छीन ली और उन्हें यहां से निकल जाने का आदेश दिया पर वे नहीं माने उन्होंने सुन रखा था की चोटी वाली गुफा में असीम ताकत और असीम धन है। उनका एक पुजारी था जो बहुत लालची था।उसी ने उन्हें सुझाव दिया। जमींदार अपने लोगों को साथ लेकर चोटी पर उस गुफा में पहुंच गए और गुफा का द्वार खोलने के लिए 21 दिन का जाप करने लगे यहां के ग्रामीणों को देर से मालूम चला की वे अनर्थ करने वाले हैं जब तक उन्हें रोकते तब तक गुफा का द्वार खुल चुका था लेकिन पूरी तरह से नहीं अधूरा ही खुला था वो कयामत का रात थी ग्रामीणों को बेरहमी से मरते देख उन्होंने अपने मंत्र जाप बंद कर सब भाग निकले तब से अब तक यहां का हवा भी डरावना है" इतना कह कर फिर वो चुप हो गए।
अब वो पुराने किले के खंडहरों में पहुंच चुके थे।
" प्रोफेसर साहब ये मुगलों से भी पहले के खंडहर हैं आपलोग इसी पर डॉक्यूमेंट्री बनाना चाह रहे थे ना"
धरम जी पूछ पड़े।
प्रोफेसर साहब ने हां में सिर हिलाया।
अमरीश सब से पीछे था ज्यादा बात नहीं करता था वो सबकी बातों को चुपचाप सुनता था। वो प्रोफेसर साहब का हेल्पर था और उनका ख्याल रखता था और नितिन कैमरामैन था और विश्वास एक वाचक था परम जो चालक भी था और रक्षक भी। अब बारी है प्रोफेसर की ,नाम निर्मल पांडे अलौकिक रहस्यों की खोज और एक पहुंचे हुए तांत्रिक भी थे। उनका जिज्ञासु स्वभाव उन्हे आज यहां लेकर आया था।
इधर उधर किले के आसपास खोज करने के बाद दोपहर का समय भी ढलने लगा तो अचानक धरम जी आकार बोले " प्रोफेसर साहब अब चलना होगा शाम होने वाली है" नितिन ने सबको आवाज लगाई और सब अपने सामान समेटे और वापस अपने ठिकाने की ओर चल पड़े।
प्रोफेसर साहब ने फिर धरम जी से पूछा" धरम जी उस गुफा का द्वार आपलोगाें ने फिर बंद क्यों नहीं किया।"
"हमने कोशिश की थी मैं उस वक्त बच्चा था मेरे पिताजी ने ग्रामीणों के साथ मिलकर द्वार बंद करने का फैसला लिया था लेकिन वो द्वार खोलने और द्वार बंद करने की विधि जिस किताब में थी वो किताब उस आखरी द्वार खोलने की विधि के दौरान खो गई आज तक नहीं मिली"
इतना कहकर धरम जी चुप हो गए।
"आपने ढूंढने की कोशिश नहीं की" नितिन पूछ पड़ा।
"ढूंढा बहुत ढूंढा मेरे पिताजी ने अपनी सारी उम्र उस किताब को ढूंढने में लगा दिया पर मिला नहीं। पर किताब के रहस्य को वे जान चुके थे। उस किताब में उस द्वार की ही नहीं बहुत सी अलौकिक जानकारियां थीं।उस किताब का ज्ञाता भूत और भविष्य भी देख सकता था। मेरे पिताजी ने बताया था।" धरम जी बोलते बोलते फिर चुप हो गए।
प्रोफेसर ने फिर पूछा " और क्या कहा था आपके पिताजी ने धरम जी"
" उन्होंने अपने आखरी दिनों में मुझसे बार बार बस यही कहते थे की उस किताब को ढूंढूं और द्वार बंद करके उस किताब को नष्ट कर दूं" धरम जी बोले।
"आपने कोशिश नहीं की ढूंढने की" प्रोफेसर साहब पूछ पड़े।
"मैने लोगों को बचाने की सोची उस श्रापित स्थान से दूर आकार हमने इस स्थान पर डेरा डाला। अब यहां पर सब ठीक है।" धरम जी बोले।
इतने में शाम होने को आई सब गांव पहुंच गए और अपने अपने ठिकाने की ओर जाने लगे।
मैं आपलोगों के लिए भोजन बनवाता हूं प्रोफेसर साहब" इतना कहकर धरम जी अपने बंदूक वाले लोगों के साथ चले गए।
रात को भोजन करने के बाद लालटेन जला कर एक साथ सब बैठ गए और बातें करने लगे। प्रोफेसर साहब ने विश्वास को इशारा कर कहा" वो किताब लेकर आओ"।
थोड़ी देर बाद विश्वास वो किताब लेकर आया। अचानक नितिन की आंखों में चमक आ गई "यही वो किताब है प्रोफेसर"
प्रोफेसर ने हां में अपना सिर हिलाया।
"तो कितना पृष्ट तक अनुवाद कर चुके हो विश्वास"
प्रोफेसर ने पूछा।
"इस किताब के सारे शब्द संस्कृत में थे प्रोफेसर मेरे परिवार ने वर्षों से इस किताब की रक्षा की है"।
थोड़ी देर रुक कर
"राजेश्वर सिंह मेरे दादाजी थे प्रोफेसर उस रात को वो किताब लेकर भागे थे पर वो उस शैतान के वश में थे मेरे पिताजी ने बहुत इलाज करवाया लेकिन वो कभी ठीक नही हुए बस अशुद्ध मंत्रों का उच्चारण करते रहते थे।वो पागल हो गए थे" "और मैं उस द्वार को बंद करने बाद अपने खानदान में लगे कलंक को मिटाऊंगा प्रोफेसर" इतना कह कर विश्वास चुप हो गया।
"मैं तुम्हारे साथ हूं" अमरीश ने उसे सांत्वना दिया।
" तो हमें काम पर लग जाना चाहिए कल से ही अमरीश तुम द्वार बंद करने की विधि में लगने वाले वस्तुओं का प्रबंध करोगे और परम तुम बाबा गौरा नाथ को संदेश भेज दो और अमावस्या की रात से पहले अपने शिष्यों के साथ इस गांव में पहुंच जाएं" प्रोफेसर साहब ने कहा।
"और मैं" नितिन ने पूछा।
"तुम मेरे और विश्वास की मदद करोगे"
प्रोफेसर ने नितिन से कहा।
"अब सब सो जाओ" प्रोफेसर बोले और अपने कमरे की ओर चले गए।
सुबह का समय था। परम ने गाड़ी स्टार्ट किया और अमरीश के साथ उस गांव से लगभग 30 की. मी. दूर एक छोटे शहर की ओर चला गया।
तभी धरम जी को आता देख प्रोफेसर ने उनको अपनी तरफ आने का इशारा किया।
"क्या हुआ प्रोफेसर साहब" धरम जी ने पूछा।
"आपसे मुझे कुछ बात करनी है" प्रोफेसर ने जवाब दिया।
" क्या बात" धरम जी ने फिर पूछा।
"धरम जी हम यहां एक खास मकसद से आए हैं" प्रोफेसर ने कहा।
"किस मकसद से थोड़ा खुल कर बताइएगा" धरम जी ने पूछा।
"हम यहां उस पहाड़ी वाले गुफा के शैतानी द्वार को बंद करने आए हैं हमारे पास उस विधि को करने वाली किताब भी है" प्रोफेसर ने जवाब दिया।
"आपने तो कहा था की आपलोग यहां की ऐतिहासिक विरासत पर रिसर्च करने आए हैं" धरम जी ने बड़े आश्चर्य से पूछा।
"हमें बाबा गौरा नाथ ने भेजा है" प्रोफेसर ने उत्तर दिया।
बाबा गौरा नाथ का नाम सुनते ही धरम जी को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि बाबा गौरा नाथ एक सिद्ध पुरुष थे।
गौरा नाथ के गुरु की जान भी इसी द्वार को बंद करने में गई थी धरम जी यादों में खो गए थे उनको टोकते हुए प्रोफेसर साहब ने पूछा" कहां खो गए धरम जी"
"बस ऐसे ही बाबा गौरा नाथ के गुरु को याद कर रहा था।
"तो बाबा गौरा नाथ कब आने वाले हैं प्रोफेसर साहब"
धरम जी ने पूछा।
"अमावस्या से एक दिन पहले वो यहां अपने शिष्यों के साथ पहुंच जायेंगे धरम जी" प्रोफेसर ने जवाब दिया।
"तो मैं आपके लिए और क्या करूं प्रोफेसर साहब"धरम जी ने पूछा।
इतने में विश्वास और नितिन वहां पहुंच गए।
"हमें वहां आपको ले जाना होगा धरम जी" नितिन ने कहा।
"कब " धरम जी ने पूछा।
"आज और अभी" विश्वास ने उत्तर दिया।
"उसके लिए तैयारी करनी होगी" धरम जी ने उत्तर दिया।
किस तरह की तैयारी धरम जी"नितिन ने पूछा।
"हम सबको रक्षा कवच बंधवानी होगी"धरम जी ने उत्तर दिया।
" किस तरह की कवच और कौन बंधेगा धरम जी " विश्वास ने पूछा।
"यहां काली मंदिर के साधु बाबा हैं वही बंधेंगे लेकिन वो सिर्फ एक दिन ही काम करेगा इसलिए हमें वहां जा कर जल्दी लौट आना होगा" धरम जी ने उत्तर दिया।
"तो अभी ही चलते हैं" प्रोफेसर साहब बोले।
"हां चलिए" धरम जी ने उत्तर दिया और सभी तेजी से चलने लगे रास्ते में धरम जी के बंदूक वाले साथी भी मिल गए वो भी साथ हो लिए।
काली मंदिर के पास बाबा आंखे मूंद कर बैठे हुए थे सबने उन्हें प्रणाम किया और सब खड़े हो गए।
बाबा ने अपनी आंखें खोली और कहा" मैं जानता हूं आपलोग यहां क्यों आए हैं" नितिन को आश्चर्य हुवा।
बाबा ने अपनी जटाओं को नोचा फिर सबके बांए हाथ में बांधने लगा।
"जाओ तुम जिस काम के लिए आए हो वो काली मां पूरा करेगी"।
सभी वापस लौट आए।
कुछ देर बाद सभी जंगल वाले रास्ते में आगे बढ़ रहे थे।
वे काफी तेजी से चल रहे थे सबके चेहरे पर खौफ साफ झलक रहा था। लेकिन वे उस शैतानी द्वार को बंद करने के इरादे से आगे बढ़ते ही जा रहे थे।
पुराने किले को पार करने के बाद वे उस पहाड़ के समीप पहुंच चुके थे। अब उन्हें पहाड़ चढ़नी थी वे पहाड़ चढ़ते गए थोड़ी मुश्किलें आई मगर वो बढ़ते ही जा रहे थे।
"मेरी तो कमर ही टेढ़ी हो गई" नितिन ने खिझकर कहा।
लेकिन वो चढ़ते जा रहे थे फिर उन्हें उस गुफा का विशाल द्वार दिखा जहां तहां मानवों और जानवरों का कंकाल फैला हुआ था। अब वे गुफा के अंदर थे नितिन ने कैमरा और लाइट ऑन कर दिया। पूरे गुफा में दुर्गंध फैला हुआ था जितनी वो आगे बढ़ते अंधेरा और गहराता चला जा रहा था। इतने में नितिन की चीख निकल गई सामने किसी को देखकर लेकिन वो एक पत्थर की मूर्ति थी। कितना भयंकर आकृति थी उसे देखकर ही रूह कांप उठती।
फिर वे गुफा के अंत में पहुंचे वहां रोशनी थी ऊपर शीर्ष पर गोलाकार छेद था जहां से रोशनी आ रही थी सामने ही बलिवेदी बनी हुई थी पत्थर की जिस पर मानवों की बलि दी जाती थी।
तभी प्रोफेसर साहब गुफा के दीवार पर बने गोल दरवाजे को देखकर चौंक गए। "यही है यही तो है वो द्वार जिसे हमें बंद करना है" प्रोफेसर बोल पड़े।
"ऐसी ही आकृति उस किताब में भी है प्रोफेसर साहब"
विश्वास ने उत्तर दिया।
तभी उन्हें बहुत से लोगों की दर्द भरी कराह सुनाई देने लगी" हमें बचाओ मुक्ति दो हमें" इस तरह की आवाज जैसे वहां अनगिनत आत्माएं हैं उन्हें पुकार रहे हैं। उनकी आवाज में इतना दर्द था की उसे सुनकर जिंदा व्यक्ति की आत्मा भी कांप जाए।
तभी प्रोफेसर कुछ मंत्र बड़बड़ाने लगे और एक शीशी निकाली जिसमें गंगाजल थी उसे हाथ में लेकर झिड़क दिया। आवाजें आनी बंद हो गई।
तभी प्रोफेसर वहां आंखें मूंदकर और मंत्रजाप कर किसी का नाम बुदबुदा रहे थे।
तभी अचानक एक धुंध जैसी आकृति आकार लेने लगी
जब वो अपनी पूरी आकार में आई तो धरम जी चौंक उठे।" ये तो ये तो बाबा अघोर नाथ बाबा गौरा नाथ के गुरु हैं"।
प्रोफेसर ने धरम जी को चुप रहने का संकेत किया।
"मुझे क्यों जगाया" कड़क आवाज में वो आकृति बोली।
" बाबा जी प्रणाम हमें आपके शिष्य गौरा नाथ ने भेजा है हम उस द्वार के रहस्य को जान ना चाहते हैं"
प्रोफेसर ने उत्तर दिया।
उस आकृति ने जवाब दिया" मुझे मुक्ति मिल चुकी है फिर भी मैं यहां हूं यहां बहुत सी निर्दोष आत्माएं कैद हैं जिन्हे छोड़कर मैं नहीं गया। मैंने ही गौरा नाथ के स्वप्न में आकर कहा था उस किताब को ढूंढ कर इस द्वार को बंद करो और मैंने ही उसे तुम सब को एक जुट करने को कहा था।
मैं इन सब आत्माओं को मुक्त करना चाहता हूं"। लेकिन ये काम बहुत सावधानी से करना होगा तुमलोग को"।
" किस से सावधानी गुरुदेव" प्रोफेसर साहब फिर पूछे।
" द्वापर युग में यमराज ने अपने 3 विद्रोही यमदूतों को उनकी बात ना मानने पर यहां कैद कर दिया था यहां कोई और आयाम जिसका ये द्वार है लेकिन मनुष्यों ने अपने लालच के लिए उस द्वार को खोलकर उन्हें आजाद कर दिया जिस से वे यहां निर्दोष मानवों को मारकर उनकी आत्माओं को लाकर उनकी आत्माओं को कैद करते हैं
वे अब जागने वाले हैं तुमलोगाें अब यहां से जाना होगा" ये कहकर वो आकृति फिर से धुंध में बदलकर अदृश्य हो गई सब पीछे मुड़े और तेज़ी से भागने लगे प्रोफेसर का एक इशारा पाकर।
शाम का समय हो चला था धरम जी अपने साथियों और प्रोफेसर के साथ अपने गांव वाले ठिकाने सकुशल पहुंच चुके थे।
अगली सुबह अचानक गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई दी साथ में सो रहे नितिन और विश्वास की आंखें खुली तो परम और अमरीश शहर से वापस आ चुके थे।
नितिन अपनी आंखें मलते हुए बाहर निकला तो देखा कि परम और अमरीश बहुत सारे सामानों को गाड़ी से उतार रहे थे। और प्रोफेसर साहब और धरम जी आपस में चाय की चुस्की लेते हुए बातें कर रहे थे।
"तुमने बाबा गौरा नाथ को संदेश भेज दिया परम" प्रोफेसर ने परम से पूछा।
"हां" परम ने उत्तर दिया।
"अब तो बस बाबा गौरा नाथ का इंतजार है उन्हें अमावस्या से पहले आना होगा " प्रोफेसर ने मायूसी भरे शब्द बोले।
"वे समय से आ जायेंगे आप घबराइए मत" विश्वास ने उनको ढाढस बंधवाते हुए कहा।
"उम्मीद तो उन्ही पर टिकी है।"प्रोफेसर साहब ने कहा।
"तो अब हमें क्या करना है प्रोफेसर साहब" नितिन ने पूछा।
"अब सब अपनी अपनी तैयारी में लग जाओ" प्रोफेसर ने कहा।
"धरम जी आप अपने लोगों को यहां से दूर जाने को कहिए वे शैतान अमावस्या की रात्रि को अपनी पूरी ताकत लगा देंगे हमें रोकने के लिए"।
"जी प्रोफेसर साहब" धरम जी ने उत्तर दिया।
"और सुनिए धरम जी हमें दर्जन भर लोग भी चाहिए"
प्रोफेसर ने कहा।
"जी मेरे लोग तो कब से तैयार बैठे हैं प्रोफेसर साहब" धरम जी ने उत्तर दिया और चुप हो गए।
फिर प्रोफेसर निर्मल पांडे नितिन की ओर मुड़े और कहने लगे " तुम्हे लाइट की पूरी व्यवस्था करनी है नितिन और रिकॉर्ड की भी"
"हां प्रोफेसर साहब" नितिन ने जवाब दिया।
"और हमें क्या करना है प्रोफेसर साहब"इतने में परम और अमरीश एक साथ पूछ पड़े।
"तुमको परम,नितिन और धरम जी की मदद करनी है और तुमको अमरीश हमारे साथ रहना है और विश्वास बाबा गौरा नाथ के साथ रहेगा"। सबने एक साथ अपना सर हां में हिलाया।
" इसमें हमारी जान भी जा सकती है लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे कसम खाओ" प्रोफेसर ने फिर कहा।
"हम कसम खाते हैं" सबने एक स्वर में कहा।
तभी अचानक किसी के आने की आहट हुई वे सब उसी दिशा में मुड़े सामने देखा तो काली मंदिर वाले बाबा लड़खड़ाते हुए उनके पास आ रहे थे। सबने उन्हें प्रणाम किया।
बाबा ने उन सबको विजय होने का आशीर्वाद दिया।
और प्रोफेसर के सामने पत्थर पर बैठ गए।
बाकी सब चले गए बस प्रोफेसर साहब विश्वास और बाबा ही बैठे रहे।
बाबा बोले " मैं उन शैतानी सायों को रोकूंगा प्रोफेसर।
मैं उस पहाड़ से उन शैतानी आत्माओं को नीचे बसे गांवों में जाने नहीं दूंगा"।
"धन्यवाद बाबा" प्रोफेसर साहब ने कहा।
फिर बाबा उठे और वहां से चले गए।
" आज से तीसरा दिन बाद अमावस्या की रात होगी विश्वास" प्रोफेसर ने कहा।
"जी हां प्रोफेसर" विश्वास ने उत्तर दिया।
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सभी तैयारियों में लग चुके थे अभी दो दिन और शेष था की अचानक लोगों के बिना खाल वाले शव जंगलों में मिलने लगे और लोग गायब भी होने लगे डर का माहौल फिर से बनने लगा। शैतानी दूतों ने निर्दोष लोगों का प्राण हरण करने लगे उनके रक्त पीने और मांस खाने लगे।।।।
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"दो दिन गुजर गए पता ही नहीं चला आज आखिर वो दिन आ ही गया" प्रोफेसर ने विश्वास से कहा।
तभी परम चिल्लाते हुए कमरे में दाखिल हुआ।
"गुरु गौरा नाथ जी आ गए हैं" ।
सभी बाहर निकल आए और गुरु गौरा नाथ के पास भागते भागते जाने लगे।
गुरु गौरा नाथ बरगद के बड़े से वृक्ष के नीचे ध्यान अवस्था में बैठे हुए थे और उनके शिष्य पहरा दे रहे थे।
तभी बहुत से ग्रामीण और प्रोफेसर साहब अपने लोगों के साथ वहां पहुंचे।
सबने उन्हें प्रणाम किया और सभी वहीं बैठ गए।
कुछ देर बाद गुरु गौरा नाथ अपनी आंखें खोल प्रोफेसर और विश्वास को अपने पास आने को कहा।
प्रोफेसर और विश्वास उनके समीप जाकर उनकी ओर अपना मुख करके बैठ गए।
"निर्मल तैयारी कैसी चल रही है" बाबा गौरा ने पूछा।
"सारी तैयारी हो चुकी है" प्रोफेसर साहब ने उत्तर दिया।
"चलो अच्छा है अब हमें वहां चलना चाहिए" कहकर उठने लगे और उस पहाड़ी की ओर चलने लगे।
प्रोफेसर ने सबको इशारा किया सब अपने अपने सामान तुरंत उठाकर बाबा गौरा नाथ के साथ हो लिए। जैसे जैसे उनके कदम उस ओर बढ़ रहे थे हवाएं तेज हो रही थी और काले बादल पूरे पहाड़ हो घेर ले रहे थे।
नितिन और परम दौड़ते हुए कुछ ग्रामीणों के साथ बाबा गौरा नाथ से आगे बढ़ गए थे।
प्रोफेसर साहब, धरम जी,विश्वास और अमरीश बाबा गौरा नाथ और उनके शिष्यों के साथ थे। साथ में कुछ और भी ग्रामीण थे। उनसे कुछ दूर पर काली मां मंदिर के बाबा भी आ रहे थे। उन्होंने आज ठान लिया था जौनापुर को शैतानी सायों से मुक्ति दिलाने का।सदियों से चली आ रही खूनी खेल को समाप्त करने के इरादों के साथ सभी आगे बढ़ रहे थे।
दोपहर का समय था बाबा गौरा नाथ पहाड़ी के समीप पहुंच चुके थे। वे अपने हाथों में कुछ जल लिए और मंत्रोचार करने लगे और उस जल को आसमान में उछाल दिया। फिर आगे बढ़ गए। उस पहाड़ पर चढ़ने लगे शाम होने को था।बाबा गौरा नाथ गुफा के बाहर ध्यान अवस्था में बैठ गए उनके शिष्य उनको घेर कर बैठ गए महायज्ञ की सारी वस्तुओं को प्रोफेसर, विश्वास और आमरीश निकाल निकाल कर हवन कुंड के सामने रखने लगे। बाबा गौरा नाथ का एक शिष्य उठा और हवन कुंड में आग जला दिया। अब थोड़ा थोड़ा अंधेरा होने लगा तो नितिन ने बैटरी से लाइट जला कर पूरे पहाड़ को प्रकाशित कर दिया था।
थोड़ी देर बाद अमावस्या की रात का प्रथम चरण आरंभ हो चुका था माहौल डरावना हो रहा था आत्माओं की कराह चारों तरफ गूंज रही थी।
बाबा गौरा नाथ ने शिव जी के आवाहन के साथ द्वार बंद करने की विधि का आगाज किया।
सभी ने मिलकर सामूहिक मंत्रोचार आरंभ किया। चारों तरफ संस्कृत के श्लोक गूंजने लगे इतने में आत्माओं की दर्दनाक आवाज भी तेज होती जा रही थी।उनके साथ आए आस पास के ग्रामीण भी पारंपरिक हथियारों से लैस होकर हवन स्थल को चारों ओर से घेर लिया था। रात और गहरी होती जा रही थी रात को विचरण करने वाले जानवरों के रोने की आवाजें और भी रात को भयंकर बना रही थी। लेकिन फिर भी सामूहिक मंत्रोचार नहीं रुक रहा था।।
हवन की अग्नि ऐसे धधक रही थी मानो स्वयं महाकाल तांडव करने वाले हैं। प्रोफेसर साहब ने विश्वास से कहा "अच्छा हुआ धरम जी के पिताजी ने अपनी डायरी गुरु गौरा नाथ जी के पास भिजवाया था क्योंकि इस गुफा के द्वार को खोलने और बन्द करने की विधि में इक्कीस दिन का समय लगता था। तुम्हारे दादा जी ने सिर्फ एक ही कड़ी खोलने में कामयाबी पाई थी अगर पूरी 21 कड़ी खुल जाती तो आज के युग में इसे बंद करना नामुमकिन था" विश्वास ने हां में अपने सर को हिलाया।
नितिन अपने कैमरे से रिकॉर्डिंग करने में व्यस्त था तो परम भी लाइट व्यवस्था देख रहा था।
तभी अचानक से बहुत जोरों से बिजली कड़की और कुछ लाइट बल्ब फ्यूज हो गए परम बोरे से बल्ब निकाल कर बदलने लगा। अचानक एक अद्भुत प्रकाश गुफा से निकलने लगी सभी की नजर उस अद्भुत प्रकाश को देख रही थी।
तभी बाबा गौरा नाथ चीख पड़े" आंखे बन्द करो शैतानी आयाम का द्वार खुल रहा है वे बाहर आने वाले हैं"
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धरम जी अपने ग्रामीण साथियों के साथ पहरा दे रहे थे अचानक उनकी नजर पहाड़ की तरफ तेजी से आते लोगों पर पड़ी। वे सामने आते जा रहे थे। धरम जी और उनके साथियों ने अपने अपने बंदूक उनकी तरफ तानी हुई थी धरम जी चीखे" सब तैयार हो जाओ"।
कुछ सायों की आकृति अब साफ नजर आने लगी थी।
वहीं पर काली मंदिर के बाबा समाधि लगाकर बैठे हुए थे वे साए उन्हें नजरंदाज करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
उन आकृतियों का चेहरा बहुत भयानक था उनके शरीर से खाल उधड़े हुए थे। खून उनके शरीर से टपक रहा था फिर भी वो भयंकर आवाज करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
(ये वो अतृप्त आत्माएं थी जो उन दुष्ट यमदूतों की गुलामी करती थीं उन्हें अपना देवता मानती थी)
" गोली चलाओ" धरम जी चीख पड़े उनके साथी धांय धांय गोली चलाने लगे। उन विकृत आकृतियों का मांस गोली लगने से इधर उधर फेकाने लगा। युद्ध का आरंभ हो चुका था।
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गोली चलने की आवाज सुनाई देते ही प्रोफेसर ने अमरीश की तरफ इशारा किया। अमरीश उन पारंपरिक हथियारों से लैस ग्रामीणों की अगुवाई कर रहा था। उसने अपने साथ लाए बड़े बक्से को खोला उसमें मशीन गन के साथ बम गोले और रॉकेट लांचर रखे हुए थे। उसने मशीन गन को उठा कर लोड किया और उन विकृत आकृतियों को रोकने के लिए धरम जी के पास चले गए। साथ में पारंपरिक हथियारों से लैस ग्रामीण भी उसके पीछे पीछे जाने लगे।
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गुफा के अंदर से उन यमदूतों के साए बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे उनका विभस्त रूप देख कर सबके रोंगटे खड़े हो रहे थे। लेकिन मंत्रोचार की शक्ति ने उन्हें बांधे रखा था।
रात्रि के लगभग बारह बजने वाले थे इधर उन विकृत आकृतियों को रोकने में कुछ ग्रामीणों की जान भी जा चुकी थी फिर भी धरम जी अपने साथियों के साथ मोर्चा संभाले हुए थे। अमरीश और उसके साथ आए ग्रामीणों को देखकर उनके होशले बुलंद हो चुके थे अमरीश अपने मशीन गन को उनकी तरफ घुमा कर गड़गड़ा दिया। और जिस जिस भी विकृत आकृतियों को उसकी गोली लग रही थी उनके चिथड़े उड़ते जा रहे थे। पारंपरिक हथियारों से लैस ग्रामीण भी अब टूट पड़े थे तलवार बरछे और भालाओं से उनका सामना करने लगे थे।
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जंगली मुर्गे ने बांग दी।। सुबह होने को थी। बाबा गौरा नाथ और उसके शिष्य किताब के आखरी पन्नों का मंत्रोचार संपन्न करने वाले थे। थोड़ी देर बाद सूरज की लालिमा दिखने लगे इसी के साथ गुफा के अंदर जगमगाती रोशनी धूमिल होने लगी।
इधर धरम जी और अमरीश उन विकृत आकृतियों को रोकते रोकते भारी थक गए थे। अचानक वो आकृतियां जलने लगी और भस्म होने लगी। " लगता है हम कामयाब रहे" धरम जी ने कहा। ग्रामीण खुश होकर विजय उल्लास मनाने लगे। उधर गुरु गौरा नाथ ने मंत्रोचार समाप्त होने की घोषणा की। सब खुश तो थे मगर बहुत से साथियों को भी खोने के कारण मायूस थे। अचानक बाबा गौरा ने उस किताब को उठाया और उस हवन कुंड में डाल दिया। प्रोफेसर चिल्लाए " आपने ये क्या किया बाबा"
"इस संसार के हित के लिए ये जरूरी था प्रोफेसर" बाबा गौरा नाथ ने प्रोफेसर को उत्तर दिया।
अब सब उस गुफा के बाहर जमा हो चले थे। बाबा गौरा ने सब को उस गुफा को पत्थरों से बंद करने का आदेश दिया।
सबने मिलकर उस गुफा के द्वार को बंद कर दिया । और सब लोग वापस लौटने लगे। घायलों को अपने साथ उठाकर ग्रामीण वापस अपने गांव की ओर जाने लगे।
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दोपहर का समय था बाबा अपने शिष्यों के साथ निकल चुके थे बस बाकी थे तो प्रोफेसर ,नितिन, परम और विश्वास वे भी अपनी गाड़ी में बैठ के जाने वाले थे तभी धरम जी ग्रामीणों के साथ आए और उनका आभार करने लगे उनके लिए कुछ तोहफे भी साथ लाए थे। फिर वे लोग उनसे विदा लिए गाड़ी में बैठे और वहां से निकल गए।
आठ घंटे का सफर करने के बाद वे सब प्रोफेसर के मकान में चाय पी रहे थे तो प्रोफेसर साहब ने विश्वास को टोका " उस किताब की नकल तुम रखे हो ना विश्वास"
विश्वास ने हां कहा। और कथा यहीं समाप्त होती है।