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Deepak Kumar

Children Stories Others Children

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Deepak Kumar

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दस रुपए की नोट

दस रुपए की नोट

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एक सरकारी स्कूल की बात है वहां कल किसी जादूगर का शो होने को था। सभी बच्चे को कहा गया था की दस दस रुपए का चंदा देना होगा। रामू जो की एक गरीब परिवार का था वो सोच में पड़ गया की दस रुपए वो कहां से ढूंढेगा। पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और मां दूसरों के घरों में बर्तन धोती है। वो यही सोचते सोचते स्कूल से पैदल घर आ रहा था। कुछ बच्चे जादू के खेल की कल्पना करते हुवे बातें करते आ रहे थे और उत्साहित भी थे। पर रामू का सारा ध्यान तो पैसे की जुगाड़ी पर लगा हुआ था। क्योंकि जादू का खेल बच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी रोमांच पैदा करता था।

वो अपने घर के पास पहुंचा लेकिन वो अब भी गहन चिंतन और सोच में पड़ा हुआ था।

 एक शिक्षक थे नरेन पाल वे थोड़े मजाकिया किस्म के थे उन्हें ही बच्चों को दस रुपए चंदा जमा करवाने की जिम्मेदारी दी गई थी तो बच्चों को डराने के लिए उन्होंने कह रखा था की "जो बच्चा चंदा जमा नहीं करेगा और मुफ्त में देखेगा उसे जादूगर मेंढक बना के अपने साथ ले जायेगा"। 

तो रामू को जादू के खेल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी उसे तो बस खुद को मेंढक बनाने से बचाना था।

उसने अपनी मां के पास आकर डरते डरते कहा" मुझे दस रुपए चाहिए"।

मां ने उसकी तरफ घूर कर देखा और कहा "क्यों"

"वो हमारे हिंदी के मासाब ने कहा है की दस रुपए उनके पास सारे बच्चों को जमा करना होगा" रामू ने सकुचाते हुवे उत्तर दिया।

उसकी मां ने फिर पूछा" क्यों जमा करने हैं"

"वो स्कूल में जादू का खेल होने वाला है इसलिए"रामू ने डरते डरते जवाब दिया।

"ठहरो तुम्हारे पिताजी को आने दो मैं उनसे मांगा दूंगी" मां ने उसे सांत्वना दिया।

रामू थोड़ा खुश हुआ और बाहर खेलने चला गया और अपने अड़ोस पड़ोस के बच्चों को बताने लगा की उसके स्कूल में जादू का खेल होने वाला है और जो मुफ्त में देखेगा उसे मेंढक बना कर जादूगर अपने बोरे में डाल के अपने साथ ले जायेगा।

अंधेरा होने को था रामू ने दूर से देखा की उसके पिताजी साइकिल चलाते हुवे घर की ओर आ रहे हैं।

वो दौड़ के घर पहुंचा और अपनी मां जो रशोई में खाना बना रही थी उन्हें बताने लगा की " पिताजी आने वाले हैं उनसे दिला देना"।

मां ने हां में सिर हिलाया। रामू अपना बस्ता खोल कर पढ़ाई करने बैठ गया। पिताजी आए साइकिल को दीवार से लगाया हाथ मुंह धोया और अपने थैले से कुछ हरी साग सब्जियों को निकाल कर रामू की मां के तरफ बढ़ाते हुवे कहने लगा" आजकल महंगाई इतनी बढ़ गई है की हम गरीबों के किस्मत में तो हरे साग सब्जी खाना ही नहीं लिखा है" "ऐसा क्यों कह रहे हैं" रामू की मां ने टोका। तभी रामू जो पढ़ाई कर रहा था अपनी मां को इशारा किया की उसकी मांग को पिताजी के आगे रखने को कहा। मां ने उसे हाथ हिला का कहा रुक जाओ थोड़ी देर बाद।

खाना बन के तैयार था रामू की मां ने अपने पति को आवाज लगाई जो बाहर मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ बैठकी कर रहे थे। "ओ रामू के बापू अरे ओ रामू के बापू खाना तैयार है आकार खा लो मैंने खाना लगा दिया है"।

रामू के पिता ने सबसे विदा ली और आकार रामू के बगल में बैठ गए जो पहले से ही खाना खा रहा था।

रामू ने फिर अपनी मां को इशारा किया। 

"रामू के बापू कल रामू के स्कूल में जादू का खेल दिखाया जायेगा " रामू की मां ने कहा।

"हां ये तो अच्छी बात है" पिताजी बोले।

"लेकिन" रामू की मां बोली।

"लेकिन क्या रामू की मां" पिताजी पूछे।

"यही की दस रुपए का चंदा जमा करने को कहा है स्कूल वालों ने हर बच्चे को" रामू की मां ने उत्तर दिया।

"आज कल सरकारी स्कूलों भी लूट मची है" रामू के बापू कहने लगे " कोई बात नहीं सुबह मैं दस रुपए जाने से पहले दे जाऊंगा"।

रामू खाना खाया और चुप चाप सो गया। 

सुबह स्कूल का समय होने को था रामू जल्दी ही उठ कर तैयार बैठा था। पिताजी अपने काम पर निकल चुके थे और मां भी अपने काम से बाहर जाने वाली थी।

"मां पैसे जो पिताजी ने दिए हैं वो कहां हैं" रामू ने अपनी व्यस्त मां को टोकते हुवे पूछा। "वहीं दीवार के दरख़्त पर तो रखा है। रामू ने पैसे वहां जल्दबाजी से उठाए और स्कूल की ओर भाग निकला उसके स्कूल के सारे बच्चे खुश दिखाई दे रहे थे। कोई कह रहा था ऐसा खेल होगा वैसा खेल होगा सिर्फ जादू की ही बातें हो रही थी।

जादू का खेल शुरू हुआ। जादूगर एक से बढ़कर एक खेल दिखा कर बच्चों में रोमांच पैदा कर चुका था। अचानक रामू ने अपने जेब में हाथ डाला ही था की उसके पैरों से जमीन खिसक गई।" अरे ये क्या हुआ" उसके जेब में जो दस रुपए का नोट था वो कहां गया।

उसने इधर उधर नजरें दौड़ाई उसे कहीं ना मिला। हताश और परेशान हो गया उसके साथ ही उसके पसीने छूटने लगे। वो सोच में पड़ गया अगर उसने पैसे नही दिए तो उसका आज मेंढक बनना तय है। वो जाए तो कहां जाए वो भागे तो कहां भागे जो बच जाए। ।

जादू का खेल अब खत्म हो चुका था सारे बच्चे तालियां बजा रहे थे और खुश थे।। लेकिन रामू बहुत दुखी था उसकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं था।

शिक्षक नरेन पाल एक बक्से ले कर साइड में बैठे थे वहीं जादूगर भी बैठ गए और दोनों बातें कर रहे थे बच्चे एक एक कर के उस बक्से में दस रुपए के नोट डालते जा रहे थे।

इधर रामू गहरी सोच में पड़ा हुआ था। अब यहां से कैसे निकले कैसे भागे।

जैसे जैसे बच्चों की कतार आगे बढ़ रही थी उसकी धड़कनें भी बढ़ रही थी। एक एक कर के सारे बच्चे पैसे देकर अपनी कक्षा में घुसे जा रहे थे। रामू की सांसें फूल रही थी। तभी अचानक उसकी बारी आ ही गई वो अपना सर झुकाए पार होने ही वाला था की शिक्षक नरेन पाल ने उन्हें टोका। " पैसे कहां है मुन्ना" रामू ने डरते डरते कहा "मेरे पास नहीं है सर" 

तभी नरेन पाल ने उसे अपने पास बुलाया । और जादूगर हंसने लगा। उसको हंसता देख रामू और जोर से डरने लगा। वो सोचने लगा अब उसे जादूगर नहीं छोड़ेगा। जादूगर ने अपना हाथ बढ़ाया और उसके सर पर फेरा और उसे जाने को बोला। बस इतना ही वो सोचने लगा फिर वो अपने कक्षा में आ गया। अब उसने चैन की सांस ली। फिर कक्षा अपने समय पर छुट्टी हुई। वो घर आ गया। तभी उसकी मां ने टोका "तुम पैसे क्यों नहीं ले गए थे। वहीं दरख़्त में ही पड़े हुवे हैं" रामू दौड़ के गया उसने देखा की पैसे तो वहीं हैं। अब वो बहुत खुश था।।


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