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Deepak Kumar

Comedy Horror Fantasy

3  

Deepak Kumar

Comedy Horror Fantasy

भगंदर शैतान

भगंदर शैतान

4 mins
9

नमस्कार मित्रों पेश है एक डरावना और हास्य लघु कथा। भगंदर शैतान और बाबा प्रेम परिवर्तन। भाग १ गाँव लांगटापुर में एक डरावनी अफ़वाह फैली हुई थी। कहते हैं कि गाँव की पुरानी पोखर के पास मौजूद झोपडी में एक शैतान रहता है— भगंदर शैतान। लोग उसका नाम सुनते ही पेट दबाकर भाग खड़े होते, क्योंकि मान्यता थी जो भी उसके चक्कर में पड़ा, या उसका छाया किसी पे पड़ा उसका हाल बेहाल हो जाता— बैठ नहीं पाता, चल नहीं पाता, उसे भगंदर हो जाता। एक पिछवाड़े की गुप्त बीमारी। गाँव के सबसे बुजुर्ग करमजला चाचा कहते हैं। “अरे भइया, ये कौनो मामूली शैतान नाही है। ये वही है, जो पोखर किनारे हगते हगते मरा था। उसे भयंकर बीमारी थी भगंदर। ये जिसे भी पकड़ता उसे भगंदर हो जाता। ठीक से हग भी ना पाता। अब बैठ ही नहीं सकता तो हगेगा कैसे। बेचारा सब कुछ खड़े खड़े करना पड़ता। भाग २ गांव वालों में दहशत का माहौल है। एक रात गाँव के तीन शरारती लौंडे— मंगरू, ललुआ और टिल्लू—ने तय किया कि आज शैतान की पोल खोलेंगे। लालटेन लेकर तीनों पोखर के पास बने झोपड़े में घुसे। अंदर अंधेरा था, दीवारों पर चमगादड़, और बीच में एक टूटी चारपाई पर बैठा काला-सा अजीब जीव। उसकी आँखें जल रही थीं और आवाज आई— “कौन है बे…? भगंदर शैतान के इलाक़े में आने की हिम्मत कैसे हुई?” तीनों डर से काँप गए। मगर टिल्लू ने हिम्मत की और बोला “हम गाँव वाले हैं। तू क्यों लोगों को डराता है और बीमारी फैलाता है?” शैतान हंसता है, हा हा हा हा और बोला, “मैं किसी को नहीं डराता, लोग खुद डरते हैं। सालों ने मेरी नाम का मजाक बना रखा है। भगंदर ये कोई नाम है। इस लिए लोगों को मैं सजा देता हूँ। जब मैं पीछे से… ‘पकड़’ उंगली डाल देता हूँ तो सालों की पीछे की नस खींच जाती है। ये सुनकर मंगरू ने डर से लालटेन गिरा दी और भागने लगा। मगर झोपड़ी का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। तीनों को अपने झोपड़ी में कैद कर उसने अपना शैतानी खेल शुरू किया। अब शैतान ने अपनी शक्ति दिखाई। ललुआ के नीचे से अचानक पानी की धार छुटने लगी। मंगरू की निक्कर का नाड़ा अपने आप खुल गया। और टिल्लू… की बार बार पाद निकलने लगी। तीनों ने शैतान से रहम की भीख मांगी। शैतान हंसा और बोला— “तुम लोग मुझे भगाने आए थे ना? अब तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी। मेरा मनोरंजन करना होगा, मुझे हंसाना होगा, तो छोड़ दूँगा। वरना हमेशा भगंदर के दर्द में तड़पते रहोगे।” तीनों ने जल्दी-जल्दी गाना शुरू किया— “भूत राजा बाहर आजा" इस गाने को सुन शैतान गुस्से में आ गया और बोला। “बकवास! कुछ असली चुटकुला सुनाओ।” ललुआ ने चुटकुला सुनाया— “एक आदमी डॉक्टर से बोला— डॉक्टर साहब, मुझे बैठने में दर्द होता है। डॉक्टर बोला— तो खड़े हो जाओ!” शैतान ठहाका मारकर हँस पड़ा। फिर बोला— “बस-बस! हँसते-हँसते मेरा भी भगंदर का दर्द जाग गया।” भाग ३ अगली सुबह गाँव वाले देख रहे थे कि मंगरू, ललुआ और टिल्लू खेत में धूप में खड़े-खड़े सो रहे हैं। बैठ ही नहीं पा रहे थे। लोग हँसते-हँसते कहने लगे। “अबे यही है भगंदर शैतान की सज़ा, बैठो मत , बस खड़े रहो।"। उस शैतान का अधिकतर शिकार पुरुष ही थे। क्योंकि उन्हें ही ज्यादा खुजली रहती है, खेतों में जाकर हल्के होने की। महिलाएं तो हर घर शौचालय योजना का लाभ उठा रहीं थीं। उस गांव के पुरुषों की एक सभा हुई। करमजला चाचा ने सुझाव दिया। "पड़ोस के गांव में बाबा प्रेम परिवर्तन पधारे हैं वही इस समस्या का समाधान बता सकते हैं। बाबा प्रेम परिवर्तन अभी हाल ही में शहर से सैयारा मूवी देख लौटे थे। बीस साल पहले की अपनी गर्ल फ्रेंड ममता बनर्ली को याद कर उदास रहते थे। गांव वाले पहुंचे। बाबा समस्या का निवारण बताए। भगंदर को बोतल में बंद करना होगा। इसके लिए चंदा लगेगा। हर पुरुष को पचास रुपए का चोट लगेगा। सभी राजी हो गए। भाग ४ अमावस्या की काली रात। बाबा पुराने पोखर के पास आसन जमाए। साथ में टिल्लू , मंगरू और लालुआ। अचानक उल्लू रोने लगा। भगंदर पोखर से निकलने लगा। उसे देख टिल्लू , मंगरू और लालुआ की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बाबा को छोड़ अपना पिछवाड़ा पकड़ भाग खड़े हुए। बाबा आँखें खोल देखते हैं तीनों गायब। सामने भगंदर खड़ा। बाबा वहीं डर से जड़ हो गए। भगंदर, बाबा को देख गुस्से से बोला। "आज तुझे भगंदर नहीं बवासीर होगी। ये बोलकर बाबा के मुंह में धुंआ बन घुस पड़ा। बाबा के पेट में खलबली होने लगी। उन्होंने लंगोट खोला। जोर से पादा। मगर पादने से पहले बोतल पिछवाड़े रखा था। भगंदर कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उसका धुंआ बोतल में समाया। बाबा ने जल्दी से ढक्कन लगाया। और तालाब के बीचों बीच फेंक दिया। इस तरह से लांगटा पुर को शैतान से मुक्ति मिल गई। और बाबा चंदे के पैसे लिए। वार टू देखने शहर चल पड़े। इसी के साथ इस कहानी को समाप्त करता हूँ। धन्यवाद।


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