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Deepak Kumar

Children Stories

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Deepak Kumar

Children Stories

नयी किताब

नयी किताब

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पारस एक गरीब बच्चा था मगर पढ़ने में बहुत होशियार था। फुटकल टोला उसके गांव का नाम था पास में ही एक सरकारी स्कूल था जिसमें वो पढ़ता था।

उसके पिता की साइकिल बनाने की छोटी सी दुकान थी जो पारस के गांव से स्कूल जाने के रास्ते पर पड़ती थी। पारस की मां एक गृहणी थी और उसकी छोटी बहन तीन वर्ष की थी।

पारस नौ वर्ष का था अभी कुछ महीने पहले ही वार्षिक परीक्षाएं हुई थी और वो अच्छे अंकों से पास हो गया था और उसके पिता ने अगले कक्षा में उसका नामांकन कर दिया था। अतः आज स्कूल गर्मी की छुट्टियों के बाद पहली बार खुल रही थी।

पारस स्कूल गया। कक्षाएं अपने समयानुसार चलीं।लेकिन जब छुट्टी का समय हुआ तो हेडमास्टर जी ने घोषणा करवाई कि सबको कल सरकार की तरफ से नई किताबें मिलेंगी इसलिए सबको आना है।

ये सुन के बच्चे खुश हो गए क्योंकि उस स्कूल में बहुत दिनों से पुरानी किताबें ही बांटी जा रही थी और उन किताबों की हालत बहुत जर - जर हो चुकी थी।

पारस स्कूल से घर लौट आया हाथ मुंह धोया खाना खाया और बाहर खेलने चला गया।

शाम हो चुकी थी पारस की छोटी बहन खाट पर सो रही थी और उसकी मां रोटियां सेक रही थी। पारस चुप चाप आया और अपने बस्ते से किताबें निकाल कर पढ़ाई करने लगा। वो किताबें उस स्कूल में ना जाने कितने वर्षों से चल रही थी उसके पृष्ठ भी रद्दी हो चुके थे ना जाने कितनी कक्षाओं के विद्यार्थियों ने उन किताबों को पढ़ा होगा।

तभी पारस की मां पारस को बोली" लल्ला जाओ तो तुम्हारे पिताजी को देख आना रात होने को है अब तक नहीं आएं हैं।"

 पारस अपने किताब को बंद करता हुआ बाहर निकल गया।

कुछ दूर चलने के बाद उसे उसके पिता साइकिल को ठेलते हुए आते दिखे तो वो खुश हो गया उसके पिता ने उसके चेहरे की खुशी को ध्यान नहीं दिए और उसे चलो बोलकर उसके साथ वापस लौटने लगे।

 दोनों पिता पुत्र घर आएं और हाथ मुंह धोकर रात्रि भोजन के लिए रसोई में जा कर बैठ गए।

घर की गृहणी ने दोनों को भोजन परोसा और वहीं चूल्हे के पास बैठ गई और पारस के पिता की ओर देख कर बोली " देवर जी ने क्या कहा जी।"

पारस के पिता बोले "कल शहर जाना पड़ेगा मंगल ने बुलाया है।"

शहर वहां से दूर नहीं था लगभग चार कोश की दूरी होगी।। पारस के पिता का छोटा भाई मंगल वहीं किसी दुकान में कार्य करता था कोई छोटा शहर था।

फिर मां ने पूछा " कल अकेले जायेंगे"।

नहीं ये भी साथ में जाएगा।। पारस की ओर इशारा कर बोले।

 पारस की धड़कन अचानक तेज हो गई वो सोचने लगा "मैं कैसे जा सकता हूँ कल तो स्कूल में नयी किताबें मिलेंगी"।

 पारस डरते डरते बोला" बाबा कल हेडमास्टर जी ने सबको स्कूल बुलाया है मैं नहीं जाऊंगा।"

पारस के पिताजी उसको घूरते हुए बोले "कल स्कूल नहीं जाना है कल शहर जाना है।"

ये सुनकर पारस की भूख तो मर ही गई और वो खाना छोड़कर अपने बिस्तर में लेट गया और सोचने लगा "मेरे पिताजी भी मुझे स्कूल छुड़वाकर चाचा की तरह काम धंधा में लगवा आयेंगे शहर में" पारस बहुत गहन चिंता में पड़ गया था क्योंकि उसके उम्र के बहुत बच्चे आज भी मजबूरियों के कारण काम धंधे में लगे हुए हैं और कम उम्र होने के कारण उनके मालिकों द्वारा बहुत प्रताड़ित भी किया जाता है खैर सुबह हुई।

पारस की मां सुबह ही उठ गई थी । घर के काम वगैरा निपटा कर नाश्ता बनाने में लगी हुई थी

उसके पिता उसकी छोटी बहन को गोद में उठाए बाहर टहल रहे थे और पारस लेटा हुआ था और स्कूल छूटने के दुख से बेहाल था। 

पारस की मां ने नाश्ता बनाकर पारस को आवाज दे कर उठाने लगी।

पारस बुझे मन से उठ कर बाहर जाकर बैठ गया तभी उसके पिता उसकी बहन को गोद में बिठाए आए और उसकी बहन को उसके मां को पकड़ा कर दातुन तोलिया लेकर पारस के साथ कुंआ की ओर चले गए।

नाश्ता पानी करने के बाद पारस को लेकर वो एक सवारी गाड़ी में शहर पहुंच गए।

मंगल बस पड़ाव में ही उनकी प्रतिक्षा कर रहा था और पारस अब भी उदास था।

मंगल से मिलने के बाद मंगल के मोटर में बैठ कर वो एक ओर चल दिए।

पारस अब भी उदास और गुस्से में था वो सोच रहा था आज उसके सारे सहपाठियों को नयी नयी किताबें मिलेंगी और वो सब पढ़ लिखकर अच्छी अच्छी नौकरियां करेंगे और मैं काम करूंगा।

तभी उसके चाचा मंगल ने अपनी मोटर रोकी और पारस और पारस के पिता को एक बड़ी सी गेट के अंदर ले गया पारस की नजरें अब भी झुकी हुई थी।

पारस को ले कर वो दोनों एक इमारत के कमरे में ले गए।

तभी कड़कती आवाज आई" यही वो बच्चा है परशुराम जी जिसकी तारीफ कर रहे थे।" परशुराम जी और कोई नहीं पारस के गांव वाले स्कूल के हेडमास्टर हैं।

 पारस का एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में नामांकन हो गया था।। उसके पिता ने उसकी फीस भरी और स्कूल से किताबें भी उसे मिली लेकिन पुरानी पर फिर भी वो वर्ष दो वर्ष पुरानी रही होंगी।।।



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