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Deepak Kumar

Comedy Tragedy Classics

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Deepak Kumar

Comedy Tragedy Classics

गोरेटांड़ की अनोखी कहानी

गोरेटांड़ की अनोखी कहानी

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हमारे बस्ती में सारे गोरे लोग ही रहते हैं, छोटा सी बस्ती है गोरेटांड़ के नाम से जानी जाती है हां मगर अगल बगल के बस्तियों में काले गोरे सांवले रंग के लोग भी रहते हैं ।।शहर से ज्यादा दूर नहीं होने के कारण मैं गांवों को बस्ती बोल रहा हूँ। हमारे बस्ती में मुखिया जी हैं बहुत गोरे हैं अंग्रेजों की तरह.. गौरांग शास्त्री नाम हैं उनका और उनकी देवी जी भी गोरी हैं मगर मुझे उनका नाम नहीं पता सब उनको मुखियाइन कहता है तो मैं भी कहता हूँ और उनके बच्चे भी गोरे ही हैं।तो हमारे बस्ती में सारे गोरे हैं लेकिन एक प्रिंसवा काला है वो इकलौता कुत्ता है जो काला है।।। बस्ती में सभी हंसी खुशी अपना जीवन बीता रहे थे पर एक दिन एक घटना घट गई, एक साधु बाबा हमारे बस्ती में रहने आए। उनकी बड़ी बड़ी दाढ़ी मूछें बड़े बड़े सिर के बाल और पूरे शरीर में भभूत मले हुए,उनका जोरदार स्वागत हुआ और इसी तरह समय बीतने लगा साधु बाबा रोज सुबह नहा धोकर भभूत अपने शरीर में घिसकर धार्मिक कथा सुनाते थे अगल बगल के बस्तियों से भी लोग उनसे कथा सुनने आया करते थे। धीरे धीरे साधु बाबा की महिमा चारों ओर फैल गई तो बस्ती के बुजुर्गों ने निर्णय लिया कि बाबा कब तक मंदिर में रहेंगे उनके लिए एक कुटिया बनाया जाए और ये साधु बाबा के कथा वचनों के प्रभाव में आकर बस्ती वालों ने निर्णय नहीं लिया था बल्कि इसलिए लिया क्योंकि बाबा के कारण बस्ती में जो भीड़ बढ़ रही थी और उस भीड़ के कारण बस्ती के लोगों को रोजगार मिल रहा था तो सभी बुजुर्गों ने बस्ती के मुख्या गौरांग शास्त्री को आज्ञा दिया कि बाबा के लिए कुटिया का निर्माण कराओ जल्दी।। कुटिया का निर्माण जोरो शोरो से चलने लगा।। कुटिया कुछ ही दिनों में बन कर तैयार हो गया बाबा उसमें रहने भी लगा, एक दिन सुबह सभी साधु बाबा के कुटिया के बाहर कथा सुनने के लिए समयानुसार बैठे हुए थे बहुत देर से बाबा अपने कुटिया से बाहर नहीं निकल रहे थे। धीरे धीरे कुछ समय और बीता। बाबा अपने कुटिया से निकल ही नहीं रहे थे तो सब आशंका जताने लगे कि कहीं बाबा टपक तो नहीं गए।। सबने मुखिया जी को आवाज लगाई मुखिया जी दौड़े दौड़े आए और कुटिया का दरवाजा खटखटाने लगे लेकिन दरवाजा अन्दर से बंद था तभी मुखिया जी बाहु और बाली जो उनके अंगरक्षक थे उनको कुटिया का द्वार तोड़ने का आदेश दिया। कुछ देर में द्वार टूटा और मुखिया जी अंदर दाखिल हुए तो पाया कि अंदर बाबा जी हैं ही नहीं उनके शयन स्थान में प्रिंसवा सोया हुआ था ये देख सभी आश्चर्यचकित हो गए। मुखिया जी ने बस्ती के लड़कों को तुरंत इकठ्ठा किया और साधु बाबा को ढूंढने का आदेश दिया, बहुत ढूंढने पर भी साधु बाबा नहीं मिले और साधु बाबा के नहीं मिलने के कारण बस्ती वालों कारोजगार भी ठप होने लगा। ये बस्ती वालों के लिए चिंता का विषय बन गया था, बस्ती के लोगों के अंदर धन कमाने की इच्छा जाग चुकी थी सो सब निराश हो गए थे। अचानक एक दिन मुखिया जी को खबर मिला कि पास की बस्ती में एक और साधु आया है और बहुत सुंदर कथा सुनाता है। बस्ती के बड़े बुजुर्गों ने आपस में सलाह मशवरा किया और मुखिया जी को आज्ञा दिया कि उस साधु को ले कर आओ। मुखिया जी चल पड़े अपने चेले चपाटों के साथ उस नए बाबा को लाने। दोपहर का समय था बाबा उस बस्ती के मंदिर प्रांगण में सो रहे थे। तभी मुखिया जी उनके पास पहुंचे और देखा कि बाबा जी तो बहुत ही काले हैं अब इनको बस्ती में कैसे ले जाया जाए उनके बस्ती में बहुत समय पहले से ही नियम था कि काले रंग के लोगों को बसने नहीं दिया जाता था। मुखिया जी बड़े असमंजस में फंस गए थे।। तभी बाबा जी की नींद खुली और उन्होंने मुखिया जी को पास खड़े देखकर उनका परिचय पूछा। मुखिया जी ने बाबा जी को अपने आने का कारण बताया।। पर बस्ती में काले और सांवले लोगों के बसने पर पाबंदी है ये नहीं बताई।। पर बाबाजी को शायद मुखिया जी के बस्ती का हाल मालूम था अतः वो खुद ही उनके साथ जाने से मना कर दिए।। मुखिया जी ने भी ज्यादा दबाव नहीं डाला और अपने चेले चपाटों के साथ अपनी बस्ती में लौट आए। मुखियाजी ने अपने बस्ती वालों को बताया की बाबा जी ने आने से इंकार कर दिया और ऊपर से वे बहुत काले भी हैं। तभी कुछ नौजवान बोले; बहुत हो गया अब काले और गोरे रंग की बातें। ये बेकार की कुरीतियां खत्म होनी चाहिए।। उनमें मैं भी था मैं भी कथा स्थल पर भूंजा चना बेचता था अब मैं भी बेरोजगार हूँ। हमने काले और गोरे के भेद को अपने बस्ती से मिटाने के लिए आंदोलन करना शुरू किया। हमारे बस्ती वाले भी दो पक्षों में बंट गए। आधे लोग जो उम्र दराज थे वे कुरीति के पक्ष में और जो युवा लोग थे वे विपक्ष में थे।। यहां तक कि एक दिन दोनों पक्षों में मारपीट की नौबत भी आ गई थी। बेचारे मुखियाजी परेशान थे क्या करें क्या ना करें किसका साथ दें: क्योंकि मुखियाजी को दोनों पक्षों से मत मिलता था पंचायत चुनाव में। दोनों पक्षों में मारपीट होने ही वाली थी कि अचानक वही साधु बाबा आ धमके साथ में अपने एक चेले को भी लाए थे जो कि काले रंग का था। साधु बाबा के आने से सब खुश हो गए। लेकिन बाबा ने उनके सामने अपने चेले को भी साथ रखने की शर्त रख चुके थे। फिर सबने विचार विमर्श किया और उनके पास साधु बाबा की बात मानने के सिवा कोई चारा ना था।।। अंत में सभी इस बात पे सहमत हुए कि उनका चेला बस्ती में नहीं घुमा करेगा और पोंड्स पावडर रोजाना लगाया करेगा।।।।      


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