Shalini Dikshit

Tragedy

4  

Shalini Dikshit

Tragedy

घर से बेघर

घर से बेघर

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"मां को फोन तो कर दो एक बार, कि तुम आ रहे हो।" मारिया ने शिव से कहा।

भोलेनाथ पर अपार श्रद्धा रखने और सोमवार पर को जन्म होने के कारण परमेश्वर और लीलादेवी ने इकलौते पुत्र का नाम शिव रखा था। बड़ा होने पर उसकी जिद्द थी अमेरिका में पढ़ना है; बेटे की इच्छा को पूरा करने के लिए अपनी सारी जमीन जायदाद बेचकर उन्होंने बेटे को अमेरिका भेज दिया।

अब दोनों पति-पत्नी अपने पुश्तैनी घर में पेंशन के सहारे अकेले रह रहे थे। लीला देवी अंग्रेजी में एम ए थी तो उन्होंने अंग्रेजी की ट्यूशन घर में पढ़ाने शुरू कर दिए थे, वैसे तो आजकल के बच्चों को अंग्रेजी की ट्यूशन की जरूरत नहीं होती लेकिन फिर भी हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों के लिए थोड़ा अधिक ध्यान अंग्रेजी पर देना होता है तो दस-बारह बच्चे आ जाते थे ट्यूशन पढ़ने और उन्हीं बच्चों के सहारे इन बुजुर्ग दंपति की जिंदगी मैं कुछ रंग बचे हुए थे। वह अपना दिल बच्चों के साथ लगाए रहते।

उनके बेटे ने अमेरिका में शादी भी कर ली थी और पिछले दस बरस में सिर्फ दो बार ही आया था एक बार शादी से पहले और एक बार पिछले साल अपने पिता के देहांत पर।

फोन करने की बात पर शिव ने मारिया को समझाया, "मैं फोन नहीं ईमेल करूँगा ताकि माँ को ठीक से याद रहे कि उनको क्या-क्या संभाल के रखना है।"

शिव ने मेल लिखा- माँ मैं आपको लेने आ रहा हूं आप घर के कागज, बैंक की पासबुक और जरूरी कागजात एक बैग में पैक कर लेना।

 मां को खुशी मिश्रित आश्चर्य हुआ कि पिता के जाने के बाद मुझे अकेला जान के उसके मन में मेरी परवाह जागी है; और मुझे लेने आ रहा है।

लीला देवी मन ही मन मुस्कुरा के बोली अभी मैं ६८ बरस की हुई हूँ इतनी बूढ़ी नहीं हुई कि मुझे फोन पर यह सब बताता तो मैं भूल जाती, तब भी मैं याद ही रखती लेकिन उसने ई मेल किया है ताकि मैं ध्यान से पढ़ कर सारा सामान पैक कर लू।

 बुद्धू कहीं का बहुत समझदार बनता है लेकिन एक बार भी यह नहीं बोला कि माँ अपनी दवाइयां भी पैक कर लेना; अरे ठीक है अमेरिका में दूसरी दवाइयां मिल जाएंगी लेकिन मुझे तो बी पी और शुगर की दवाई रास्ते में भी चाहिए होगी। दो बार खाना खाने से पहले सुगर की दवाई लेनी पड़ती है। अब यह सब उसको कौन समझाए।

सामान पैक करते हुए उनका दिमाग ना जाने कितनी यादों में खोया हुआ है कि काश उसके पापा होते तभी वह आ गया होता तो उनको भी उसके घर में रहने का सुख मिल जाता यह सब करते वह दिन भी आ गया जब बेटा आया।

बेटे को देखकर वह चाहक गईं कुछ बोलती उससे पहले ही शिव ने कहा, "माँ सामान ले लिया; आओ चलो जल्दी चलें......."

"अरे इतनी जल्दी अभी तो आए हो........"

"हाँ तुरंत निकलना है......." शिव बोला। 

लीला देवी सामान अंदर के कमरे से बाहर ले आई शिव ने उनके हाथ से सामान ले लिया और बोला, "यह फोन बंद करके यहीं रख दो......."

"क्यों!! फोन की तो जरूरत पड़ेगी?" लीला देवी ने आश्चर्य जताया।

"अमेरिका में यहाँ का फोन नहीं चलता वहाँ नया ले लेना......." बोलते हुए शिव ने उनके हाथ से फोन लिए और बंद करके वही रख दिया और दोनों घर का ताला लगा कर घर से निकल गए।

तहसील के काम निपटाते हुए शाम हो गई। लीला देवी थक कर चूर हो गई थी उनका मन कर रहा था थोड़ी देर आराम करने को मिल जाता पर यह तो संभव नहीं था; वह यंत्र वत बेटे के पीछे पीछे चलती रहीं। शिव ने रेलवे स्टेशन के लिए टैक्सी मंगाई स्टेशन पहुंचकर मां को एक बेंच पर बैठा कर बोला, "माँ यही बैठ कर इंतजार करो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ......."

"ठीक है बेटा, अपना ध्यान रखना मैं यहीं बैठी हूँ......." लीला देवी बेंच पर बैठी अपने बेटे को जाता हुआ पीछे से देख रही थी।

शिव तेज कदमों से बाहर निकलते हुए फोन में ई बोर्डिंग पास चेक करता हुआ एअर पोर्ट चला गया।

शायद उस दिन बेटे के ईमेल ने लीला देवी की जिंदगी पूरी तरह बदल कर रख दी थी और उनको अभी इस बात की खबर भी नहीं थी।


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