घर परिवार का महत्त्व
घर परिवार का महत्त्व
नीना और सतीश का कुछ सालों पहले ही ब्याह हुआ था और अब वो मां पापा बन ने जा रहे थे। सतीश के माता पिता भी बहुत खुश थे उसके घर का बसता हुआ देख कर। कुछ सालों पहले यही सतीश मानसिक रोगी होने की कगार पर खड़ा था। दो भाइयों में छोटा और मध्यमवर्गीय सामान्य परिवार का बेटा , पिता की छोटी सी नौकरी में घर बखूबी चलाया सतीश के माता पिता ने। सरकारी स्कूल में पढ़ा सतीश बहुत ही तेज़ दिमाग था। अपनी उच्च शिक्षा का खर्चा खुद सतीश ने उठाया, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था और ऐसे ही इंजीनियरिंग पास कर नौकरी पकड़ ली। सतीश और उसका परिवार बहुत खुश थे।
सतीश के बड़े भाई राकेश की भी सरकारी नौकरी लग गई थी फौज में और उनका ब्याह भी हो गया। वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रह रहे थे। माता पिता और भाई से उनकी पत्नी की बनती नहीं थी तो घर की शांति के लिए राकेश ने भी अलग रहना ठीक समझा।
वक्त अपनी गति से उड़ता जा रहा था। सतीश का भी ब्याह तय हो गया, लड़की खुश खुश नहीं लग रही थी ब्याह के वक्त, सतीश ने पूछने की भी कोशिश की पर बात टाल दी गई और इस संशय में उनका ब्याह हो गया। ब्याह की रात ही प्रिया ने सतीश को साफ साफ कह दिया की वो किसी और से प्यार करती है और सतीश के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी। सतीश के तो सपनों पे घड़ों पानी फिर गया पर उसने संबल बनाए रखा की शायद उसका प्यार प्रिया को बदल देगा।
महीनों बीत जाने के बाद भी वो प्रिया का मन ना जीत सका और मानसिक तौर पर बेहद परेशान रहने लगा और प्रिया ने उसकी इस स्थिति का फायदा उठा तलाक के लिए आवेदन कर दिया। सतीश ने भी सहमति के आधार पर तलाक के कागजों पर साइन कर दिए। 15 लाख रुपए लेकर प्रिया ने तलाक दिया। खैर बेचारे सतीश की खून पसीने की कमाई तो लूटी ही वो मानसिक तौर पर भी टूट गया। किसी तरह वो इन सब से उबरा और अपने शहर में ही नौकरी करने लगा कि मां पापा के साथ रहूंगा तो ठीक रहूंगा। कुछेक साल लग गए सतीश को इस सदमे से उबरने में, मां पापा ने उसका दूसरा ब्याह करने का सोचा। सतीश का मन नहीं था क्योंकि वो पहले ब्याह के दुख से बहुत मुश्किल से उबरा था पर हां कहनी पड़ी।
एक छोटे से फंक्शन में नीना के साथ उसका ब्याह कर दिया गया, नीना की भी पहली शादी किसी कारण से टूट गई थी। यहां आ कर नीना ने सतीश को , उसके मां पापा को, घर परिवार को बखूबी संभाला। नीना के जेठ जेठानी उसी शहर में रहते हुए भी कभी मिलने तक नहीं आते थे ना ही कोई रिश्ता रखते थे बस सतीश के ब्याह में आ कर भी दो चार कड़वे बोल ही बोल कर गए थे। बल्कि नीना को भी भड़काने की कोशिश की उन्होंने पर नीना ने सुन कर अनसुनी कर दी उनकी बातें। नीना फिर भी वार त्योहार जरूर मिलने जाती अपने जेठ जेठानी से पर उनका व्यवहार रूखा ही रहता। आहत तो होती नीना पर किसी से कुछ ना कहती , हमेशा सोचा करती की सब मिल जुल कर रहें तो कितना अच्छा हो।
एक दिन सुबह सुबह 7 बजे सतीश का फोन बजा, फोन उठाते ही उधर से आवाज आई की हॉस्पिटल पहुंचिए आपके भाई भाभी दोनों गंभीर हैं। सतीश नीना को साथ ले हॉस्पिटल पहुंचा तो पता चला कि सुबह सुबह वॉक के लिए जाते हुए एक ट्रक उन दोनों को टक्कर मार भाग गया। बहुत बुरी हालत थी , सतीश के नीना के अथाह प्रयासों के कारण राकेश और उनकी पत्नी को बचा लिया गया।
इस कठिन समय में खुद का परिवार ही साथ खड़ा होता है। सतीश ने बहुत बुरा वक्त देखा कोई भी उसके साथ नहीं खड़ा था पर आज उसके भाई राकेश की आंखों में नमी और भाभी के चेहरे पे कृतज्ञता के भाव थे।
