Sajida Akram

Comedy

4  

Sajida Akram

Comedy

"घणी बावरी

"घणी बावरी

2 mins
80


दादीसा आज फिर आंगन की खटिया पर बैठ कर अपनी पोती के लिए बड़बड़ा रही थी।

"या छोरी तो " घणी बावरी" है रात दिन इस फटफटिया पर बैठं के छोरों कि तरह सारे "सहर" का चक्कर मारी आवे। काई भी लच्छण छोरियों के नीं है। घर में तो जैसे "टांग" ही नी टीके। म्हाने तो नीं लागे के कदी घर भी बसाये के लुगाई जैसी रेहगी।

"चारु" ने घर में घूसते से आंगन में बैठी दादीसा को बाहों में भरकर छेड़ा ..! 

"हाय स्वीट हार्ट "

दादी चारू को दूर करते हुए बोली काई करें है "छोरी "बाहर से आइन के म्हारे अपवित्र करें। कई तुणे मालूम मेरे पूजन का बख्त है।

 दादी का फिर बड़बड़ाना चालू देखन एक दिन ये "छोरी" ऐसो नाम उछालेगी "घणी बावरी" है।

इतने में ही पड़ोस वाली पड़ोसन चाचीसा आ गई दादी से सुनगुन करने। "कटाछ" वाली मुस्कुराहट के साथ बोली दादीसा सच्ची बोलो हो ये "छोरी"....! 

दादीसा ने पड़ोसन की बात सुनते से ही, उन्हें लताड़ दिया " ओए तू कौण होवें री म्हारी छोरीन को बुरो कहिन वाली वो "मरद" है इस घर की समझी "खबरदार".....!

म्हारी पोती तो सारा दिन घर के बड़े से बड़ा काम वही कर के आवे है|ओर नी तो कमाय के लावे है|

हाँ मैं कह सकत् हूँ उसे "घणी बावरी" कोई ओर नीं कह सकत् है उसे कुछ समझी .....! पड़ोसन खिसिया कर वहाँ से चलती बनी।  

 चारु अंदर ही अंदर सुनकर ख़ुश थी दादीसा का प्यार भी अनोखा है....!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy