'गायत्री-मंत्र'(कुछ जानकारियाँ)- शशिबिन्दुनारायण
'गायत्री-मंत्र'(कुछ जानकारियाँ)- शशिबिन्दुनारायण


"ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।" 'गायत्री' शब्द 'गायत्र:' से बना है।
प्रकाश देवता सूर्य को समर्पित / निवेदित उक्त ऋचा मे तीन व्याहृतियों को छोड़कर गायत्री मंत्र कुल 24 वर्णों का वैदिक छंद हैं।
तीनों व्याहृतियाँ निम्न हैं -- 'भूर्भुवः स्व:' = भू: भुव: स्व: (भूर् भुवर् भुवस् स्वर्)- विसर्ग संधि के 'ससजुषोरु:' नियम के अनुसार । व्याहृतियों से पूर्व 'ॐ'कार का उच्चारण/ध्वनि ब्रह्माण्ड की पहली ध्वनि मानी जाती है।
व्याहृतियों के अतिरिक्त शेष गायत्री- 'तत्सवितुर्वरेण्यं' = (तत् सवितु: वरेण्यं) ससजुषोरु: संधि।
'भर्गोदेवस्य' = (भर्ग: देवस्य) विसर्ग संधि के 'हशि च' के नियमानुसार।
'धियो यो न:' = (धिय: य: न:) नियम 'हशि च' ।
वैदिक देव मण्डल मे द्यावापृथिवी के लिए 'भूर्भुव:' युग्म प्रसिद्ध है।ऊपर कहा जा चुका है कि गायत्री मंत्र मे व्याहृतियों को छोड़कर 24 वर्ण हैं। उन 24 वर्णों (अक्षरों) की 24 शक्तियाँ , 24 वर्णों के 24 ऋषि , 24 अक्षरों के 24 पुष्प हैं। तपोनिष्ठ आचार्य पं. श्रीराम शर्मा गायत्री मंत्र का ठोस अर्थ निम्न प्रकार से बताते हैं --"उस प्रमाणस्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा मे धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।" सविता ही सगुण ब्रह्म का प्रथम व्यक्त रूप है। जिसका 'ॐ' से सीधा संबंध है।
'सवितृ' (वि.) = जनक, उत्पादक, फल देने वाला।
'सावित्री' (स्त्री.) = प्रकाश की किरण (सूर्य को सम्बोधित करने के कारण इसका नाम सावित्री पड़ा) । सावित्री को ही गायत्री कहा जाता है।
गायत्री मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद मे उद्धृत हुआ है। उसके बाद अथर्ववेद मे भी उल्लेख किया गया है। उपनिषदों मे भी इसके बारे मे विस्तार से बताया गया है।
हमारे विद्यालय मे प्रार्थना सभा स्थल पर होने वाली दैनंदिन प्रार्थना का हिस्सा है -'गायत्री-मंत्र' ।