व्यक्तित्व-विभास- तीन
व्यक्तित्व-विभास- तीन


संदर्भ --रामकिशुन
लेखक --शशिबिन्दुनारायण मिश्र
मेरे विद्यालय में हाईस्कूल की 1962 में स्थाई मान्यता मिलने के बाद खेलकूद प्रतियोगिता में पहले दशक के अतिविशिष्ट गौरव, जिन्होंने क्षेत्रीय, जनपदीय, मण्डलीय और प्रदेशीय खेलकूद प्रतियोगिता में विद्यालय को पूरे जिले में गौरवान्वित किया।
आज उन्हीं में से एक मेरे साथ हैं श्री रामकिशुन यादव, उम्र -76 वर्ष, नौकापुरा , गोरखपुर के स्थायी निवासी। वर्ष 1962 में स्वावलम्बी इण्टर कॉलेज विशुनपुरा गोरखपुर को हाईस्कूल की स्थाई मान्यता मिलने पर आप हाईस्कूल में दूसरे 'बैच' के बेहद होनहार छात्र रहे, पढ़ाई-लिखाई में ठीक-ठाक , अनुशासित और खेलकूद में अव्वल। आपने बिशुनपुरा से वर्ष 1965 में हाईस्कूल की परीक्षा ससम्मान उत्तीर्ण किया। रामकिशुन यादव जी 100 मीटर, 200 मीटर दौड़ तथा लम्बी कूद में अपने समय में विद्यालय स्तरीय प्रतियोगिता, क्षेत्रीय स्तर की खेलकूद प्रतियोगिता और जनपदीय खेलकूद प्रतियोगिता में हमेशा अव्वल रहे। यह बात मुझसे रामकिशुन यादव जी ने नहीं बताई है, बल्कि इनके वे गुरुजन , जो बाद में चलकर मेरे भी गुरु रहे, पुरातन आदर्श छात्रों के बारे में कक्षा में बताते रहते थे। जब हम लोग छात्र रहे,तब वे शिक्षक उदाहरण स्वरूप बताते थे,जब मैं उन गुरुजनों का सहकर्मी शिक्षक हुआ,तब भी रामकिशुन यादव जी के अनुशासित, शानदार और दक्ष खेलकूद की चर्चाएँ करते रहते थे। इण्टरमीडिएट तक मैं भी लम्बी कूद और 100 मीटर दौड़ की स्पर्धा वाला खिलाड़ी रहा, लेकिन मैं कभी अव्वल नहीं हो पाया। अपने विद्यालय के 7 वें और 8 वें दशक के पुरातन छात्रों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, बहुत सारी प्रेरणा मिलती है। उस दौर के छात्रों में भी, अध्यापकों में भी और व्यवस्था में भी कुछ कर गुजरने की ललक देखते ही बनती है, जितनी उर्वरा शक्ति उनमें थी, उसके बाद वह चीज़ समय के साथ क्रमशः क्षीण होती चली गयी।
रामकिशुन जी के चलने के ढंग और बातचीत की अदा से कोई यह नहीं कह सकता है, कि वे फिलहाल 76 वर्ष के वृद्ध हैं। इस अवस्था में भी आपमें शारीरिक अशक्तता या दीनता का भाव दूर-दूर तक नहीं दिखेगा। आज भी शारीरिक सक्रियता , बातचीत और मन से 76 वर्ष में भी आप पूर्णतः ऊर्जावान और युवाओं जैसे लगते हैं । बरही इंटर कॉलेज में आयोजित तत्कालीन क्षेत्रीय खेलकूद प्रतियोगिता में आप 100 मीटर दौड़ में प्रथम रहे, पर बरही इण्टर कॉलेज के एक शिक्षक ने पक्षपात कर दिया था, द्वितीय स्थान वाले प्रतिभागी का हाथ पकड़कर प्रथम विजेता घोषित कराना चाहा, बात बिगड़ गयी थी,मामला बेहद गम्भीर और विवादित होता, उसके पहले अपने तेज और कर्त्तव्यनिष्ठा के लिए विख्यात बरही इंटर कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य स्वर्गीय राजबहादुर राय जी ने ईमानदारी के साथ हस्तक्षेप किया, राय साहब ने अपने विद्यालय के शिक्षक को (जो स्थानीय थे) डाँटा और राम किशुन जी को प्रथम विजेता का पुरस्कार मिला। ऐसी ही एक घटना बाँसगाँव में आयोजित जनपदीय खेलकूद प्रतियोगिता में 100 मीटर दौड़ में राम किशुन जी के साथ दूसरी बार घट गयी थी। यह सब घटनाएँ आयोजकों द्वारा बिशुनपुरा को हीन समझने के कारण घट जाती रहीं । खेल मैदान पर इण्टर कॉलेज विशुनपुरा के तत्कालीन प्रधानाचार्य राजनारायण सिंह के सख़्त रुख़ और हस्तक्षेप से रामकिशुन जी को प्रथम विजेता का पुरस्कार मिल सका था। तब के प्रिंसिपल विद्यालय की गरिमा और सम्मान को अपना निजी सम्मान समझते थे, इसीलिए तब के विद्यालय निरन्तर गौरव और उत्कर्षता को प्राप्त होते रहे।
ऐसा लोग बताते हैं कि रामकिशुन की 100 मीटर की विद्युत गति से दौड़ की अदा दर्शकों को मुग्ध कर देती थी । मैंने रामकिशुन जी से पूछा कि आप 'रामकृष्ण' क्यों नहीं हैं ? इस बारे में वे हंँसते हुए बताते हैं कि -" माई-दादा ने और गुरु जी लोगों ने शुरू से 'रामकिशुन' ही कहा है,वही ठीक लगता है।
उसके बाद तो वर्षों तक विशुनपुरा इण्टर कॉलेज की क्षेत्रीय और जनपदीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में कुश्ती, दौड़, फुटबॉल और बालीबाल प्रतियोगिताओं में तूती बोलती रही। रामकिशुन जी के बाद दौड़ स्पर्धा में शायद सन् 1969 में मेरे गाँव के पास भकुरहाँ निवासी बेहद ग़रीब परिवार से हामिद अंसारी जो मेरठ में आयोजित राज्यस्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में दौड़ स्पर्धा में प्रदेश का ध्यान खींचा था, फुटबॉल और बालीबाल में शब्बीर अंसारी के बेहतरीन खेल से विद्यालय को दर्जनों शील्ड मिले थे, कुश्ती प्रतियोगिता में मेरे विद्यालय से ही हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण सिहोड़वा निवासी रामचन्द्र यादव जी राष्ट्रीय स्तर के पहलवान हुए, मेरे ही विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण रामनिवास यादव जी और भोरिक यादव जी ने राष्ट्रीय और अन्ताराष्ट्रिय स्तर पर पहलवानी में बड़ा नाम कमाया है। रामकिशुन जी बताते हैं कि उस समय के गुरुजन उन्हें बहुत मानते थे, अतिशय स्नेह देते थे। उनके आशीर्वाद से मैं कुछ भी न होकर भी बहुत कुछ हूँ।
रामकिशुन जी का चाहे जितना कोई विरोध और निंदा करे,यह उसकी समस्या हो सकती है। अच्छाई-बुराई सबमें होती है, लेकिन किसी में भी अच्छाई देखना अपने स्वभाव का अंग होना चाहिए। इससे व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा महसूस करता है। मैंने अपने जीवन में अपने पूज्यपाद गुरुदेव से यह चीज सीखी है।
रामकिशुन जी जिसका सहयोग करते हैं, मन से करते हैं,वे बीच में धोखा देने वाले मर्द नहीं हैं। मैंने यह भी देखा है कि वे जातिगत आधार पर किसी पूर्वाग्रही का अन्ध समर्थन करने से बचते हैं। जातीय सँडाध में डूबे अहंकारी-लोभी-मूर्खों पर मैं कभी अपनी लेखनी नहीं चलाता। रामकिशुन जी इण्टर कॉलेज विशुनपुरा गोरखपुर के कभी गौरव रहे हैं,यह हमारे लिए भी गौरव की बात है, क्योंकि मैं भी कभी उक्त विद्यालय का छात्र रहा हूँ। यदि उक्त समय में आपका Family background बेहतर रहा होता, तो आप सेना या पुलिस विभाग में अफसर बन कर अब तक कभी के सेवानिवृत्त हो चुके होते। पिछले दिनों मार्च में नौकापुरा के अपने एक पुराने छात्र रमेश यादव के तिलकोत्सव में जाना हुआ था तो श्री राम किशुन जी से भी शिष्टाचार भेंट हुई थी।
राम किशुन जी से मिलना, बातें करना अच्छा लगता है, क्योंकि आप में काइयाँपन नहीं है,आप अनावश्यक काँट-छाँट की बातें नहीं करते हैं। आप मस्त और व्यस्त रहते हैं,यह अच्छा लगता है। किसी बड़े पद पर पहुँचने वाले आत्ममुग्धता के शिकार लोगों की अपेक्षा अपने लोगों के बीच सामान्य और सहज रूप में आत्मीयतापूर्वक उपस्थित रहने वाले,मिलने-जुलने वाले प्रायः अधिक अच्छे लगते हैं।
---शशिविन्दुनारायण मिश्र
20.05.2022 शुक्रवार,
संशोधित -22.05.2025