Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Abstract

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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

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फ़ीका तिलक, मीठी राखियाँ

फ़ीका तिलक, मीठी राखियाँ

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"आज सही मौका है इसे सबक़ सिखाने का! बड़ा आया राखी बंधवाने वाला हमारी बिरादरी की लड़की से!"


"हां, ये वही तो है न 'याक़ूब', जो कल तेरी गाय के बछड़े की पूंछ पकड़ कर मज़े ले रहा था अपने दोस्तों के बीच! .. मारो साले को एक शॉट इसी खिलौना बंदूक से! .. और मैं फैंकता हूं ये पत्थर! आज यह राखी न बंधवा पाये अपनी पड़ोसन सविता से!"


निशाने साध कर दोनों ने याक़ूब पर वार किये ही थे कि तभी पास के मंदिर से घंटी की आवाज़ें और एक मस्जिद से अज़ान सुनाई दी! उन दोनों दोस्तों के क़दम वहीं थम गये। कुछ पल बाद देखा तो याक़ूब रक्तरंजित माथे के साथ जा चुका था सविता के घर। जब वे दोनों दोस्त वहां पहुंचे, तो याक़ूब के माथे पर पट्टी और कलाई पर राखी बांधी जा चुकी थी और वह सविता को कोई उपहार दे रहा था! सविता अब उन दोनों दोस्तों को चौकी पर बैठने के लिए बुला रही थी।


"तुम्हारा किया तिलक फीका था इस राखी और पट्टी के आगे! रक्षाबंधन मुबारक हो तुम दोनों को भी!" यह कहकर याक़ूब वहां से चला गया।



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