एस.पी. अभिमन्यु की प्रेम कहानी

एस.पी. अभिमन्यु की प्रेम कहानी

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उस दिन शहर का एस.पी. अभिमन्यु सिंह राजपूत एक कॉलेज में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित था। आमतौर पर तो उसे अपनी ड्यूटी से समय ही नहीं मिलता था। मिलता भी कैसे चार हज़ार अधिकारी और सिपाही थे उसके मातहत। उसके अलावा जिले भर की कानून व्यवस्था को बनाए रखना। कभी-कभी तो उसे लगता कि दिन में अड़तालिस घण्टे क्यों नहीं होते। 

लेकिन आज पता नहीं कैसे वह शाम को फुर्सत में था। शायद यह नियति ने ही तय करके रखा था कि वह आज की शाम फ्री रहे और उस कॉलेज में बतौर मुख्य अतिथि जाए और और उससे मिले।

जैसे ही वह कॉलेज पहुँचा प्रिंसिपल सहित लगभग सभी विभागाध्यक्ष उसके स्वागत में प्रांगण में ही खड़े थे। दो छात्राएँ हाथ में थाली लिए खड़ी थी। एक ने सकुचाते हुए उसके माथे पर तिलक किया। 

अभिमन्यु शहर भर में प्रसिद्ध था अपनी कर्मठता के लिए। कॉलेज में हर जगह छात्राओं की भारी भीड़ लगी हुई थी उसे देखने के लिए। वह यह सब देखकर सकुचा गया। अपने नियत स्थान तक बैठने और उसके बाद भी उसके आसपास लड़कियों का जमघट लगा ही रहा। सब उसके साथ एक फोटो लेने के लिए आतुर थी। जब कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ और वह बाकी अतिथियों के साथ स्टेज पर बैठ गया तब जाकर सेल्फी और फोटो का सिलसिला बन्द हुआ।

कार्यक्रम शुरू होते ही एक चेहरे पर अभिमन्यु की निगाह पड़ी और फिर वहीं जैसे ठहर ही गयी। वह कार्यक्रम की संयोजक और सक्रिय कार्यकर्ता थी।

अवनी....

हाँ यही नाम था उसका। कार्यक्रम के दौरान कई बार उसका नाम पुकारा गया था। किसी भी लड़की की तरफ आँख उठाकर न देखने वाला अभिमन्यु आज उसके चेहरे से नजर ही नहीं हटा पा रहा था। वह शरद पूर्णिमा की रात थी। क्या चाँद ने उस पर कोई जादू कर दिया था। पहली ही झलक में अवनी उसके मन की गहराई तक उतर गई थी। उसे वह बरसों की जानी-पहचानी लगी जैसे कि दोनों के बीच कोई नजदीकी रिश्ता है। 

कार्यक्रम के दौरान कई बार उड़ती-उड़ती नजरों से दोनों ने एकदूसरे को देखा। एक बार वह उसकी आँखों में बड़ी गहराई से देख रहा था कि तभी अवनी की नजर उस पर पड़ गई और वह मुस्कुरा दी।

'ओह' अभिमन्यु ने सोचा कितनी दिलकश मुस्कान है। 

उसका जरा भी ध्यान नहीं था कि कार्यक्रम में क्या चल रहा है। उसकी आँखें तो अवनी के आसपास ही घूम रही थीं। जब उसे वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया गया तब वह उठा और खुद को संयत करके छात्राओं को एक स्पीच दी।

कार्यक्रम खत्म होने के बाद फिर एक बार उसे सबने घेर लिया लेकिन उसकी आँखें तो बेसब्री से अवनी को तलाश रही थीं लेकिन वह ऐसे गायब हुई कि दुबारा दिखी ही नहीं। निराश होकर अभिमन्यु सबसे औपचारिक विदा लेकर अपनी गाड़ी तक आया।

""आपकी स्पीच बहुत शानदार थी।" पीछे से एक दिल के तारों को छेड़ देने वाली खनक भरी आवाज सुनकर उसने पलटकर देखा। अपने चेहरे पर एक बहुत ही प्यारी और दिलकश मुस्कान सजाए अवनी खड़ी थी।

"थैंक्स ! आप लोगों का सारा कार्यक्रम भी बहुत बढ़िया था।" अचानक ही उसे अपने सामने देखकर वह नर्वस सा हो गया और उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या बोले और कैसे बातचीत शुरू करे।

"जी मेरा नाम अवनी है, अवनी वर्मा।" अवनी ने ही औपचारिक बातचीत शुरू की।

"आपसे मिलकर अच्छा लगा। मैं अभिमन्यु सिंह राजपूत, सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस।"

और फिर दोनों के बीच दस मिनट तक औपचारिक बातें हुईं फिर एकदूसरे का मोबाइल नम्बर लेकर उन्होंने विदा ली। 

घर लौटने पर अभिमन्यु ने अपने मन में एक अनजान सी उद्विग्नता महसूस की। उसे बार-बार अवनि का चेहरा, उसकी प्यारी सी मुसकान और उसकी मासूम सी बातें याद आ रही थीं। देर रात तक वह अपने मोबाइल में उसका नम्बर देखता रहा। उसे अवनि से बात करने का बहुत मन कर रहा था। वह बाहर गैलरी में आकर खड़ा हो गया। बड़ी हसीन थी यह पूरे चाँद की रात। कजरारे से मखमली आसमान पर हीरे की कनियों से जड़े सितारों के बीच पूर्णिमा का चाँद अपनी सम्पूर्ण शुभ्र, धवल उजली चाँदनी का अमृत बरसा रहा था। अभी को सहसा याद आया। अवनि ने भी तो ऐसा ही शुभ्र धवल सलवार कुर्ता पहना हुआ था और हीरे की कनियों सी छिटकी चुनरी डाली हुई थी। इस चाँद में उसे अवनि का चेहरा ही नजर आने लगा।

क्यों आयी थी वह उसके पीछे.... क्या अभिमन्यु के प्रति उसके मन में भी कुछ भाव उठ रहे थे।

क्या यह "लव एट फर्स्ट साइट" है.....

28 सालों से सम्भालकर रखा हुआ दिल इस तरह एक अनजान लड़की को दे आएगा वह, यह तो उसने सोचा ही नहीं था। कॉलेज जाने के पहले तक वह क्या था और क्या हो कर वापस आया।

एक कसक, बैचेनी एक टीस....

जब शीतल चाँदनी उसका तन जलाने लगी तो वह अंदर आकर बेड पर लेट गया। नींद नहीं आ रही थी। 

अचानक उसके मोबाइल पर एक बीप आयी। उसने देखा....उसके दिल की धड़कने तेज हो गई। अवनि का मैसेज था। यूँ तो यह एक साधारण फोरवर्डेड मेसेज था लेकिन इसका मतलब यह है कि अवनि भी उसके बारे में सोच रही थी। और उसका मन अचानक खुशी से भर गया। उसने भी एक सन्देश फॉरवर्ड कर दिया और.....फोरवर्डेड मेसेजेस से प्रारम्भ हुआ वार्तालाप जल्दी ही व्यक्तिगत बातचीत पर आ गया और फिर दिन प्रतिदिन यह बातचीत अनौपचारिक और आत्मीय होती गयी। अक्सर वो अवनि की कॉलेज लायब्रेरी में या किसी रेस्टोरेंट में मिलते। अवनि उसके दिल के बहुत करीब आ गई थी। 

वह चौबीसों घंटे अवनि के बारे में ही सोचता रहता। रात भर वह उसकी याद में बैचेन रहता, सो भी नहीं पाता। क्या वह भी उसके बारे में ऐसा ही महसूस करती होगी।

क्या उसे अवनि को बता देना चाहिए।

क्या उसके मन में भी ऐसी ही भावनाएँ होंगी। 

क्या अवनि के मन में भी उसके लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर है।

बात करते हुए उसकी आवाज में भी अभिमन्यु के लिए गहरी आत्मीयता तो महसूस होती है। बड़े-बड़े अपराधियों से न डरने वाले दबंग पुलिस अधिकारी की जान सूख रही थी एक लड़की से अपने प्यार का इज़हार करने में। जो जान हथेली पर लेकर बेधड़क अपराधियों का एनकाउंटर करता है, जिसकी आवाज सुनकर अपराधियों के कलेजे हिल जाते हैं आज उसी की बोलती बंद हो गई थी।

एक लड़की के सामने।

फिर भी अभिमन्यु ने एक दिन तय कर ही लिया की वह आज तो अवनि से दिल की बात कह ही देगा और उसने रात को 11 बजे उसने धड़कते दिल से उसे फोन किया।

"कहाँ हो तुम ?"

"मैं अपने कमरे में हूँ।"

"तुम्हारे साथ और कौन है ?"

"कोई नहीं है।"

"क्या तुम्हारे कमरा अंदर से लॉक है ?"

"आज आप यह सब कुछ क्यों पूछ रहे हैं, क्या हुआ ?"

"मुझे बताओ प्लीज क्या तुम्हारा कमरा अंदर से बंद है।"

"हाँ बाबा मेरा कमरा अंदर से बंद है"

"अवनि...."

"क्या हुआ सब ठीक तो है ?"

"दरअसल पिछले कुछ दिनों से मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है।"

"क्या अजीब सा ?"

"मेरे दिल में कुछ अजीब सी भावनाएं जन्म ले रही हैं तुम्हारे लिए।"

"....." अवनि चुप थी।

"चुप क्यों हो, तुम्हे भी मेरे प्रति मन में कुछ खास फिलिंग लगती है क्या। प्लीज मुझे बताओ न तुम भी मेरे लिए कुछ स्पेशल फील करती हो क्या। तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ खास जगह है क्या।" अभिमन्यु ने जिद की।

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा क्या कहूँ।" अवनि शरमाई हुई सी बोली। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था।

"पिछले कुछ दिनों से मैं रात भर चैन से सोया नहीं हूँ। सारी रात बस मैं तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूँ। मैं अपने काम पर भी ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहा।" 

"फिर?" अवनि मन ही मन मुस्कुराई।

"क्या फिर....आई लव यू।" अभिमन्यु ने अपनी सारी ऊर्जा एकत्रित करके कहा। उसके कान लाल हो गए।

"....." अवनि चुप थी।

"तुम चुप क्यों हो। कुछ तो बोलो। तुम क्या महसूस करती हो।"

अवनि के मन में तो हरसिंगार खिल उठे थे। उसके कपोल कचनारी हो गए। जबसे अभिमन्यु को देखा था तभी से तो वह उसे दिल दे बैठी थी लेकिन कभी ये बात जुबान पर लाने की हिम्मत ही नहीं हुई थी। आज खुद अभिमन्यु ने ही प्यार का इजहार कर दिया था तो उसके होठों पर सुर्ख गुलमोहर खिल उठा। गालों पर पलाश दहक उठा। लेकिन वह सब्र किये बैठी रही। उतावली में एकदम से कैसे कह दे कि वह भी उससे प्यार करती है।

अभिमन्यु न जाने कितनी देर तक उससे मनुहार करता रहा। 

"प्लीज बोलो न। कुछ तो बोलो।"

बहुत बेताब करने के बाद अवनि के मुँह से निकला-"आई लव यू टू"

"फिर से कहो"

"आई लव यू टू"

"फिर से...."

"आई लव यू"

अपने कमरे में बैठे अभिमन्यु को लगा कि आसमान से उतर कर सारी चांदनी आज उसके कमरे में छिटक गयी है। रातरानी और रजनीगन्धा के फूलों की सुगंध से उसका कमरा महक उठा है। खुद उसके भीतर भी तो एक मदिर सुगंध उतरती जा रही है। वह जाकर गैलरी में खड़ा हो गया। चाँद में आज फिर उसे अवनि का ही अक्स दिखाई दे रहा था। 

रात उसे बड़ी लम्बी लग रही थी आज। क्योकि सुबह अवनि से मिलने का वादा है। यूँ तो कई बार मिल चुका है वह उससे लेकिन कल का मिलन तो खास है न। कल वह अपनी अवनि से मिलेगा। पूरे अपनेपन के साथ। 

और दूसरे दिन वह अवनि के कॉलेज के बाहर खड़ा था। पाँच मिनट बाद ही अवनि बाहर आई।

आज उसने गहरे कॉफी कलर का सलवार सूट पहन रखा था। उसका गोरा रँग आज और निखर आया था।

"क्या बात है आज तो मैडम का चेहरा हेलोजन लाइट की तरह चमक रहा है।" अभिमन्यु प्रशंसात्मक शब्दों में बोला।

"यह बस आपके प्यार की वजह से है।" अवनि की आँखों में उसके लिए ढेर सारा प्यार छलक रहा था।

अभिमन्यु उसे मंदिर ले गया। भगवान के दर्शन करने के बाद दोनों बाहर लॉन में बैठ गए। अभिमन्यु ने जेब से एक सोने की चेन निकाली जिसमें हीरे का ए लिखा हुआ खूबसूरत लॉकेट था।

"यह मेरी तरफ से स्वीकृति है कि मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा अब कभी कोई दूसरी लड़की नहीं आएगी। रस्मे चाहे कभी भी हो, घरवालों को हम चाहे कभी भी बताएँ लेकिन मैं मन प्राण से इसी समय से तुम्हे अपनी जीवनसंगिनी स्वीकार करता हूँ। अगर तुम्हें भी मैं इस रूप में स्वीकार हूँ तो प्लीज ये चेन पहन लेना। और अगर नहीं तो कोई बात नहीं। इसे मत पहनना, मैं समझ जाऊँगा और चुपचाप चला जाऊँगा।" अभिमन्यु ने चेन अवनि के हाथ पर रख दी।

"जीवनसंगिनी कहते हैं और ये भी नहीं पता कि मंगलसूत्र लड़का पहनाता है, लड़की खुद नहीं पहनती। आप अपने हाथ से पहनाइए न।" अवनि ने चेन अभिमन्यु को दे दी।

आँखों मे दोनों जहां का प्यार भरकर अभिमन्यु ने उसे देखा और चेन उसके गले में पहना दी। 

"हमेशा इतना ही प्यार करती रहोगी न।"

"आखरी साँस तक" 

"कभी छोड़कर तो नहीं चली जाओगी ?"

"छोड़कर ही जाना होता तो बुआ से कहकर आपको चीफ गेस्ट बनाकर कॉलेज क्यों बुलवाती ?" 

"क्या... कौन बुआ ?"

"कॉलेज की प्रिंसिपल। मेरी बुआ ही तो हैं। जबसे अखबार में आपका फोटो देखा था तभी से आपको दिल दे बैठी थी तो आपसे मुलाकात का सबसे अच्छा तरीका वही लगा। और इस बहाने घण्टों आपके आसपास रहने और फिर आपसे बात करने का मौका तो मिला।" अवनि ने बताया।

"ओह तो यह बात है लेकिन इतने दिन फिर कहा क्यों नहीं कि तुम्हे भी मुझसे प्यार है।" अभिमन्यु हँसते हुए बोला।

"डर लगता था कि कहीं आपके मन में ऐसा कुछ न हो तो आप नाराज न हो जाएं। इसलिए पहले आपके मुँह से सुनना चाहती थी।" अवनि मुस्कुराई।

"तो इसका मतलब है तुम्हारे घरवाले इस रिश्ते के लिए तैयार है।"

"हाँ जी सब तैयार है बस आपकी हाँ का ही इंतज़ार था तो वो भी आज मिल गयी।" अवनि बोली।

"ओह मेरी जान... जानू। मैं बता नहीं सकता आज मैं कितना खुश हूँ। तुमने मेरी बेरंग जिंदगी में प्यार के अनगिनत रंग भर दिए हैं।" अभिमन्यु ने अवनि के कंधे पर हाथ रखकर उसे अपने करीब खींच लिया। मन्दिर में मधुर स्वर में घण्टी बज उठी। आसपास खिले गुलाब महक रहे थे और महक रहा था अवनि का साथ पाकर एस. पी. अभिमन्यु का मन।


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