एनकाउंटर (2)

एनकाउंटर (2)

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(गतांक से आगे) 


लेटर बॉक्स में डाला गया ये लिफाफा लगता है तुम्हारे लिए लिखा गया है कहते हुए, एक शाम अनिल ने शुभि को लिफाफा दिया था, जिस के ऊपर "मैडम जी" लिखा हुआ था। इसे शुभि को देने के बाद अनिल अपने लैपटॉप पर काम करने लगे थे।

कौन लिख सकता है! दिमाग में यह प्रश्न लिए अंदर बैड पर आकर, कमर तक लिहाफ ओढ़ते हुए, शुभि ने लिफाफा खोला था। पहले उसकी दृष्टि दो पृष्ठों में लिखे पत्र के अंत में गई थी जहाँ लिखा था - आपका - ड्राइवर भाई। 

शुभि को इससे विस्मृत हो गई लगभग डेढ़ वर्ष की उस रात का स्मरण हो आया था। उस ड्राइवर ने क्या लिखा है? यह जानने की प्रबल उत्सुकता के साथ उसने एक एक शब्द को पूरे ध्यान से पढ़ना आरंभ किया था। जो यों लिखे गए थे मैडम (बहन) जी,

मैं वह कैब ड्राइवर हूँ, जिसे क्षमा कर आपने नवजीवन दिया है। आपके हृदय विशालता के लिए मैं आजीवन आपका बहुत बहुत आभारी हूँ। यह पत्र लिखने का मेरा अभिप्राय आपको यह अवगत कराना है कि आपने, जिसे क्षमा और पुनर्जीवन का अवसर दिया, वह इस का सही पात्र है। आपको स्मरण हो आई होगी वह रात। आप पर क्या बीती उसकी मुझे थोड़ी कल्पना है, लेकिन उस रात की घटना का असर मुझ पर क्या हुआ तब से आज तक का विवरण आपकी जानकारी के लिए यूँ है - 

"मेरे बहुत ना नुकुर के बावजूद आपने जिस जबरदस्ती से मेरी कैब का भाड़ा अदा किया था उससे मुझे यह भान तो हो गया था कि आप मेरे अपराध के लिए माफ़ कर रही हैं।" फिर भी उस रात मैंने कैब सर्विस आगे नहीं करते हुए अपने घर की राह ली थी। रास्ते भर यह सोचते हुए घबराते रहा था कि अगर आपने सर, को सारी घटना बता दी तो उनकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बुरी सिध्द हो सकती है।

 रात्रि 2.45 मैं घर पहुँचा तो दरवाज़ा माँ ने खोला था, पूछा था - अमित बेटा, तुम आज जल्दी आ गए! मैंने नज़र चुराते हुए झूठ कहा था, माँ बहुत नींद आ रही है। फिर मैंने अपने पार्टीशन की एलईडी लाइट जलाई थी। रात्रि के इस पहर में बिस्तर पर मेरे दो वर्षीय बेटे के साथ मेरी पत्नी वंदना गहन निद्रामग्न थी। उसे देख मुझे याद आया था, कैब में 'सोते हुए आपका सुंदर चेहरा' जिसे देख मुझ पर वासना का भूत सवार हुआ था। 

तब वंदना के चेहरे की तुलना, आपके चेहरे से, मेरे दिमाग में कौंधी थी। उस समय वह मुझे, आपसे कहीं कम रूपवान नहीं लग रही थी। बस फर्क थोड़े श्रृँगार और व्यवस्थित आकर्षक वस्त्रों का वंदना पर न होने का था। मैंने बहुत ही हल्के से वंदना के चेहरे पर अपने दोनों हाथ फेरे थे और हौले से (ताकि उसकी नींद न खुल जाए) उसके माथे पर प्यार का चुंबन अंकित किया था और स्विच ऑफ करके अपने वस्त्र बदल के अपने बेटे एवं वंदना के बगल में आ लेटा था।  आपकी बातों ने मेरे मन को अच्छाई की दिशा में आंदोलित कर रखा था।

साथ ही, रात घटी घटना और वंदना में एक नई तरह की दृष्टि से मेरे देखने ने, मेरी नींद उड़ा रखी थी। मेरा दिमाग जितना सक्रिय तब हुआ वैसा अभूतपूर्व था। मैं विचार कर रहा था क्या अंतर है मुझ में और एक अच्छे कहलाने वाले युवा पुरुष में! शरीर से मैं, अन्य जैसा बलिष्ठ था। मुखड़ा भी मेरा सामान्य तौर पर ठीक था। पढ़ाई में अवश्य कुछ अंतर था लेकिन इतने पढ़े भी अच्छा जीवन जीते हुए मैंने देखे थे। परिवार को समर्पित उनके कार्य और व्यवहार से वे सुखी हैं यह भी देखा था। 

तब क्या फर्क था 'किसी और' और मुझ में?

मुझे तब अनुभव हुआ कि मेरे आसपास दिखते जीवन प्रवाह में, मैं बिना स्वयं विचार किये बहता आया था। जैसा मेरे पास पड़ोस में सब करते हैं, वैसा मैं करते जा रहा हूँ। घर में पत्नी के साथ दासी जैसा बर्ताव करता हूँ। अर्जित तो 30-40 हजार कर लेता हूँ लेकिन औरों की देखादेखी उसमें से पाँच-सात हजार अपने शराब-सिगरेट-तम्बाखू-गुटका आदि पर व्यय कर देता हूँ। 

घर-परिवार और समाज के प्रति क्या होती हैं, मेरी जिम्मेदारी कभी शाँतचित्त हो गंभीरता से मैंने विचारा ही नहीं है।  

मैंने आपकी अस्मिता पर हाथ तो डाल दिया था लेकिन जिस पत्नी को मैं दासी सा दर्जा देता रहा हूँ, उस पर कोई ऐसा गंदा हाथ रखे, इसकी कल्पना ही मेरे लिए असहनीय हुई थी। मुझ मूरख ने आपके साथ ऐसा करते हुए, पहले क्यों नहीं सोचा था।

कितनी ही बलात्कार-हत्या की घटना पढ़ने-सुनने में आ रही थीं, मैंने अब तक पीड़िता और अपराधी के अपराध पश्चात की दयनीय दशा को पहले क्यों नहीं सोच पाया था"अवश्य ही शिक्षा, संस्कार, पास पड़ोस और घरेलू परिवेश तथा हमारी वित्तीय दशा कुछ कमजोर थी। फिर भी भगवान ने मुझे दिमाग तो कुछ हीन नहीं दिया था। अब तक अपनी विचार शक्ति का प्रयोग मैं क्यों नहीं कर सका था! "क्यों, मैंने अपनी प्रदत्त क्षमताओं का प्रयोग नहीं किया था? क्यों मैं, अधिकाँश औरों की भाँति सभी कमियों का दोष समाज और सरकार पर मढ़ता रहा था। संपूर्ण क्षमताओं सहित ही मेरा शरीर और मस्तिष्क मुझे मिला था। क्यूँ मैं दिमागी पंगूपन जैसा बिहेव करता रहा था?

मैं नहीं सोचता आपकी अस्मिता से खिलवाड़ की मेरी कोशिश क्षमा योग्य थी। किंतु सच मानना बहन जी, आपकी क्षमा, "टर्निंग पॉइंट" जिसे कहते हैं, मेरे जीवन के लिए वैसी सिद्ध हुई थी। उस रात मैंने अपने पर स्व-नियंत्रण का निर्णय किया और संकल्प किया था कि अब मैं कमियों के लिए दोष और बहाने के लिए अन्य को जिम्मेदार नहीं बताऊँगा। 

बच गए मेरे जीवन और आपसे मिल गई दोष विहीनता की स्थिति का उपयोग कर मैं जीवन में परिवार और समाज के लिए आमूलचूल परिवर्तन लाऊँगा। इन विचारों के साथ मेरा मन हल्का हुआ था और तब मैं कुछ घंटों के लिए सो गया था। 

जब वंदना के जगाये जाने पर मैं उठा था, मैंने उस पर, तब तक की सबसे अधिक प्यार भरी दृष्टि से देखा था। आज के पहले की कोई सुबह ऐसी नहीं लगी थी। मेरे जीवन में वह सुबह अभूतपूर्व नई सुबह थी।

मेरी बोलचाल एवं व्यवहार में उसी सुबह से बदलाव हो गया था। माँ के प्रति ज्यादा आदर, बहन के लिए ज्यादा अनुराग और वंदना के प्रति बेहद प्यार और सम्मान सबने अनुभव किया था। यहाँ तक कि मेरे परिचित और ड्राइवर मित्र भी, मेरे में दर्शित मधुरता से चकित थे। मैंने उसी दिन से शराब और अन्य लत त्याग दीं थी।

कुछ दिन सुनिश्चित हो जाने पर वंदना ने एकांत मिलने पर जिज्ञासा से प्यार भरे स्वर में मुझसे पूछा था 'ये आप पर अचानक सज्जनता का भूत कहाँ से सवार हो गया?'

उस प्रश्न पर वह मुझे रात स्मरण हो आई थी। मुझे शर्मींदगी का एहसास हुआ था। अपने कर्मों की कुरूपता उसके समक्ष स्वीकार करने का साहस मैं कर नहीं सका था। वंदना की दृष्टि सें बचते हुए मात्र इतना कहा था 'भूत सवार नहीं हुआ बल्कि मुझ पर खराबियों का सवार भूत उतर गया है'.

उसके प्रश्न कैसे? का उत्तर नहीं देते हुए उसे भुला देने के लिए मैंने अपने प्रेमपाश में ले लिया था। 

मैडम जी, आपके किये एहसान का बदला चुकाने के लिए, मैंने तब से अपने संकल्प को किसी भी परिस्थिति में कमजोर नहीं पड़ने दिया। मैंने अपने शराब आदि के खर्चे से बचे पैसे से वंदना को आपके तरह के आकर्षक परिधान और श्रृँगार सामग्री हर महीने ला कर देना आरंभ किया। माँ, बहन और बेटे के लिए भी उनकी जरूरतों पर ज्यादा व्यय आरंभ किया। आप यूँ समझिए कि मुझे लगने लगा कि जो जिम्मेदारी मुझ पर होती हैं, उन्हें ज्यादा बेहतर मैं निभाना सीख गया।

वंदना ने विवाह बाद से ही अपनी कंप्यूटर की हासिल शिक्षा को लेकर जॉब करने की अनुमति मुझसे कई बार चाही थी। मैंने संकीर्ण सोच के कारण जिसे अनसुना किया हुआ था। उस रात की घटना के बाद मैंने अपनी सोच भी वृहत/विस्तृत कर ली। वंदना के साथ, जॉब की तलाश की, पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से वह एक ऑफ़िस में तीस हजार की वेतन पर सर्विस कर रही है। मेरे बेटे को, माँ सम्हाल लेती है। बहन को मैंने सीए की पढ़ाई में डाल दिया है। अपनी जिम्मेदारियों का भार अब ज्यादा लेते हुए, मानसिक दबावों से, मैं हल्का हो गया हूँ और ज्यादा गंभीरता से और ज्यादा समय, कैब चलाते हुए, मैंने अपनी स्वयं की आमदनी भी 50 हजार से ज्यादा कर ली है।  

ऐसा पत्र मैं पहले भी लिखने की सोचता रहा था। लेकिन तब मुझे संदेह था - 

"तब वह मुझ में अच्छाई का आरंभ था।" तय हो चुका है कि "अब अच्छाई मेरी आदत हुई है", तब मैं यह लिखने का साहस कर सका हूँ। 

अपने कैब ड्राइवर मित्र और पास पड़ोस के नौजवानों में भी मैं, नशे की आदत छुड़ाने के यत्नों में रहता हूँ। मैं, अब घर-परिवार और समाज के उत्तरदायित्वों को ग्रहण करने की प्रेरणा और उदाहरण बनने लगा हूँ।

मेरे परिचितों में माँ बहने - पत्नियाँ अपने भाई, बेटे और पतियों को, मुझ सा बनने की बातें कहने लगीं हैं। आपको राहत होगी जानकार कि थोड़ा थोड़ा बदलाव मेरे कारण मेरे आस पास के घर परिवार और परिचितों में दिख भी रहा है मगर,-

मगर, यह अब भी राज है कि मेरे इस स्वरूप की पहचान स्वयं मुझे किस कारण से हुई है। 

अंत में मैं यही लिखूँगा कि जिस तरह की घिनौनी हरकत के बाद आपने मुझे माफ़ किया - वैसा किसी अन्य को माफ़ करना उचित है या नहीं, मैं नहीं जानता हूँ। कुछ ड्राइवर अच्छे भी हैं, कुछ की बातें और आदतें ख़राब भी हैं, जरूरी नहीं इस तरह की माफ़ी से सब मेरे जैसे बदल जाए लेकिन, आपने मुझे क्षमा कर, जीवन का जो अवसर मुझे दिलाया है, मैडम जी उस अवसर का लाभ लेने में मैंने कोई चूक नहीं की है। मैं कृतज्ञ हूँ, आभारी हूँ, ऋणी हूँ, और जो भी योग्य शब्द हैं, मेरी भावनाओं को आप तक पहुँचाने के लिए, आप उनसे समझना। 

मगर, -

मगर, काश, अपने मानवीय गुणों को, वह भूल करने के पहले, मैं पहचान पाता, तो कभी कभी उत्पन्न होते, स्वयं, मेरे धिक्कार बोध से मैं ,बचता।

उस रात अपनी संपूर्ण मानवता और उसके प्रति करुणा दर्शाते हुए

"आपने मेरा एनकाउंटर टाला था तथा मेरी अपराध वृत्ति का एनकाउंटर कर दिया था। " 

आपके चरण स्पर्श मेरी भाग्य विधाता बहन, मैडम जी,

आपका -

ड्राइवर भाई।

शुभि को हैरत हुई कि बिलकुल वैसे ही शब्द जैसे, उस रात्रि कैब से उतरते हुए उसके मन में आये थे, कैसे! अमित (ड्राइवर) के पत्र में, उसने अंत में लिखे थे।

निश्चित ही कोई अदृश्य शक्ति थी जो इस पूरे घटनाक्रम को नियंत्रित कर रही थी।

शुभि ने बार बार इस पत्र को पढ़ा था। फिर संतोष की श्वास ली थी। अपने विचार अनुरूप या कहें उससे अधिक अच्छे, परिणाम के मिलने पर प्रसन्नता का अनुभव किया था। फिर उठी थी, स्टडी रूम में आकर, अनिल को उस रात की घटना का पहली बार ब्यौरा देते हुए, उसे यह पत्र पढ़ने दिया था। अनिल ने लैपटॉप अलग करते हुए तभी इस पत्र को पढ़ना आरंभ किया था .....  


(आज गणतंत्र दिवस है। मेरा गणतंत्र ऐसे नागरिक से मिल कर मजबूत बने, ऐसी आशा सहित - गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें)



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