एक टुकड़ा प्यार का
एक टुकड़ा प्यार का


प्यार होना और फिर शादी हो जाना किसी भी प्रेमी-जोड़े का सबसे खूबसूरत दिन होता है। लेकिन हर प्रेमी जोड़े के नसीब में ये खूबसूरत दिन हो ऐसा जरूरी नहीं होता।
वो शुरू से ही किस्मत की मारी रही थी। प्यार हुआ भी तो उससे जिसकी जाति ही अलग थी। माता-पिता ने जाति के बारे में सुनते ही मना कर दिया। उसने भी दिल पर पत्थर रख लिया लेकिन इस पत्थर का बोझ पहाड़ से कई गुना ज्यादा होता है। जो दिल को दबाता नहीं है बल्कि हर पल चोट करता है और चोट भी ऐसी कि दर्द से दिल तड़प कर रह जाता है!
ये कहानी है मन की भोली और सच्ची लड़की चकोरी की। जो सिर्फ इतना जानती थी, भले ही उसे गुस्सा जल्दी आता है लेकिन मन में कभी भी दुर्भावना नहीं होती थी, किसी के लिए नफ़रत नहीं होती थी। मुँह पर ही बात बोलने वाली चकोरी को इस बात से कभी फर्क नहीं पड़ा कि सामने वाला उसकी बात सुनकर उसे बुरा कहेगा या भला। हाँ कभी-कभी जब वो गुस्से में कुछ ज्यादा ही किसी को कुछ बोल देती थी तब उसे लगता था बात तो उसने सही कही थी लेकिन इस तरह कहनी नहीं चाहिए थी। पर अब तीर कमान से निकल गया तो निकल गया। उसने गलत बात कही होती तो वो माफ़ी भी मांग लेती लेकिन सही बात कहकर खुद ही माफ़ी मांग लेना उसे सख्त नापसंद था या सीधे शब्दों में कहे तो उसने आज तक कभी किसी से माफ़ी मांगी ही नहीं थी।
अपने वसूलों पर चलने वाली चकोरी की जिंदगी में तकलीफे हमेशा डेरा जमाए रहती थी। वो दुखी होती, अकेले में रोती। लेकिन मजाल है उसकी आँखें उसके रोने की चुगली कर सके। सबकी नजरों में वो मस्त रहने वाली एक चुलबुली लड़की थी।
कभी कभी छोटी-मोटी कविता भी वो लिख लिया करती थी लेकिन कविता लिखने के बाद अक्सर सोचती, "उफ्फ ये कविता लिखना भी कितना सीरियस काम है, मेरे चेहरे पर सीरियसनेस बिल्कुल अच्छी नहीं लगती।
बात हो रही थी च
कोरी के प्यार की। जिससे उसे प्यार हुआ वो देखने में कुछ खास नहीं था लेकिन उसके व्यवहार पर मर मिटी थी चकोरी। वो चकोरी जिसने कभी किसी लड़के से सीधे मुँह बात नहीं की थी एक सीधा-सादा लड़का उसे पसंद आ गया था।
दोनों एक ही ऑफिस में काम करते थे। वो चकोरी का सीनियर था। नाम था 'प्रांजल' अपने नाम की तरह ही सरल और सुबोध। अक्सर लोगों को पहली नजर में ही प्यार हो जाता है लेकिन चकोरी के मामले में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। पहली बार जब उसने प्रांजल को देखा था तब उसने सपनें में भी नहीं सोचा था कि यही इंसान उसका प्यार बन जायेगा।
उनकी मुलाकात थी ही कुछ ऐसी। जुलाई का उमस भरा महीना था। चकोरी की कम्पनी में आज ही नया मैनेजर आने वाला था। कम्पनी का ऑफिस नौवीं मंजिल पर था और संयोग कुछ ऐसा बना कि ठीक उसी वक़्त लिफ्ट खराब हो गई जब मैनेजर महोदय यानि प्रांजल ने ग्राउंड फ्लोर पर अपने कदम रखे। गार्ड ने बताया मैकेनिक के हिसाब से घंटा भर लग जायेगा लिफ्ट को ठीक करने में।प्रांजल को कुछ समझ नहीं आया। उसने सोचा घंटा भर खड़े रहकर इंतजार करने से अच्छा है कि वो सीढ़ियों के रास्ते चला जाए। एक तो गर्मी बहुत ज्यादा थी ऊपर से नौवीं मंजिल तक सीढ़ी चढ़ना! ये सच में बहुत पसीने वाला काम था।
प्रांजल पसीने से तर होकर अपने गहरे रंग को और गहरा करके बॉस के केबिन में पहुंचा ही था कि तभी चकोरी भी बॉस के केबिन में दाखिल हो गई। बॉस ने चकोरी और प्रांजल का परिचय एक दूसरे से कराया। प्रांजल चकोरी को देखते ही उसे पसंद कर बैठा। प्रांजल की भावनाओं से अनजान चकोरी ने इस हालत में प्रांजल को देखकर मन ही मन सोचा, " हे भगवान! ये इंसान धरती के कौन से कोने से आया है? "
पहली मुलाक़ात के दोनों के अपने विचार थे। चकोरी को प्रांजल अजीब प्राणी लगा था तो वही प्रांजल को चकोरी पहली नजर में ही भा गई थी।