एक टुकड़ा प्यार का 5
एक टुकड़ा प्यार का 5
चकोरी ये सब नहीं मानती थी लेकिन वो जानती थी उसके मम्मी-पापा इस शादी को मंजूरी नहीं देंगे इसलिए उसने खुद ही प्रांजल से रिश्ता तोड़ लिया। दिल का दर्द चकोरी ने अपने दिल में ही समेट लिया। माँ बाप के खिलाफ जाकर वो कभी शादी कर ही नहीं सकती थी। उसने बुझे मन से अपनी छोटी बहन को प्रांजल की जाति के बारे में बताया। एक झूठी उम्मीद अब भी उसके अंदर जल रही थी। क्या पता मम्मी पापा कह दे ठीक है, हो जाएगी शादी ! लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। छोटी बहन ने जब उन्हें बताया तो उन्होंने बस इतना ही कहा, " जाति का अंतर है, शादी नहीं हो सकती। चकोरी ने ये सुना और एक बार फिर वो खुद के आंसुओं को बहने से नहीं रोक पाई।
प्रांजल और चकोरी एक ही ऑफिस में थे लेकिन दोनों की हिम्मत नहीं हुई एक-दूसरे को देखने की। इससे पहले भी वो ऑफिस में बहुत कम, बस काम की ही बात करते थे या कभी बिल्कुल भी बात नहीं करते थे लेकिन आज ऐसा लग रहा था मानो ऑफिस में कोई हलचल है ही नहीं। सब कुछ बेहद सूना लग रहा था। सिर्फ ऑफिस ही नहीं घर भी सुनसान-सा खंडहर हो गया था। फोन भी बेकद्र सा पड़ा रहता। सिर्फ दो चार दिन में एक दूसरे से बात किए बगैर उनके लिए रहना मरने से भी बदतर हो गया था। ऑफिस के बाद आखिर चकोरी ने प्रांजल का नंबर लगा ही दिया। प्रांजल भी जैसे इसी पल के इंतजार में था उसने तुरंत फोन उठा लिया।
"हैलो ! !" प्रांजल धीमे से बोला
"हूं.. ! !" चकोरी प्रांजल की आवाज सुनते ही फिर से हिम्मत हारने लगी।
"सब कुछ इस तरह खत्म होगा सोचा नहीं था, मेरा यकीन करो जाति इस तरह बीच में आएगी इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था। होता तो शायद मैं तुमसे अपने दिल की बात कभी कहता ही नहीं।" प्रांजल ने बड़ी मुश्किल से ये सब कहा। असल में उसका गला भर आया था और चकोरी भी इस बात को समझ चुकी थी।
"जो होना था हो गया, माँ बाप के खिलाफ जाकर हम शादी नहीं कर सकते तो बेहतर होगा सब कुछ भूल जाते है।" चकोरी बड़ी मुश्किल से कह पाई। प्रांजल जो बड़ी मुश्किल से दिल का दर्द रोके हुए था फोन पर ही फूट फूट कर रोने लगा। चकोरी प्रांजल का ये दर्द नहीं सुन सकती थी उसने आँखें बंद की और फोन कट कर दिया। फोन को सीने से लगाए वो बड़ी देर तक रोती रही।
दोनों का जीना मुश्किल हो गया था लेकिन इस तरह जान जाती भी तो नहीं। दोनों ऑफिस में अक्सर एक दूसरे से नजरें चुराते लेकिन ऐसा भी कब तक चलता। एक दिन आखिर चकोरी ने प्रांजल को फोन लगा ही दिया।
"प्रांजल क्या हम दोस्त बनकट नहीं रह सकते?" चकोरी ने फोन पर प्रांजल से कहा
"नहीं रह सकते !" प्रांजल ने सपाट सा उत्तर दिया। चकोरी को प्रांजल के इस जवाब से धक्का लगा।
"क्यों ? हम दोस्त बनकर फिर से पहले की तरह क्यों नहीं रह सकते?" चकोरी बोली
"क्योंकि अब हमारे बीच पहले जैसा कुछ नहीं है।" प्रांजल बोला
"प्लीज ! प्रांजल, हमें कम से कम कोशिश तो करनी चाहिए सामान्य होने की।" चकोरी ने विनती की
"तुम कहती हो तो मैं कोशिश करूंगा लेकिन पहले की तरह रह पाऊँगा ये मैं नहीं कह सकता।" प्रांजल ने सीधे सरल शब्दों में अपनी बात कहीं।
चकोरी और प्रांजल धीरे धीरे सामान्य हो रहे थे हालांकि दोनों ही जानते थे कि वो बिल्कुल भी सामान्य नहीं है।
इस बात को कुछ वक़्त बीत गया। प्रांजल के घर वाले प्रांजल के लिए रिश्ता ढूढ़ने लगे। प्रांजल ये चाहता नहीं था लेकिन घर वालों को मना भी नहीं कर सका।
चकोरी के लिए भी रिश्ता आया लेकिन चकोरी ने फिलहाल साफ तौर से शादी के लिए मना कर दिया। उसके दिल में एक बात बस चुकी थी। शादी होंगी तो प्रांजल से वरना किसी से नहीं। वो किसी और से शादी कर भी कैसे सकती थी जबकि मन में तो बस प्रांजल ही था।
"जिस लड़की की कुंडली लाए थे उसकी कुंडली मेरी कुंडली से मैच हो गई है।" प्रांजल ने चकोरी को फोन पर बताया
"अच्छा ये तो बड़ी खुशी की बात है !" चकोरी ने खुशी जताते हुए कहा। लेकिन अंदर ही अंदर उसे बड़ा दर्द हो रहा था।
"आज ही लड़की देखने जाना है। शिवरात्रि की छुट्टी भी है और घर वालों का मानना है शिवरात्रि से ज्यादा अच्छा दिन कौन सा होगा।
"अच्छा ! फिर तो आपको एडवांस में ही बधाई ! !" चकोरी ने उत्साहित होते हुए कहा। जबकि वही जानती थी कि वो अंदर से कितना टूट चुकी है।
"अभी बात बनी नहीं है।" प्रांजल ने कहा
"चिंता मत कीजिए ! आज शिवरात्रि है शिवजी सब अच्छा ही करेंगे।" चकोरी प्रत्यक्ष खुश होती हुई बोली
"पता नहीं !" प्रांजल की आवाज में भी दर्द साफ नजर आ रहा था
"अगर आज बात बन गई तो आपको मिठाई खिलानी पड़ेगी।" चकोरी चहकते हुए बोली। सच तो ये था कि असल में उसका दिल उतने ही दर्द के हिलोरे ले रहा था
"पक्का ! जरूर खिलाऊंगा।" प्रांजल इतना ही कह सका
चकोरी शिवमन्दिर से पूजा करके लौट रही थी। प्रांजल की लड़की देखने वाली बात ने उसे दुख तो पहुँचाया लेकिन अपने दर्द को उसने बड़ी आसानी से छुपा लिया था।
"ठीक है बाद में बाद करते है जब आप लड़की देखकर लौट आएंगे। खुसखबरी मुझे जरूर सुनाना !" चकोरी बोली
"जरूर तुम्हें तो सबसे पहले।" प्रांजल ने कहा। उसने ऐसा क्यों कहा सबसे पहले चकोरी को बताने से उसका मतलब क्या था? इस बात को वो खुद ही नहीं समझ पाया और न ही ये समझ सका कि चकोरी उससे इतना चहक कर बात क्यों कर रही थी?
उधर फोन कटते ही चकोरी अपना दर्द संभाल नहीं पाई। प्रांजल के सामने उसने बड़ी खूबी से अपने खुश होने का दिखावा कर दिया लेकिन वो खुश कैसे हो सकती थी जबकि उसे पसंद करने वाला और उसे पसंद आने वाला किसी और को ही पसंद करने जा रहा था।