भारती भानु

Thriller Others

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भारती भानु

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खूनी बरसात... फिर वही रात 2

खूनी बरसात... फिर वही रात 2

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पिछले भाग में आपने पढ़ा....

कुशराण नाम के एक पहाड़ी गांव में एक बीमारी फैली है जिस बीमारी से सिर्फ उसी गांव के लोग ग्रसित है। नाकचुला नामक एक बाजार में जो कि छोटा मोटा स्टेशन भी है, इसी बीमारी कि चर्चा हो रही थी ज़ब एक युवक अभी आई हुई बस से उतर कर इस चर्चा पर विशेष कान लगाए हुए था। 

वो युवक कोई और नहीं लम्बाड़ी गांव का कमु है जो कि मन मौजी और घूमने फिरने का शौक़ीन है। गांव में आते ही उसकी मुलाक़ात अपने ही गांव की एक चंचल सी लड़की तारा से होती है।

उधर आस पड़ोस के सभी गांव में यही चर्चा फैली हुई कि सुजान की आत्मा आई है बदला लेने!

उसी रात जंगल में कुशराण का एक व्यक्ति ज्ञान सिंह मरा हुआ मिलता है, उसके शरीर से जगह जगह मांस छील कर बदला लिखने की कोशिश गई थी, जिसे पढ़ते ही सब के होश उड़ गए। 

फिर से कानाफूसी होने लगी सबको यही लगता है कि ये सब सुजान की आत्मा का कर रही है। 


अब आगे...


******

"एक गहरी सांस लो.... एक और बार...हूं.... इंजेक्शन देना पड़ेगा।" डाक्टर एक अधेड़ का चेकअप करते हुए बोले

"इंजेक्शन!!"अधेड़ इंसान जिसका नाम गणेश था थोड़ा घबराते हुए कमजोर आवाज के साथ बोला

"देखिए इंजेक्शन तो आपको लेना ही पड़ेगा।समस्या बढ़ गई तो फिर आसानी से ठीक भी नहीं होगी।"डॉक्टर सीरींज तैयार करते हुए बोला


"चेहरा दूसरी ओर कर लीजिए.. आँखे भी बन्द कर लीजिए,दिखेगा नहीं तो दर्द का अहसास भी कम होगा।"


गणेश ने वैसा ही किया

"वैसे समझ नहीं आता एक बस आपके ही गाँव में ये बीमारी कैसे फैल गई!दूसरे किसी भी गाँव में किसी को ऐसी बीमारी नहीं है।सुना है बाहर से आने वाला भी इस बीमारी की चपेट में आ जाता है?" डॉक्टर गणेश का ध्यान भटकाने के लिए बाते करता रहा।


"ये बात तो हमारी भी समझ में नहीं आती..." गणेश बोल ही रहा था जब डॉक्टर बीच में ही बोल पड़ा

"अब आप आँखे खोल सकते है।"

"क्या?!इंजेक्शन लग गया....पता भी नहीं चला!!"गणेश हैरान होते हुए बोला

डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कुछ दवाइयां निकाल कर सामने रख दी।

"इसे रात को सोते वक़्त लेना है,ध्यान रहे अल्कोहल बिल्कुल नहीं वरना दवा रिएक्शन कर सकती है,....ये सुबह खाली पेट और ये दोपहर को खाने के बाद।"डॉक्टर दवा देते हुए बोला

"किसी दिन घर आइये चाय पानी पीने, और नहीं तो शाम को टहलने के बहाने ही आ जाइए। "गणेश डॉक्टर की फीस देते हुए बोला।

"जरूर आऊंगा" डॉक्टर बोला और अगले मरीज को अंदर आने का इशारा किया। 


(डॉक्टर - प्रसन्नचित चेहरा, रंग गोरा,भरे हुए गाल, लम्बा-चौड़ा बदन, उम्र भी कुछ ज्यादा नहीं मात्र 27या 28 वर्ष ही होगी, होठों पर मुस्कान, आवाज में कशिश बातों में सौम्य लहर। कुलमिलाकर एक ऐसा व्यक्तित्व कि कोई भी लड़की अपना जीवन साथी बनाने से इंकार न कर सके। )


गणेश फीस देकर चला गया उसके बाद एक नौजवान ने अंदर कदम रखे, कद काठी सामान्य,चेहरा चॉकलेटी,चाल में बेफिक्री।

वो झूमता हुआ अंदर आया और बिना कुछ बोले- समझे सीधे डॉक्टर के सामने वाली चेयर पर बैठ गया।

डॉक्टर ने उसे असमंजस से देखा,कुछ सेकेंड उसे देखते रहे फिर अपनी आदत अनुसार पूछा,"क्या परेशानी है?"


"परेशानी!मुझे!! नहीं..नहीं..नहीं,परेशानी में तो आप लगते है!" आखिर के कुछ शब्द वो सस्पेंस भरी आवाज में बोला


डॉक्टर ने कुछ कहा नहीं, बस उसे देखते रहे,शायद उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहे थे।


"चिंता मत कीजिए,आपकी परेशानी का हल है मेरे पास!"नौजवान चेयर पर आराम से पीठ टिकाते हुए बोला


"कैसी परेशानी?मुझे कोई परेशानी नहीं है! और भला तुम क्या मदद करोगे?" डॉक्टर भी अपनी चेयर पर आराम से पीठ टिकाते हुए बोला। 


"आपके चेहरे को देख कर बता सकता हूँ ! "उसकी बात सुनकर डॉक्टर ने अपना चेहरा थोड़ा आगे किया और उस युवक को गौर से देखने लगे, "आपने सुबह से चाय नहीं पी है!!" वो युवक तपाक से बोला। 


"हूं!बिल्कुल,लेकिन तुम कौन हो??ज्योतिषी तो नहीं हो"डॉक्टर ने वापस कुर्सी से पीठ लगाते हुए कहा। 


"खुद की तारीफ हम खुद नहीं करते,उसके लिए हम किसी और को भेज देंगे। फिलहाल हम वो है जो आपकी ये परेशानी तुरन्त हल कर सकते है।"


"भला क्यों??"


"डॉक्टर का ख्याल तो रखना ही पड़ेगा वरना लोगों का इलाज कौन करेगा !" युवक थोड़ा सस्पेंस क्रिएट करते हुए गहरी आवाज में बोला।  


"तुम अपने मतलब की बात करो!" डॉक्टर मेज पर आगे झुकते हुए अजीब अंदाज में देखते हुए बोला। 


"तू ने डॉक्टर साहब को भी अपना पागलपन दिखा दिया!ये डॉक्टर है,पागलखाने भेज देंगे।" ये आवाज तारा की थी।, "डॉक्टर साहब आज थोड़ा लेट हो गई थी इसलिए इसे दूध लेकर भेजा था लेकिन ये न जाने कहाँ कहाँ घुमा लाया दूध को !!"तारा डॉक्टर से बोली लेकिन कमु को थोड़ा गुस्से वाली नजरों से घूर रही थी। 


"अच्छा! यही महाशय है, जिन्होंने तुम्हारी घास के ऊपर कत्थक करके सारी घास बेकार कर दी थी!"डॉक्टर समझने वाले भाव में मुस्कराते हुए बोले। 


"ओ हो!इतनी जल्दी मेरा प्रचार हो भी गया!"कमु तारा और डॉक्टर को देखते हुए बहुत आराम से बोला। 


"नमूने हो,प्रचार तो होना ही था!" तारा ने कमु का बैग खोला उसमे से दूध का बर्तन निकाल कर क्लिनिक के एक तरफ बने दरवाज़े से अंदर जाते हुए बोली, "मैं चाय बना लाती हुँ,आप इस पागल का इलाज कर दीजिए।"

तारा चली गई डॉक्टर और कमु दोनों की नजरें तारा से हटी और एक दूसरे पर ठीक गई।डॉक्टर कुछ बोलने ही वाले थे कि कमु अचानक नीचे झुका और उठते हुए बोला, "तारा भी न..! ठीक से सफाई नहीं करती, अरे ! मैं तो भूल ही गया। आज तो अभी तक सफाई हुई ही नहीं है।" बोलते हुए ही कमु ने डॉक्टर के सामने टेबल पर कुछ रखा और चला गया। 

डॉक्टर ने उस चीज को देखा फिर जाते हुए कमु पर एक तिरछी नजर डाली और टेबल पर पड़ा वो बटन उठाकर अपनी जेब में रख लिया।

तारा चाय और नाश्ता बना कर ले आई उसी वक़्त एक बुजुर्ग डॉक्टर के केबिन में दाखिल हो रहे थे,तारा चाय नाश्ता टेबल पर रख कर तुरंत दरवाज़े की तरफ लपक गई। 

"अरे! अरे!..काका अभी थोड़ा सा और बैठ जाओ,डॉक्टर साहब नाश्ता करते ही तुम्हारा चेकअप कर लेंगे।" तारा गेट पर खड़ी होते हुए बोली। 


"तारा!आने दो इन्हें, नाश्ता मैं बाद में कर लूंगा।"डॉक्टर हाथ से बुजुर्ग को अंदर आने का इशारा करते हुए बोले। 


"काका !कहाँ जा रहे हो!"तारा बुजुर्ग का रास्ता रोकते हुए बोली, "काका डॉक्टर साहब ठीक से खाएंगे पिएंगे नहीं तो वो खुद ही बीमार हो जायेंगे फिर आप ही बताइये इलाज कैसे होगा...."तारा एक प्यारी मुस्कान के साथ बोली। 

बुजुर्ग के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, "मैं थोड़ा इंतजार कर लूंगा,आप आराम से खाइये।"बुजुर्ग ने डॉक्टर की तरफ देखते हुए कहा। 


तारा जा चुकी थी डॉक्टर ने आए हुए मरीजों को दवा दी उसके बाद खत्म हुई दवा और नई दवा जो बाहर से मंगवानी थी उसकी लिस्ट बनाने लगे। डॉक्टर लिस्ट बनाने में मशगूल थे,जब उन्हें पास के गाँव में ज्ञान सिंह के मरने की खबर मिली।ज्ञान सिंह गणेश का भाई था जो अभी कुछ देर पहले ही डॉक्टर से दवा लेकर गया था। 

डॉक्टर भी इंसानियत के नाते चले आए,ज्ञान सिंह की लाश को उसके घर के आँगन में रखा गया था।


डॉक्टर ने करीब जाकर देखा, "ये काम.. या तो किसी बहुत ही शातिर इंसान ने सोच समझ कर किया है! या फिर किसी ऐसे व्यक्ति का काम है जिसको क़त्ल करना ही नहीं आता!" डॉक्टर ने पूरी बॉडी को गौर से देखते हुए कहा। 

डॉक्टर की बात सुन कर सभी डॉक्टर की तरफ आश्चर्य भरी नजरों से देखने लगे! डॉक्टर ने ज़ब सबको अपनी ओर देखता पाया तो एक बार फिर से समझाते हुए बोले, "मेरा मतलब है! जिसने भी इन्हें मारा है उसे या तो ठीक से पता ही नहीं था कि मारने के लिए किस तरह से कट करना है या फिर उसने सोच समझ कर ऐसा कट लगाया कि मरने वाला तड़प तड़प कर ही मरे!" डॉक्टर ने अपनी बात समझाते हुए कहा और भीड़ की तरफ देखा। डॉक्टर को लोगों की प्रतिक्रिया जाननी थी लेकिन गांव वालों ने डॉक्टर की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। आखिर उनकी नजरों में ये हत्या नहीं थी बल्कि किसी अनजान शक्ति का काम था। 


डॉक्टर गांव के परिवेश से अच्छी तरह परिचित था इसलिए उसने भी चुप रहना ही ठीक समझा। 


सबके पास अपने अपने किस्से थे।कोई कहता सुजान सिंह भूत बनकर वापस आया है,अपना और अपनी पत्नी का बदला लेने! कोई कहता..ये सुजान के लापता बेटे का काम है। 

"कदम कदम पर लोगों को तकलीफ़ ही दी है!इसकी मौत फिर भी बेहतर ही हुई है।" कोई भीड़ में फुसफुसाया।


सबकी अपनी अपनी बातें थी असलियत की किसी को कोई खबर ही नहीं थी बस बातें ही थी।

बातें तो होती रही लेकिन साथ ही साथ किर्याक्रम में सभी लोगों ने उसके परिवार वालों का पूरा साथ दिया। गाँव देहात की यही तो खूबी है।

पुलिस को इसकी खबर नहीं दी गई यहाँ सबके लिए इस तरह की घटना कोई ज्यादा बड़ी बात नहीं है। पुलिस पोस्टमार्टम करवाती इससे भी लोग रुष्ट ही रहते है मरे हुए इंसान की दुर्गति करवाना गांव वालों को पसंद नहीं। ये विचार कुछ ही लोगो के होते थे लेकिन इससे सहमत भी सभी थे। कुछ वास्तव में मरे हुए इंसान को और कष्ट नहीं देना चाहते थे तो वही कुछ लोगो को अपनी झूठी शान बना कर रखनी थी। 


सामने ज्ञान सिंह की चिता जल रही थी उसके तीनो छोटे भाई चंदन, गणेश और हरीश इस बात पर विश्वाश नहीं कर पा रहे थे कि उनका बड़ा भाई उन्हें इस तरह छोड़ कर चला गया। इस वक़्त सभी के मन में लगभग एक ही बात थी, ये जरूर सुजान के साथ हुई घटना का फल है या फिर खुद सुजान ही आ गया है बदला लेने!!


गंगा सिंह(पड़ोस के गांव का व्यक्ति) भी ज्ञान सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल था उसके चेहरे पर अजीब भाव थे,जैसे वो महज खाना पूर्ति के लिए शामिल हुआ था। 


"अरे!!..अरे !!..मैंने कहा था चाचा से, चले जाओ.. लेकिन नहीं माने !"एक मर्दाना आवाज पर सभी ने पलट कर देखा 


अजीब तरह का ढीला कुर्ता, फटी हुई गंदी सी जींस, बालों में जैसे तेल की टंकी ही उड़ेल दी हो, बोलने का तरीका भी सामान्य से थोड़ा अलग। कुल मिलाकर बोलने का अंदाज और हुलिया किसी पागल का ही था। 

हाँ! सब उसे पागल ही कहते थे लेकिन वो पूरी तरह पागल नहीं था। सभी को पहचानता था, काम भी कर लेता था। हाँ बातें ज्यादातर अजीब ही करता था!लापरवाह था। सामान्य से थोड़ा अलग। नवयुवक ही था अभी नाम था सूरज। सूरज पड़ोस के ही गांव से था।


उसकी बात सुनकर चिता के सामने खड़ा एक युवक अशोक बोला, 


"तुमने कल पापा को जंगल में देखा था?कब किस वक़्त देखा था?? " अशोक की आँखों में एक चमक उभरी थी उसे लगा शायद इस पागल ने किसी को देखा हो ज्ञान सिंह के आस पास। लोगों के बीच होती कानाफूसी उसने भी सुनी थी। लेकिन वो नहीं मानता था इस तरह की बातों को। इसलिए सब को झूठा साबित करने के लिए और अपने पिता के कातिल का पता लगाने के लिए एक पल को उसे भी उस पागल की बातों पर यकीन हो गया था। 


"घड़ी खराब थी मेरी उसे ही लेने जंगल गया था, ग्यारह बज रहे थे, पेड़ पर उलटे लटके हुए थे चाचा। मैंने पूछा 'चाचा क्या कर रहे हो?...वहाँ... 'बोले 'देखता नहीं सो रहा हुँ ' मैंने अपनी घड़ी ली और वापस आ गया। पता नहीं क्या क्या करते है जंगल में लोग!..."सूरज अपना सर अजीब तरीके से हिलाते हुए बोला। 


उसकी बातें सुन कर अशोक को निराशा ही हाथ लगी। 

"पागल आखिर पागलों वाली बातें ही करेगा!" उसने खुद से ही कहा 


***


शाम का समय था। काले बादल अपने काले लबादे में पहाड़ो को लपेटने की कोशिश कर रहे थे। ठंडी हवा के लहराते अदृश्य रेशे तन को छूकर मन को शीतल और निर्मल कर रहे थे। 

तारा फटाफट घास काट रही थी,उसे अभी बहुत से काम करने थे। जंगल से चम्पा यानि अपनी गाय को लाना था फिर डॉक्टर को दूध भी पहुँचाना था। उसके बाद जाकर उसे थोड़ा टाईम पढ़ने को मिलता। रात का खाना माँ बना देती थी जिससे तारा कुछ देर पढ़ाई कर लेती। 


तारा ने जल्दी जल्दी सारे काम निपटा लिए अब वो डॉक्टर को दूध पहुँचाने जा रही थी,तारा थोड़ा जल्दी में थी कि अचानक वो किसी से टकरा गईं। सारा दूध जमीन पर बिखर गया। तारा ने सामने देखा तो कमु खड़ा था। कमु भी अचानक हुई घटना से हैरान होकर आँखे फाड़ कर तारा को देखने लगा। 


"तेरे रहते एक काम ठीक से हो जाए तो मैं दिए जला कर आज ही दीवाली मना लूँ !" तारा जमीन पर बिखरे हुए दूध को देखकर बोली। 


"तू भूल मत जाना !"कमु अपनी टोन में बोला 


"क्या?? " तारा आँखों को सिकोड़ कर बोली। 


"दिये जला कर दीवाली मनाने वाली बात " कमु थोड़ा स्टाईल से बोला 


"तुझे तो जूते पड़ेंगे !अब खड़ा क्या है घर जा और माँ से कहना तारा ने दूध मंगवाया है "तारा खाली बर्तन जमीन से उठाते हुए बोली। 


"तू रहने दे, अब घर चल, दूध मैं दे आऊंगा। " 

"तू...! रहने दे सुबह जाने कहाँ कहाँ भटकता रहा दूध लेकर। "तारा तू शब्द को लम्बा करते हुए बोली। 


"तो तू ही ले आ मुझे कुछ काम है। " कहता हुए कमु वहाँ से निकल गया। 


"ऐसा नमूना मैंने पहले कभी नहीं देखा!" तारा पीछे से बोली। 

"मैंने भी..." कमु ने पीछे देखे बगैर ही कहा और कानो में हेडफोन लगा लिया। 

तारा कुछ देर उसे घूरती रही फिर वापस घर को चल दी दूध लेने । 


कमु कुछ दूर गया और वापस पीछे देखा, तारा उसे नजर नहीं आई उसने किसी को फोन लगाया। 


"ये जरुरी है क्या?" उधर से कुछ बोला गया "ठीक है, कुछ देर तो लगेगी ही, तब तक मैं अपना काम करता हुँ।"कमु ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया और कान में हेडफोन लगाए थिरकते हुए एक तरफ चला गया। 


*****


तारा कमु और उसके पिताजी रात के वक़्त खाना खाने बैठे थे पास ही चूल्हा जल रहा था जिस पर तारा की माँ गर्म गर्म रोटियां सेंक रही थी। गांव देहात में अब भी चूल्हे की रोटियां ही पसंद की जाती है इसलिए घर में गैस सिलेंडर होते हुए भी तारा की माँ चूल्हे पर रोटियां बना रही थी। 

"तुम कमु ही हो न!"अचानक तारा के पिता ने कमु से पूछा। 

"हाँ!!ये... मतलब...क्या मतलब... " कमु ऐसे सवाल से चौंक गया था, तारा भी कभी अपने पिता को तो कभी कमु को देखती। माँ ने भी कुछ पल के लिए पिताजी की तरफ देखा और फिर वापस रोटियां बनाने लगी। 


"वो...तुम काफ़ी छोटे थे ज़ब पिछली बार आए थे!इसलिए.."पिताजी ने बात अधूरी ही छोड़ दी 

अब तक कमु थोड़ा सम्भल चुका था 


"लेकिन! चाचाजी.. आपने ये बात यूँही तो नहीं पूछी!"कमु तारा के पिताजी की ओर देखते हुए बोला। 


"नहीं ऐसी कोई बात नहीं..दरअसल रात को तारा ने तुम्हें जंगल से आते हुए देखा था। "पिताजी खाते हुए बोले। 

एक बार फिर कमु खाते खाते रुक गया, "मुझे!!"कमु की आँखे फ़ैल गई। 

"हाँ! मतलब जंगल की ओर से टॉर्च की लाइट इस तरफ ही आते हुए देखी थी और तुम अपने बिस्तर पर भी नहीं थे। " चाचाजी सपाट स्वर में बोले। 

कमु ने तारा की तरफ देखा, तारा जो अब तक कमु पर ही नजर टिका कर बैठी थी सर नीचे किये चुपचाप खाना खाने लगी। 

"ओह!तो मेरी जासूसी कर रही हो!"कमु तारा की तरफ देखकर नाटकीय अंदाज में बोला। 

"दरअसल कल तुम आये और कल ही ज्ञान सिंह मर गया 'जंगल' में !" चाचा जी जंगल शब्द पर विशेष जोर देते हुए बोले। 

कमु का निवाला हाथ में ही रह गया। उसने हैरानी के भाव लिए हुए चाचाजी की तरफ देखा।

"लगता है आप दोनों जासूसी नॉवेल कुछ ज्यादा ही पढ़ते है!!मिस जासूस बेड के नीचे भी देख लिया होता!!" कमु तारा की तरफ देखते हुए हाथ का इशारा करते हुए बोला। 


"बेड के नीचे!!" 


चाचाजी और तारा एक साथ बोले और बोलते ही तारा आँखे बड़ी करके कमु को देखने लगी। 

"हाँ बेड नीचे!मैं तो ऐसा ही हुँ, अब इससे पहले कि आप लोग ये पूछो कि कुण्डी क्यों नहीं लगाई थी तो मैं आपको बता दू...."कमु रुक कर तारा और चाचाजी को देखने लगा, वो दोनों हैरानी से कमु को ही देख रहे थे। 

"कि ये भी मेरी मर्जी!...लेकिन!...आज के बाद जरूर कुंडी लगाकर रखूँगा।" कमु ने बात पूरी की और वापस अपना ध्यान खाने पर लगा दिया। 

तारा के पिताजी ने एक बार फिर मुँह खोला ही था....

"अब क्या खाने भी नहीं दोगे बच्चों को!!" तारा की माँ बीच में ही बोल पड़ी। 

तारा के पिताजी ने इस वक़्त चुप रहना ही ठीक समझा लेकिन कमु उनकी आँखों को देखकर जान गया था कि बात अभी खत्म नहीं हुई। 

*****

डॉक्टरसाहब बार बार उस बटन को देख रहे थे । 

"आखिर ये उसके पास कैसे आ गया?!" डॉक्टर साहब ने मन में सोचा। 

डॉक्टर साहब कुर्सी से उठे अलमारी से एक सफ़ेद कमीज निकाली, एक छोटा डिब्बा भी निकाला और उसमें से सुई धागा निकाल कर, वो बटन लगाने लगे।


****


उधर कुशराण में आज खौफ का माहौल बढ़ गया था। ज्ञान सिंह की मौत से गांव में मातम का सन्नाटा सबके रोंगटे खड़े कर रहा था।वही चंदन सिंह की हरकतों से उसके घर वाले परेशान भी थे और दहशत में भी थे। चन्दन सिंह की आँखों में अजीब सी दहशत थी, चेहरे पर पसीना और रह- रह कर वो सुजान का नाम पुकार रहा था। 


"वो आ गया!मुझे लेने आया है !...नहीं !!छोड़...छोड़... मेरा हाथ!" चंदन बुरी तरह डरा हुआ था साथ ही अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर था, उसके घर वाले बस उसे देख रहे थे क्योंकि चंदन का हाथ पकड़ने वाला उन्हें नजर नहीं आ रहा था। उनकी आँखों में खौफ समय हुआ था, क्या करना है कुछ समझ नहीं आ रहा था। 


"नहीं मैं नहीं आऊंगा!!तू मुझे भी मार देगा!जैसे तूने मेरे भाई को मारा!" चंदन डरते हुए एक कोने में दुबक गया। उसने अपने दोनों हाथ सीने से चिपका लिए, उसके चेहरे पर खौफ ही खौफ था वहीं उसके बेटे और पत्नी इस पुरे दृश्य से हैरान भी थे और डरे हुए भी। 


अपने जेठ का नाम सुनकर चन्दन की पत्नी ने चंदन से पूछा, "आपने देखा था क्या जेठ जी को मरते हुए!!" चन्दन की पत्नी ने हैरानी के साथ पूछा। 


"इसने...इसने ही...तो मारा था!..वो... वो.. चाकू !! खच !...खच !...इसने ही....मैंने देखा....देखा मैंने....!" चंदन डरते हुए रुक रुक कर चाकू मरने वाले अंदाज में बोला। 


"किसने?!किसने मरा था ताऊजी को? !.." चंदन के बेटे सुंदर ने पूछा। 


"अरे..! दिखता नहीं!ये सामने ही तो खड़ा है! वो खड़ा हँस रहा है सुजान....!" चन्दन डरते हुए हाथ का इशारा सामने कि तरफ करके बोला। 


लेकिन उसकी पत्नी और बेटे को एक बार फिर वहाँ कुछ नजर नहीं आया! वो बस आँखे फाड़ फाड़ कर देखने की कोशिश करते रहे!


तभी जोर से हवा चली और भड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा खुल गया। बाहर मेघ पूरी गर्जना के साथ बरस रहे थे साथ ही हवा ने भी तेजी से बढ़ कर सब कुछ अपने में ही समेट लेने की कोशिश शुरू कर दी थी। 


"देखो..!देखो! फिर वही बरसात शुरू हो गई है !लेकिन मैं...मैं नहीं मरूंगा!तुझे मरना होगा!" चंदन ने इधर उधर देखा और उसकी नजर एक चाकू पर पड़ी वो चाकू लेकर बाहर की तरफ दौड़ा लेकिन इससे पहले कि वो बाहर जा पाता सुंदर ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे कस कर पकड़ लिया। 


"छोड़ दे!..?मैं कहता हुँ छोड़ मुझे!!" चंदन चिल्लाते हुए बोला. 


"नहीं पापा!मैं नहीं जाने दूंगा...माँ.. दरवाजा बंद कर जल्दी !" सुंदर ने चंदन को कस के पकड़े हुए ही अपनी माँ से कहा। माँ तुरंत दरवाज़े की तरफ लपकी।


तभी चंदन ने सुंदर के हाथ पर चाकू से वार कर दिया, सुंदर की दर्द में डूबी चीख निकली और उसकी पकड़ा ढीली पड़ गई, चन्दन ने उसे पीछे दीवार की तरफ धक्का दे दिया, सुंदर का सर दीवार से जा टकरा गया । 

माँ ने पलट कर देखा, चन्दन बाहर की तरफ लपका,माँ वापस मुड़ी और फुर्ती से दरवाजा बंद कर दिया! कुण्डी चढ़ाने ही वाली थी कि तभी चन्दन ने उसको खींच कर पीछे किया और एक तरफ को धकेल दिया और दरवाजा खोल कर बाहर निकलते हुए चिल्लाया, "सुजान!तू मुझे अब और नहीं डरा सकता!" बस इस के बाद उसकी पत्नी को कुछ सुनाई नहीं दिया, उसका सर टेबल से टकराने के कारण खून निकल आया था और वो बेहोश होकर वहीं पर गिर पड़ी। 


बारिश का शोर! बिजली की गड़गड़ाहट! तेज तूफानी हवाएं! और इन सबके बीच एक और भयंकर हंसी की गर्जना! किसी भी इंसान के रोंगटे खड़े करने के लिए ये काफ़ी था। पूरा गांव दहशत में था।  

चन्दन सबके घरों के दरवाज़े खटखटा रहा था। दरवाजा खटखटा कर वो बस एक ही बात कहता, "सुजान सिंह बुला रहा है !" और इसके बाद चंदन कभी जोर से हँसता तो कभी दहाड़े मर कर रोने लगता। किसी की हिम्मत न होती कि दरवाजा खोलकर बाहर देख ले। सब खुद में ही सहमे हुए से सिमटे हुए थे।

अचानक चन्दन को सामने एक आकृति दिखाई दी, सर पर सफ़ेद देहाती टोपी, पूरी वेशभूषा देहाती, दुबला पतला शरीर लेकिन चेहरा!!

चेहरे पर नजर पड़ते ही चन्दन चीख पड़ा, इस बरसात में भी आग उगलती हुई आँखे!!भयानक चेहरा!


"सु..सुजान..!" चन्दन के मुँह से निकला.


कुछ देर बाद गांव से बाहर एक झरने के पास बरसाती पोखर में जमा बारिश का पानी अपना अपना रंग बदल रहा था!

अचानक बिजली कड़की! बिजली की रोशनी पोखर पर पड़ी और चमक उठा पोखर का 'लाल पानी'!!


जारी है......



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