भारती भानु

Others

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भारती भानु

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सिनेमा घर की चीखें

सिनेमा घर की चीखें

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उसकी आँख खुली तो चारों तरफ घुप्प काला अंधेरा और घोर सन्नाटा छाया हुआ था। वो हड़बड़ा कर अपनी सीट पर सीधी हो गई। उसने ठीक से याद करने की कोशिश की तो उसे याद आया। वो अपने पति के साथ मूवी देखने आई थी। रात का आखरी शो था इसलिए सिनेमा हॉल में ज्यादा भीड़ नहीं थी। मूवी देखते-देखते उसे नींद आ गई थी "लेकिन इतना अंधेरा क्यों है? क्या मूवी खत्म हो गई? " वो खुद से बोली और थोड़ा घबरा गई। उसने इधर-उधर देखा लेकिन अँधेरे में उसे कुछ नजर नहीं आया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। अगर मूवी खत्म हो गई थी तो आयूष ने उसे जगाया क्यों नहीं? और वो आखिर है कहाँ? निधि उठी और अँधेरे में ही टटोलते हुए चलने लगी।


"कोई है?" निधि ने पुकारा लेकिन कोई होता तब उसका जवाब देता। सिनेमा हॉल आबादी से थोड़ा दूर था और आधी रात से ऊपर का समय था। इस वक़्त भला सिनेमा हॉल के बाहर कोई उसकी आवाज सुनने को क्यों खड़ा रहेगा?


"कोई है? आयूष तुम हो न यहीं?" निधि ने खुद को झूठी उम्मीद देते हुए कहा। लेकिन वहाँ न आयूष था और न ही कोई और। निधि ने अँधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए कई बार आवाज लगाई। मदद के लिए बार-बार किसी को पुकारती रही। जब काफी देर हो गई तो उसकी रुलाई फूट पड़ी। अचानक उसे लगा कि किसी ने उसकी साड़ी का किनारा पकड़ा है। निधि बुरी तरह डर गई। "कौन है?" निधि ने घबराई हुई आवाज में कहा लेकिन कोई कुछ न बोला निधि ने झटके से अपनी साड़ी खींची और दूसरी तरफ दौड़ लगाई। अँधेरे में वो एक कुर्सी से बुरी तरह टकराई और फर्श पर लुढ़क गई।

उसके सिर से खून निकल रहा था उसके पेट में बहुत दर्द हो रहा था। धीरे-धीरे उसकी सांसे मंद होती गई और आखिर में बंद ही हो गई।


अगले दिन सिनेमा हॉल से एक लावारिस लाश मिली। कुछ दिन सिनेमा हॉल बंद रहा। पुलिस ने जैसे ही सिनेमा हॉल से प्रतिबंध हटाया हॉल के मालिक ने तुरंत शो चालू कर दिए। इस घटना के बाद लोगों में इस सिनेमा हॉल के प्रति थोड़ा डर घर कर गया था। लोगों ने अटकले लगाई कि जरूर वहाँ कोई आत्मा है जिसने उस रात एक औरत को मार दिया। कोई कहता कि सिनेमा हॉल कब्रिस्तान के ऊपर बना है इसलिए वहाँ भूतों का वास है। उन्ही भूतों ने उस औरत को मार दिया। जिनके मन में डर था उन्होंने उस हॉल में जाना छोड़ ही दिया था साथ ही वो दूसरे लोगों से भी कहते कि वो एक भूतिया सिनेमा है।

उस दिन के बाद सिनेमा हॉल में कुछ तो अजीब होने लगा था। रात के आखरी शो के दौरान लोग अक्सर शिकायत करते कि कोई आकर उनके पास वाली सीट पर बैठ कर उन्हें घूरता हुआ महसूस होता है। किसी को तो चीखने की आवाज भी सुनाई देती थी। औरतों को कोई अपने कपड़े खिंचता हुआ महसूस होता। नतीजा ये रहा कि धीरे-धीरे रात के शो में लोग कम और कम होते गए। मजबूरन सिनेमा हॉल के मालिक ने रात का शो ही बंद कर दिया था।


*****


परिधि अपने पति के साथ मूवी देखने जा रही थी। आज उसका जन्मदिन था और वो बस यही चाहती थी कि दोनों पति-पत्नि आज के दिन एक रोमांटिक मूवी देखे। थिएटर में टिकट वगैरह सब उसने कर लिया था। इस थिएटर को अभी नया-नया ही शुरू किया गया था। कुछ समय तक थिएटर को ये कहकर बंद कर दिया गया था कि उसमें कुछ सुधार करने है। थिएटर को नया पेंट किया गया था। पुरानी साधारण चेयर की जगह नई आरामदेह चेयर लगाई गई थी। प्रोजेक्टर, पर्दे लाईट वगैरह भी बदले गए थे। कुल मिलाकर इसे नया थिएटर ही कहा जा सकता था। सब कुछ नया ही था। बस एक ही चीज थी जो पुरानी थी और वो थी एक इत्र की खुशबू! जिसकी तरफ किसी ने कभी विशेष ध्यान नहीं दिया था। वो खशबू उस इत्र की थी जो उस रात निधि ने लगाया था।


परिधि खुशी-खुशी अपने पति के साथ पहली लाईन में लगी चेयर पर जा बैठी। अपनी दस महीने की बेटी को परिधि घर पर सुला कर उसकी जिम्मेदारी आया को सौंप आई थी। फ़िल्म अभी शुरू ही हुई थी। थिएटर में इतने कम लोगों को देखकर परिधि थोड़ा हैरान हुई लेकिम फिर उसने सोचा, हो सकता है लोग रात को आना कम पसंद करते हो। परिधि पॉपकॉर्न खाते हुए मूवी देख रही थी करीब मूवी आधी हो चुकी थी। वो मूवी में इतना खोई हुई थी कि उसे पता ही नहीं चला पूरा थिएटर खाली हो चुका है। अचानक से थिएटर की स्क्रीन बंद हो गई। परिधि ने हैरानी से अपने पति की तरफ देखा लेकिन वो वहाँ था ही नहीं। परिधि को अचानक ही घबराहट महसूस होने लगी। उसने अपनी पति को पुकारा। तभी थिएटर में रोशनी हुई और परिधि ने देखा कि उसका पति आयूष ऊपर छत से उल्टा लटका हुआ है। परिधि की चीख निकल गई।


"आयूष! तुम वहाँ... कैसे...!!?" परिधि डर और घबराहट भरे स्वर में बोली तभी उसे नजर आई सफेद साड़ी में उड़ते काले बालों के साथ जमीन से कुछ ऊपर उठी हुई वो अजीब और भयानक आकृति!!


"ओह! तो तेरे कारण ये मुझे छोड़ कर गया था!" एक पतली किरकिराती सी आवाज पूरे थिएटर में गूंज उठी।। परिधि को कुछ समझ नहीं आया।


"निधि!! तुम... ये तुम्हें क्या हो गया?" आयूष बोला।


"क्या हो गया!!? तुम्हें नहीं मालूम। तुम्हें याद नहीं तुम कैसे मुझे यहाँ मरने के लिए छोड़ गए थे।" निधि काफी गुस्से में लग रही थी।


"तुम गलत समझ रही हो निधि, उस रोज मैं वॉशरूम के लिए थिएटर से बाहर निकला। लेकिन जैसे ही मैं बाहर निकला। कुछ लोगों ने मुझे वहाँ से उठा लिया।" आयूष ने कहा.


"मैं नहीं मानती, तुम्हें भला कोई क्यों उठाएगा?" निधि गुस्से भरी आवाज में बोली।


"मैं सच कह रहा हुँ निधि!" आयूष अब भी छत पर लटका हुआ था.


"कौन और क्यों ले गए थे तुम्हें?" निधि ने अविश्वास से कहा.


"परिधि के कुछ लोग मुझे उठाकर ले गए थे। मैंने उस वक़्त परिधि से बहुत कहा था कि मेरी एक पत्नि है प्लीज मुझे जाने दे।" आयूष ने परिधि की तरफ देखा। परिधि अब तक खमोश होकर परिस्थिति को समझने की कोशिश कर रही थी।


"ये सच कह रहा है। उस वक़्त मैं इसे अपना गुनहगार मानती थी मुझे लगता था इसने मुझे धोखा दिया है। बड़ी मुश्किलों के बाद मुझे ये मिला था। आज से एक साल पहले जो भी हुआ था मुझे लगता था आयूष ने जानबूझकर किया था।" परिधि बोली


"क्या किया था इसने?" निधि का स्वर धीमा हो गया था


"दरअसल मेरे जन्मदिन की पार्टी में मैंने आयूष को भी बुलाया था न जाने किसने हमें ड्रग्स खिला दी और हमारे बीच जो नहीं होना चाहिए था वो हो गया। उसके बाद ये ऐसा लापता हुआ कि मुझे लगा इसने जानबूझकर वो सब किया था और अब मुझे छोड़ कर चला गया" परिधि अफ़सोस के साथ बोली


"इसलिए इसने मुझे उस दिन थिएटर के बाहर से उठवा लिया और मुझ से शादी करने के लिए जोर डालने लगी। मैंने बहुत समझाया कि मैं शादीशुदा हुँ लेकिन इसने जिद पकड़ ली कि मैं इससे भी शादी कर लूँ और ये तुम्हें भी अपना लेगी।" आयूष बोला। निधि ने उसे छत से नीचे उतार दिया


"और इसने मेरी बात मानने में पूरे सात महीने लगा दिए, वो भी तब ये मेरी बात माना जब इसे पता चला कि हमारी उस रात की गलती को भगवान ने एक लड़की बना कर धरती पर भेजा है।" परिधि ने आयूष की तरफ देखा


"किसी तरह मैंने परिधि को मनाया और उसके बाद मैं तुरंत यहाँ चला आया। लेकिन यहाँ तुम्हारा कुछ अता-पता नहीं था मैंने तुम्हें हर जगह ढूंढा फिर मुझे लगा शायद तुम अपने चाचा के घर चली गई हो। मैं इसी उम्मीद में जी रहा था कि तुम एक न एक दिन जरूर लौट आओगी।" आयूष ने निधि को देखकर दुखी स्वर में कहा


"तो तुम्हारे पेट में बच्चा था इसलिए तुमने घर छोड़ दिया था?" निधि परिधि से बोली


"हाँ! दीदी लेकिन अगर मुझे पता होता कि आपकी शादी आयूष से हुई है तो मैं कभी इसको ढूढ़ने की कोशिश भी नहीं करती।" परिधि आँखों में आँसू भरकर बोली। अब हैरान होने की बारी आयूष की थी।


"तो ये तुम्हारी बहन है?" आयूष ने सिर पकड़ते हुए निधि से पूछा निधि ने सिर हिला दिया।


"हाँ मेरी बहन जिसने एक दिन बस यूँ ही घर छोड़ दिया किसी को बताए बगैर," निधि के भयानक चेहरे पर भी दर्द था.


"और आप! आपने भी तो कभी अपने पति से मिलवाया ही नहीं," परिधि दर्द और शिकायत के साथ बोली।


"कैसे मिलवाती? मम्मी -पापा तो मेरा नाम तक नहीं सुनना चाहते थे... मैं लगभग रोज फोन करती लेकिन हर बार गुस्से से फोन पटक दिया जाता। फिर जब मैं प्रेग्नेंट हुई तब मेरी बात मम्मी से हुई, मम्मी का दिल पसीज गया और वो चोरी छिपे मुझसे बात करने लगी। मैं पापा को मनाने की कोशिश लगातार कर रही थी कि तभी तुम गायब हो गई और मेरे साथ ये सब हो गया!!!?" निधि सिसक पड़ी. 


"आपके साथ क्या हुआ था दी?आयूष ने आपको बहुत ढूंढा लेकिन आप तो जैसे गायब ही हो गई थी।" परिधि की आँखों में भी बेहद तकलीफ थी अपनी दी से इस तरह मिलकर।


"उस दिन मुझे मूवी देखते हुए ही नींद आ गई थी। मूवी खत्म होने के बाद सभी लोग चले गए और मैं सोती रही। न जाने कब मेरी नींद खुली और मेरे साथ वो घटना घट गई। मेरे पास न तो फोन था और न ही पर्स वगैरह था। मेरी पहचान न हो सकी और मैं लावारिस समझ ली गई।" निधि ने उस रात घटी एक-एक घटना कह सुनाई। परिधि और आयूष की आँखों से आँसू बह निकले।


"लेकिन जाते -जाते मैंने हमारे बच्चे को जन्म दिया था। " निधि बोली। अब वो उतनी भयानक नहीं लग रही थी।


"हमारा बच्चा!" आयूष की आँखों में चमक उभरी।


"हाँ इस वक़्त वो सिटी अनाथालय में है। तुम उसे घर लेकर जाओगे न?" निधि ने पूछा


परिधि और आयूष ने तुरंत सिर हिला दिया।


"अपनी बच्ची के साथ-साथ मेरे पति और मेरे बच्चे का भी ख्याल रखना।" निधि ने कहा और धीरे- धीरे वो गायब हो गई। परिधि और आयूष एक दूसरे का हाथ थामे सुबक रहे थे। उधर स्क्रीन चालू हो गई थी और उसमें हैप्पी एंडिंग दिखाई जा रही थी।




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