भारती भानु

Fantasy

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भारती भानु

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क्या परियां होती है

क्या परियां होती है

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परी करवट बदलती फिर बैठती और वापस लेट जाती। आज नींद का आना उसे नामुमकिन लग रहा था। रह रह कर उसे अपने पापा की याद सता रही थी, यादों के झूले पर झूलते हुए पापा के साथ बिताये हुए खुशनुमा पल उसके चेहरे पर मुस्कान ले आए। आँखों में आंसू और होंठों पर मुस्कान लिए न जाने उसे कब नींद आ गई।

*****

दूध से धुली हुई, चांदनी में नहाई हुई, मोतियों की चमक समेटे हुए जैसे दुनिया की सारी सच्चाई खुद में समेट ली हो और निखर गई हो। ऐसी सफेद संगमरमर सी मूर्ति को अंकुर धकेलते हुए घर से बाहर ले जा रहा था।

पूरी तरह सफ़ेद मूर्ति के सिर के ठीक बीच में एक लाल लकीर थी। ऐसा लगता था जैसे मूर्ति की मांग, सुर्ख लाल गुलाब की पंखुड़ियों को पीस कर उसका रंग निचोड़ कर भर दी गई हों।

"अरे! इस मूर्ति को आप कहाँ लेकर जा रहे है?" तभी अंकुर की पत्नी नलिनी बोली।

"घर से बाहर" अंकुर ने जवाब दिया।

"लेकिन क्यों? बाहर बारिश हो रही है!" नलिनी ने हैरान परेशान हो कर कहा

"नलिनी ये मूर्ति है! बारिश में रहने से ये बीमार नहीं होगी।" अंकुर मूर्ति को घर की चौखट तक ले आया था।

"लेकिन ये तो पापाजी की निशानी है। उन्हें ये मूर्ति अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी थी। मैंने देखा था उन्हें, वो कितने प्यार से इस मूर्ति को निहारते थे , इसकी बहुत केयर करते थे पापाजी" नलिनी अंकुर से बोली।

"मैं भी पापा की इच्छा ही पूरी कर रहा हूँ" अंकुर ने बताया

"पापा की इच्छा!" नलिनी हैरानी के साथ बोली।

"हाँ! पापा ने मुझसे वादा लिया था कि जब भी वो इस संसार से विदा ले तब इस मूर्ति को भी बाहर रख दिया जाए। मैंने उनसे इसका कारण जानना चाहा लेकिन ये सोच कर कि कहीं पापा को ये न लगे कि मुझे उनकी मौत का ही इंतजार है। मैंने पापा से इसका कारण नहीं पूछा" अंकुर ने नलिनी को पूरी बात बता दी

"अच्छा! फिर ठीक है, पापा की इच्छा थी तो इसे बाहर ही रख दो" नलिनी बोली

अंकुर ने मूर्ति बाहर रख दी और कमरे में वापस आ गया। कुछ देर पति पत्नी पापा के बारे में बात करते रहे। थोड़ी देर बाद दोनों सो गए।

बाहर जोरदार बारिश होने लगी। बिजली चमकी और उसकी रोशनी में मूर्ति की मांग से लाल रंग बहता हुआ सा प्रतीत हुआ।

सुबह उठते ही अंकुर घर के बाहर लॉन में गया और वापस आया तो चेहरे पर परेशानी के भाव थे। इधर नलिनी भी घबराई हुई सी हाथ में चाय का कप लिए उसके पास आईं।

"क्या हुआ?तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?" अंकुर ने नलिनी को परेशान देखकर पूछा

"वो...परी अपने कमरे में नहीं है।" नलिनी ने घबराए हुए स्वर में बताया।

"छत पर होगी!" अंकुर बोला

"सही कहा आपने, मैं तो घबरा ही गई थी। पापाजी के साथ ज्यादातर छत पर ही तो रहती थी परी! वैसे आप कुछ परेशान से लग रहे है" नलिनी ने अंकुर को परेशान देखकर पूछा।

"हाँ ! दरअसल कल जो मूर्ति मैंने बाहर रखी थी, वो आज लॉन में कहीं भी नहीं है।" अंकुर ने बताया

"ऐसा कैसे हो सकता है?!" नलिनी हैरानी से बोली

"मैं भी यही सोच रहा हूँ। कहीं कोई चोर चुरा कर न ले गया हो। मैं तो उस मूर्ति को पापा की याद में हमेशा सहेजकर रखना चाहता था।" अंकुर की आँखों में मूर्ति खोने का डर साफ दिखाई दे रहा था।

*****

परी नींद में थी जब उसके कानों में एक मधुर ध्वनि ने रस घोल दिया। नींद में ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फ़ैल गई। उसने धीरे धीरे अपनी आँखें खोली, इधर उधर देखकर फिर आँखें बंद कर ली लेकिन अगले ही पल उसने चौंक कर आँखें खोल ली।

परी एकदम उछल पड़ी। उसने बहुत हैरानी के साथ अपने साथ बैठी औरत की तरफ देखा।

मानो स्वर्ग की सबसे खूबसूरत अप्सरा धरती पर उतर आई हो। परी कुछ पल के लिए अपनी पलकें झपकाना भी भूल गई और शायद परी उसे यूहीं अपलक निहारती रहती कि तभी उसका ध्यान सामने, बांसुरी बजाते उस व्यक्ति पर पड़ी जिसकी इस वक़्त पीठ ही दिखाई दे रही थी ।इसके बाद परी का ध्यान पूरी जगह पर गया और परी अपनी जगह से उठ चारों तरफ देखने लगी। 

"क्या ये सपना है?!" परी ने खुद से पूछा। उसने खुद को चिकोटी काटी

"आह!.. ये सच कैसे हो सकता है?!!" परी के चेहरे पर आश्चर्य की सैंकड़ों लकीरें नजर आने लगी। उसके एक तरफ देवी का एक छोटा सा मन्दिर था। वो किसी ऊंची पहाड़ी पर थी। रात का वक़्त था, लेकिन इस जगह पर उसे दिन के उजाले से ज्यादा चमकदार रोशनी दिख रही थी। उसकी समझ से परे था कि आखिर ये सच कैसे हो सकता है!! एक बार फिर परी का ध्यान बांसुरी बजाते हुए उस व्यक्ति पर गया ।न जाने क्यों परी को वो पीछे से देखने पर भी कुछ जाना-पहचाना सा लगा। परी धीरे-धीरे उसके करीब गई और पास जाकर आहिस्ता आहिस्ता उसके कंधे पर हाथ रख दिया। उसने बांसुरी बजाना बंद कर दिया, परी को अपने दिल में हूक सी उठती महसूस हुई और जैसे ही बांसुरी वाले ने पलट कर परी की तरफ देखा। परी के लिए यकीन करना और भी नामुमकिन हो गया कि ये सब सच है! बांसुरी वाला चुस्त-दुरुस्त, और सुंदर सा दिखने वाला एक नवयुवक था।

"आप!! नहीं!! ये सब सच नहीं है!!ये सब छलावा है!!ये सच हो ही नहीं सकता!!" परी बड़-बड़ करती हुई बोली

बांसुरी वाला उसके करीब आया और अपनी बाहें फैला दी। परी ने उसे देखा और फिर उससे लिपट गई। वो एक मासूम बच्चे की तरह बिलखने लगी।उसके सीने में दफन सारा आवेग निकलने को न जाने कब से बेचैन था।

"मैं सपना देख रही हूँ न!" परी ने उससे अलग होते हुए कहा

"नहीं! ये सब तुम जो भी देख रही हो सब सच है।" उसने प्यार से परी को देखते हुए कहा

"लेकिन कैसे?! ये सब सच कैसे हो सकता है? आप तो... और अब आप... " परी के शब्द अटक से गए थे। 

"सब बताता हूँ , तुम यहाँ बैठो मेरे पास!" बांसुरी वाले ने कहा अब तक वो अप्सरा सी नवयुवती भी पास आ चुकी थी।

"ये कौन है?" परी ने बांसुरी वाले से पूछा

"सब बताता हूँ " उसने बैठते हुए कहा परी भी बैठ गई और बांसुरी वाले के पास ही वो भी बैठ गई।

"तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ , जिससे तुम्हें तुम्हारे सभी सवालों के जवाब मिल जायेंगे।" बांसुरी वाले ने परी की तरफ देखते हुए कहा। परी उसकी गोद में सिर रखकर लेट गई।

"सालों पहले यहाँ इसी जगह पर एक लड़का कुछ तलाश करने आया था या यूँ कहो किसी बात की प्रमाणिकता के लिए आया था।"

"कौन था वो? और इस जगह का नाम क्या है?" परी ने सवाल किया

"उसका नाम रजत था"

"ये तो... "

"कहानी पूरी सुन लो फिर बोलना"

"ओके!"

"रजत यहाँ आया था परियों की तलाश में उनके होने या न होने का सच जानने। रजत उस रात यहीं रुक गया और रात भर बांसुरी बजाता रहा लेकिन परियां नहीं आई। रजत बहुत थक चुका था। वो यूं ही एक कोने में बेसुध होकर सो गया। जब जागा तो उसके सामने एक बेहद सुंदर लड़की खड़ी थी। " रजत के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई

"वो पक्का मम्मा ही होगी! लेकिन आपकी और मम्मा की लव स्टोरी तो कुछ और थी न!" परी ने हैरानी से पूछा

"तुम्हारी मम्मा और मेरी लव स्टोरी यही है।" वो बांसुरी वाला बोला

"तो आप और मम्मा जो स्टोरी बताते थे, वो झूठी थी क्या?" परी ने पूछा

"नहीं!"

"आप क्या कह रहे है? मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा" परी झुंझला कर बोली।

"जिसकी तुम बात कर रही हो असल में वो तुम्हारी मम्मा है ही नहीं!" बांसुरी वाले ने बताया

"ऐसा कैसे हो सकता?" परी को बड़ी हैरानी हुई

"सुनो तो सही.... वो सुंदर लड़की तुम्हारी माँ ही थी असली माँ!!" बांसुरी वाला अपने पास बैठी नवयुवती की तरफ देखकर बोला।

"आप वापस जवान कैसे हो गए? और ये मेरी मम्मा कैसे हो सकती है?! मैं और अंकुर जुड़वा है, उससे पांच मिनट ही बड़ी हूँ मैं। मैंने सारी रिपोर्ट खुद देखी है।" परी को अब उस नवयुवती से चिढ़ होने लगी ।

"क्योंकि तुम कोई मामूली लड़की नहीं एक परी हो।" बांसुरी वाला यानी परी के पापा बोले।

"वो तो मुझे पता है! आपकी परी हूँ मैं!"

"सिर्फ मेरी नहीं तुम सच में परी हो! एक परी की बेटी!" पापा बोले

"अब तो आप मुझे पूरी कहानी सुना ही दीजिए।" परी ने अपने हथियार डालते हुए कहा

"सुनो... उस दिन जब मैं बांसुरी बजा रहा था तब सारी परियां मेरे आस-पास ही थी और मेरी बांसुरी की धुन पर थिरक भी रही थी। लेकिन मेरी इंसानी आँखें उन्हें देख न सकी। जब मैं थक कर सो गया तब तक परियों का देवी पूजा का समय हो चुका था। बाकि परियां तो पूजा के बाद वापस चली गई लेकिन एक परी वहीं पर रुक कर मुझे निहारने लगी उसे मेरी बांसुरी के साथ साथ मैं भी पसंद आया था। जब मेरी आँखें खुली तब मेरे सामने एक साधारण सी लड़की बनकर खड़ी थी और अपना नाम बताया "सुधा" जब मैंने पूछा वो यहाँ इस वीरान जगह पर इस वक़्त क्या कर रही है? तो उसने बताया वही जो मैं कर रहा हूँ ! परी की तलाश! 

उसने परी की तलाश में मुझे फिर आने को कहा और ये भी कहा कि वो भी अपने घर वालों के सोने के बाद आएगी। मुझे तो मेरी परी मिल चुकी थी लेकिन उसे मिलने के लिए भी मुझे दूसरी परियों की तलाश के बहाने आना पड़ा और वो..वो तो खुद ही परी थी! इस तरह हमारी मुलाकातें बढ़ती गई और आखिर एक दिन मैंने उससे प्यार का इजहार भी कर दिया। हमारा प्यार पवित्र था लेकिन न चाहकर भी हम गलती कर बैठे और तुम ने आकार ले लिया।" पापा कुछ देर के लिए चुप हो गए

"परी लोक में इस बात को लेकर मुझे खूब कोसा गया, एक इंसान से प्यार कर बैठी थी और तुम्हें भी अपने गर्भ में जगह दे चुकी थी। मेरे सामने रास्ते रखे गए पहला तुम्हें त्यागना,  दूसरा तुम्हारे पापा को हमेशा के लिए परी लोक का गुलाम बनाकर वहाँ ले जाना और मुझे ये दोनों ही मंजूर नहीं थे।" इस बार नवयुवती यानी सुधा ने कहानी आगे बढ़ाई परी हैरानी से दोनों को देखती रही।

"फिर तुम्हारी माँ यानि सुधा को सजा सुना दी गई एक मूर्ति में बदलने की!" पापा ने बताया

"मूर्ति!!!" परी के मुँह से निकला

"हाँ हमारे घर में जो मूर्ति थी न ! वो सुधा ही थी।" पापा ने परी की हैरानी दूर की

"थी!! मतलब अब वो मूर्ति नहीं है? " परी ने पूछा

"नहीं! अब मैं सजा से मुक्त हो चुकी हूँ .... मेरी सजा थी मूर्ति बनकर तब तक रहना जब तक मेरे माथे से वो लाल रंग निकल न जाए।" सुधा ने बताया

"और मैं नादान इतना भी नहीं समझ पाया कि वो रंग मेरे जीते जी नहीं हटेगा। मैं हर पल यही सोचता कि काश वो रंग हट जाए और मेरी सुधा को मैं उसके असली रूप में देख सकूं !" रजत दुखी स्वर में बोले

"फिर क्या हुआ?" परी ने पूछा

"फिर क्या मैंने सजा के वक़्त के लिए थोड़ी सी मोहलत ली और तुम्हारे पापा से विनती की कि वो किसी सामान्य लड़की से शादी कर ले ताकि मैं तुम्हें उसके गर्भ में रख सकूं वरना तुम मेरे गर्भ में इतने सालों तक पत्थर बनकर ही रह जाती। पहले तो तुम्हारे पापा किसी और से शादी को तैयार ही नहीं हुए लेकिन तुम्हारे बारे में सोच कर वो मान गए। मेरे मूर्ति बनने के बाद तुम्हारे पापा ने एक अनाथ लड़की यानि तुम्हारी मम्मा चांदनी से शादी कर ली। तुम्हारे पापा को मैं पहले ही सबकुछ समझा चुकी थी, वैसे मैं मूर्ति थी लेकिन सब देख सुन सकती थी। अपनी कुछ शक्तियों का प्रयोग भी कर सकती थी और साथ ही रात के वक़्त मुझे बोलने की अनुमति भी थी। तुम्हें चांदनी के गर्भ में सौंप कर मुझे उस कमरे से बाहर रहना पड़ा क्योंकि एक शादीशुदा जोड़े के कमरे में रहना हमारे नियम के विरुद्ध था। तब तक चांदनी के गर्भ में अंकुर भी आ चुका था, इसलिए तुम दोनों जुड़वा पैदा हुए।" सुधा ने परी की तरफ देखा

"मतलब आप हर पल मुझे देखती थी" परी बोली तो सुधा ने आँखों में ही हामी भरी

"इसलिए मुझे लगता था कि मुझे कोई देख रहा है।... लेकिन पापा जवान कैसे हो गए? " परी के मन में अब भी कुछ सवाल थे।

"क्योंकि अब तुम्हारे पापा इंसानी जीवन पूरा कर चुके और मेरे साथ शादी करके हमेशा के लिए परी लोक के हो गए है, यानि वो भी हम में से एक ही है।" सुधा ने खुश होकर बताया

"ओ.. तो ये बात है।" परी शरारत भरे लहजे में बोली। 

"बेटी अब तुम भी परी लोक चलो और हमारे साथ रहो।" सुधा बोली

"मैं!!कैसे? " परी को ये सुनकर और भी हैरानी हुई

"तुम एक परी का अंश हो, कुछ शक्तियां तुम्हें जन्म के साथ ही मिल चुकी है कुछ शक्तियों को हासिल करना होगा और कुछ सीखनी होंगी जो शक्तियां तुम्हारे पास मौजूद है उनका भी इस्तेमाल तुम्हें सीखना होगा!" सुधा ने बताया

"लेकिन! मैं धरती पर ही रहना चाहती हूँ " परी बोली

"ये तुम क्या कह रही हो?" सुधा हैरानी से बोली

"मैंने पहले ही कहा था परी हमारे साथ नहीं आएगी" इस बार रजत ने कहा

"परी मैं तुम्हें हमारे साथ परी लोक में देखना चाहती हूँ । तुम्हारे लिए धरती सही नहीं है। लोगों को तुम्हारी शक्ति या तुम्हारे परी होने का पता भी चला तो वो न जाने तुम्हारे साथ क्या करेंगे।" सुधा परेशान होकर बोली

"माँ मैं समझ सकती हूँ लेकिन आप चिंता मत कीजिए मैं अपनी शक्ति का इस्तेमाल बहुत जरूरी होने पर किसी की भलाई के लिए ही करूंगी वो भी किसी की नजरों में आए बिना और रही आप के साथ रहने की बात तो जहाँ तक मुझे समझ आया है, मेरा इंसानी शरीर खत्म होने के बाद मुझे परी लोक आना ही होगा है न!?" परी ने पूछा।

"हाँ! परियों का जीवन इंसानी जीवन से बहुत बड़ा होता है।" सुधा ने बताया।

"तो प्लीज़ तब तक मुझे मेरे भाई और दोस्तों के साथ रहकर इंसान की तरह जीने दीजिए न!" परी ने बड़ी ही मासूम सूरत बनाकर कहा ।

"ठीक है!" सुधा थोड़ा उदास होकर बोली

"आप उदास क्यों है जब भी आप का मन होगा मुझे बुला लेना यहाँ। वैसे ये जगह कौन सी है? लगती धरती की तरह है दिखती परियों के देश की तरह है।" परी ने इधर उधर देखते हुए पूछा

"ये धरती पर ही, यहीं तो परियां आसमान से उतर कर हर ले जाती है इंसानों को!" रजत मुस्करा कर बोला

"कहीं ये वही खैट पर्वत तो नहीं जो उत्तराखंड में है, जिसकी कहानियाँ आप बचपन में सुनाया करते थे? " परी ने अपने पापा से पूछा

"हाँ ये वही जगह है।" रजत ने पुष्टि कर दी।

"तुम अब जाओ !तुम्हारा यही फैसला है तो तुम्हें जाना होगा, सुबह हो चुकी है और थोड़ी ही देर में नलिनी तुम्हें ढूंढने लगेगी।" सुधा ने परी को गले लगाते हुए कहा परी ने भी सुधा को कस कर गले से लगा लिया।

*****

"ले तू यहाँ बैठी है और मैंने तुझे सारे घर में तलाश कर लिया। "नलिनी परी के पास आते हुए बोली

"वो मैं बस.... "

"चल रहने दे, चाय पी ले।" नलिनी कप देते हुए बोली

"थैंक्यू" परी कप लेते हुए बोली

"अच्छा तूने वो मूर्ति कहीं देखी क्या? कल रात अंकुर ने बाहर रखी थी लेकिन अब नजर ही नहीं आ रही। " नलिनी झूले पर बैठते हुए बोली।

"कल रात बारिश थी न!" परी को समझ नहीं आया क्या बोले

"तो!... "

"तो वो गल गई होगी!" परी तुरन्त बोली लेकिन उसे खुद समझ नहीं आया कि उसने ये क्या कहा

"गल गई! मूर्ति!!" नलिनी हैरानी से परी को देखने लगी

"वो नमक की होगी न!" परी ने तुरन्त बात सम्भाल ली।

"तू कहती है तो होगी, तुझे इन सब की समझ ज्यादा है। मैं अंकुर को बताती हूँ वो कब से परेशान है मूर्ति को लेकर" नलिनी उठते हुए बोली

"सही वक़्त पर याद आ गया!" परी ने लंबी सांस ली और खुद के झूठ पर मुस्करा दी



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