भारती भानु

Inspirational Others

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भारती भानु

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सौभाग्य और डर

सौभाग्य और डर

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मातम के बाद घर में कोहराम मचा हुआ है। पिताजी की अस्थियां नहीं मिल रही। पिताजी जो अपनी आख़री सांस भारत में लेना चाहते थे और आखरी सांस तक भारत भारत जपते रहे। उनका बेटा उनकी अस्थियों को अमेरिका की अमेजन नदी में विसर्जित करके अपने कर्तव्य से मुक्ति पाना चाहता था।

नदी तो नदी होती है पानी भी पानी ही होता है। कई भारतीय लोग तो ऐसे भी है जिन्होंने अमेजन का नाम भी नहीं सुना होगा। अगर कभी वो भारत जायेगा तो बड़े शान से अपने रिश्तेदारों को बताएगा कि उसने अपने पिताजी की अस्थियां अमेरिका की अमेजन नदी में विसर्जित की है। लोग तरस जाते है विदेश घूमने को लेकिन उसके पिताजी तो मरे भी तो अमेरिका में! और अब उनकी अस्थियों को भी अमेजन नदी में विसर्जित होने का सौभाग्य मिला है।


अंकुर मन में सारी बातें सोचकर खुश हो रहा था लेकिन पिताजी की अस्थियां न जाने उसकी पत्नि रेवा ने कहाँ रख दी थी।


"भुलक्कड़ कहीं की, मुझे और भी दस काम निपटाने है," अंकुर झल्लाते हुए बोला। उसके 'दस काम ' में देरी हो रही थी इस 'ग्यारहवें काम' यानि पिताजी की अस्थि न मिलने के कारण और उन्हें विसर्जित करना शायद उसका बारहवाँ या तेरहवाँ काम हो।


*****


गीतिका बालकनी में थी कुछ गमले, मिट्टी यहाँ वहाँ बिखरी हुई थी। मैंने गमलों में मिट्टी भरी तो थी! शायद..। एक गमले में उसने फिर से मिट्टी भरकर पौधा लगाया और एक ख़ुशी भरी मुस्कान के साथ उसे निहारने लगी।


भवरें ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुवंर

भवरें तू न कहना भूल फूल तेरा हो गया इधर उधर....


कहीं से हिंदी गाने की ध्वनि उभरी। गीतिका को लगा जैसे सैंकड़ो गुलाब का रस मीठे शहद के साथ घोल कर उसके कानो में बड़े प्रेम से उड़ेला जा रहा हो। गीतिका भी साथ में गुनगुनाने लगी और दोगुनी ख़ुशी के साथ बाकि के गमलों में मिट्टी भर कर पौधे लगाने लगी।


शाम के वक़्त गीतिका बालकनी में खड़ी शिशिर का इंतजार कर रही थी । तभी एक बार फिर उसके कानो में पुराने हिंदी गाने की मधुर आवाज सुनाई दी।


उई माँ उई माँ ये क्या हो गया उनकी गली में दिल खो गया

बिंदिया हो तो ढूंढ भी लूँ, दिल न ढूंढा जाए......


गीतिका के चेहरे पर ख़ुशी झलक उठी और एक बार फिर वो भी उस सुर के साथ गुनगुनाने लगी। तभी उसके पड़ोस की बालकनी से उम्र में उससे दो चार साल बड़ी स्त्री ने झाँक कर देखा।


"आपको पुराने हिंदी गाने पसंद है?" उस ने गीतिका से पूछा


"हं.... हाँ!" गीतिका ने थोड़ा सोच कर जवाब दिया


"आप ने कल ही शिफ्ट किया है न?" उसने फिर पूछा


"हाँ!.. मेरा नाम गीतिका है और आप?" गीतिका ने बातचीत आगे बढ़ाते हुए पूछा


"मेरा नाम कोमल है, हम लोग भी अभी कुछ दिन पहले ही शिफ्ट हुए है।" कोमल थोड़ा उत्साहित होते हुए बोली


"अच्छा!.. परदेस में अपने देश के लोग मिल जाए तो बहुत अच्छा लगता है, " गीतिका ने मुस्करा कर कहा


"बिल्कुल, इससे पहले जहाँ हम रहते थे वहाँ कोई भी भारतीय नहीं था," कोमल ने बताया


"हमारा भी कुछ ऐसा ही था, चलो यहाँ शायद दो चार परिवार भारतीय है तो घर जैसा लगेगा," गीतिका गमले की मिट्टी ठीक करती हुई बोली


"यहाँ तो ज्यादातर सब अपने देश से ही है जी," कोमल उत्साहित होकर बोली


"अच्छा, शायद इसलिए शिशिर ने यहाँ शिफ्ट कर लिया। वहाँ सारे अंग्रेज ही थे बहुत बेकार लगता था, यहाँ आकर लगता है अपनों के बीच आ गई हुँ," गीतिका ने हाथ झाड़कर एक गहरी सांस ली जैसे अपनेपन की खुशबू अपने भीतर समेट रही हो


"सही कहा, कोई भी बात हो मुझे बताना। मुझे अपनी दीदी समझो। "


"दीदी.." गीतिका धीमे सुर में खुद से बोली और मुस्करा दी


"वैसे एक बात पूछनी थी," कोमल का अंदाज थोड़ा बदला


"पूछिए, एक नहीं दो पूछिए," गीतिका बोली 


"आपको डर नहीं लगा?!" कोमल थोड़ा गंभीर होकर बोली


"डर!.." गीतिका ने हैरान होकर कोमल की तरफ देखा। लेकिन कोमल के कुछ कहने से पहले ही सत्तरह - अठ्ठारह साल की एक मॉर्डन लड़की आई और कोमल को लगभग अंदर की तरफ धकेलते हुए बोली, "भाभी भैया आ गए है," कोमल ये सुनकर तुरंत ही चली गई। उस लड़की ने गीतिका पर एक अजीब नजर डाली और वहाँ से चली गई।

गीतिका बालकनी में खड़ी काफ़ी देर उस तरफ असमंसज के साथ देखती रही और फिर अंदर चली गई।


*****

"नई जगह कैसी लगी?" शिशिर अंदर हुए बोला


"अ..अच्छी है!" गीतिका सोचने का अभिनय करते हुए बोली


"इतना सोच कर... चलो तुम्हें पसंद तो आई," शिशिर सोफे पर बैठ गया


"मैं आपके लिए चाय लाती हुँ," गीतिका किचन में चली गई तो शिशिर बालकनी की तरफ गया। कुछ गमलों में आज ही नए पौधे लगाए गए थे। गमले में लगे पौधों को देखकर शिशिर के चेहरे पर मुस्कान आ गई। शिशिर दूसरी तरफ घूमा, बालकनी के दूसरी तरफ एक झूला था। 

झूले को नकली, रंग बिरंगी बहुत से फूलों से सजाया गया था और कागज से बनी ढेरों रंगीन तितलियों को भी झूले पर लगाया गया था।


"गर्म गर्म चाय आ गई!" गीतिका एक ट्रे में चाय लाते हुए बोली 


"तुमने तो आते ही बालकनी की काया पलट दी," शिशिर झूले पर बैठते हुए बोला


"हूं.. सो तो है," गीतिका भी झूले पर बैठ गई, "शिशिर यहाँ हमारे देश के बहुत से लोग रहते है, बगल वाले फ्लैट में न, कोमल दीदी रहती और इस तरफ वाले फ्लैट में शायद कोई बुजुर्ग रहते है, सामने से बच्चों की आवाजे आ रही थी जो हिंदी में बातें कर रहे थे। शाम के वक़्त दो आंटीया बातें करते हुए बुनाई कर रही थी। अपना सा लगता है यहाँ!!," गीतिका एक सांस में सब कह गई शिशिर उसका चेहरा देख रहा था आज कितने दिनों बाद गीतिका का चेहरा खिला हुआ था। जोश जोश में गीतिका को याद ही नहीं था कि बालकनी में अचानक झूला कहाँ से आया?


"शादी के बाद मैं तुम्हें सीधे अमेरिका ले आया, उसके बाद तुम एक बार भी घर नहीं जा पाई। मैं जल्द ही छुट्टी लेने की कोशिश करूंगा। तुम अपने घर को बहुत याद करती हो न?" अंकुर गीतिका के सिर को सहलाते हुए बोला जो कि इस वक़्त उसके कंधे पर था।


"घर से ज्यादा मैं अपने देश को याद करती हुँ, उसकी खुशबू को याद करती हुँ..... लेकिन तुम चिंता मत करो। यहाँ आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। यहाँ सब भारतीय है तो अपने देश सा महसूस होता है। हिंदी गाने, लोगों की बातें, हँसी के ठहाके, भारतीय खाने की खुशबू, सब कुछ अच्छा लगता है। वहाँ तो बस अंग्रेजो की गिटर पिटर ही सुनाई देती थी और इंग्लिश गाने वो भी कभी-कभी।" गीतिका का सिर अब भी शिशिर के कंधे पर था


"तुम्हारी चाय.. ठंडी हो गई," शिशिर की नजर अचानक गीतिका के कप पर पड़ी


"कोई बात नहीं, वैसे भी मेरा मन नहीं था।" गीतिका अपना सिर शिशिर के कंधे से हटाते हुए बोली


"मन नहीं था! क्या बात है तुम्हारी तबियत तो ठीक है?" शिशिर गीतिका के माथे और गले पर हाथ लगाते हुए बोला


"हाँ बाबा! मैं बिल्कुल ठीक हुँ " गीतिका शिशिर का हाथ पकड़ते हुए बोली


"फिर चाय पीने का मन क्यों नहीं था?.. और ये मन कहाँ से बीच में आ गया? चाय से तो तुम्हारा दिल का रिश्ता है न?" शिशिर गीतिका को छेड़ते हुए बोला


"शिशिर...." गीतिका बनावटी नाराजगी में बोली


"ओके बाबा मजाक नहीं बनाऊंगा, लेकिन तुम चाय के लिए मना करो तो हैरानी तो होगी न?" शिशिर बोला


"मैं खाना बनाती हुँ," गीतिका चाय के कप उठाकर बोली


शिशिर मुस्करा कर उसे देखता रहा। उसे पता था गीतिका उसकी बातों से बचने के लिए खाना बनाने का बहाना करके वहाँ से चली गई। लेकिन हैरानी तो उसे सच में थी भला गीतिका चाय को मना कैसे कर सकती थी?

गीतिका चाय के बर्तन साफ करते हुए सोचने लगी, "शिशिर ने गलत तो नहीं कहा..लेकिन मैंने तो चाय पी ली थी फिर कप में.. शायद नहीं पी थी " 


गीतिका खाना बनाने में व्यस्त हो गई। आज उसने शिशिर की पसंद का खाना बनाया था। भरवां भिंडी, छिलके वाली मसूर की दाल, आटे का गुड़ वाला हलवा और गर्म गर्म रोटियां।


"क्या बात है? आज तो पतिदेव की बड़ी खुशामद हो रही है।" शिशिर खाना देख कर आँखें बंद करके खुशबू लेते हुए बोला। जवाब में गीतिका बस मुस्करा दी।


गीतिका और शिशिर चुहलबाजी करते हुए खाने लगे। गीतिका को खुश देख कर शिशिर खुश था।


"खाना कैसा लगा.. पापा को?" गीतिका मुस्कराते हुए नजरें झुका कर बोली


"बहुत बहुत.... क्या कहाँ तुमने? पापा!!" शिशिर गीतिका के करीब आते हुए बोला।

गीतिका शर्म से अपनी नजरें झुकाए थी।

"क्या सच में?!" शिशिर ने गीतिका का चेहरा ऊपर करते हुए पूछा। गीतिका ने सिर हामी में हिला दिया और मुस्करा दी।


"तुमने तो मुझे... मुझे खुशियों का पूरा खजाना दे दिया!!" शिशिर ने गीतिका को बाहों में उठाते हुए कहा।


झिलमिल सितारों का आँगन होगा.. रिमझिम बरसता सावन होगा...


तभी कहीं से पुराने गीत की धुन उभरने लगी। गीतिका और शिशिर एक दूसरे की बाहों में बांहे डाले झूमने लगे।


*****

गीतिका ने हल्के पीले रंग की साड़ी पहनी है, माथे पर छोटी सी बिंदी लगाई है। गीले बालों पर तौलिया लपेटे हुए ही वह किचन की तरफ गई और गैस पर चाय चढ़ा दी। चाय बनाते बनाते ही वह कोई गुनगुनाने लगी।


ए मेरे प्यारे वतन.. ए मेरी बिछड़े चमन.. तुझ पे दिल कुर्बान...

तेरे दामन से जो आए... उन हवाओं को सलाम.....


देशप्रेम से ओत प्रोत इस गीत के बोल कहीं से उभरे। जिन्हें सुनकर गीतिका कुछ देर के लिए किसी सोच में गुम हो गई

चाय तैयार कर के उसने दो कप में चाय डाली और शिशिर के पास आई। शिशिर सो रहा था लेकिन उसके चेहरे पर एक मंद मुस्कान थी।


"शिशिर! चलो उठ भी जाओ, आज सारा दिन सपनें ही देखने है क्या?" गीतिका चाय मेज पर रखते हुए बोली। शिशिर ने आँखें खोली और गीतिका को देखकर मुस्करा दिया।


"आज तो मम्मा कहर ढा रही है," शिशिर बोला


"शी... बच्चे को यही सब सिखाओगे क्या?" गीतिका शिशिर को मीठी डांट लगाते हुए बोली


"मम्मा है ही इतनी खूबसूरत!," शिशिर उठ कर बैठ गया


"बस भी करो...!" गीतिका आँखों के इशारों में ही डांट लगाती हुई लगी।


"यहाँ बैठो होने वाली मम्मा!" शिशिर ने अपने बगल में बिस्तर पर थपकी देते हुए गीतिका को बैठने के लिए कहा।


"शिशिर!... मुझे तुम से एक बात कहनी है," गीतिका बिस्तर पर बैठ कर बोली


"कहो, इसमें पूछने वाली क्या बात है?" शिशिर गीतिका को चाय पकड़ाते हुए बोला


"तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ था?" गीतिका ने तपाक से पूछा


"ये कैसा सवाल है?" शिशिर बोला


"बताओ न?" गीतिका बच्चों की तरह बोली


"भारत और भारत में........"


"बस इतना ही काफ़ी है," गीतिका शिशिर की बात काटते हुए बोली, "तुम्हें कैसा लगा ये बताते हुए कि तुम्हारी जन्म भूमि भारत है?" गीतिका ने दूसरा सवाल किया


"बहुत अच्छा लगता है, गर्व महसूस होता है.... अपना देश तो अपना होता है... चाहे हम उससे मीलों दूर हो!" शिशिर ने आखरी वाक्य गहरी सांस के साथ बोला


"हमारा बच्चा क्या कहेगा शिशिर?" गीतिका शिशिर की आँखों में देखते हुए बोली


"किस बारे में?" शिशिर थोड़ा हैरान हुआ


"उसका देश क्या होगा?" गीतिका अब भी शिशिर की आँखों में देखते हुए बोली


"क्या पागलों सी बातें कर रही हो?.. उसका देश भी भारत होगा... हमारा देश भारत है।" शिशिर हैरान नजरों से गीतिका को देख रहा था।


"सिर्फ इसलिए वो भारत का वो जायेगा क्योंकि हम भारत से है?" गीतिका ने खाली कप मेज पर रख दिया, " जबकि उसका जन्म अमेरिका में होगा, पढ़ाई अमेरिका में होगी। शायद रहन सहन भी अमेरिकन जैसा ही हो। हम उसे कब तक भारत का रहन-सहन, संस्कार या दूसरी सभी बातें बताते रहेंगे। हाँ, हम उसे कभी कभी भारत भी लेकर जायेंगे लेकिन कुछ दिनों में क्या वो भारत का हो जायेगा? नहीं! हम उसे चाहकर भी वैसा महसूस नहीं करवा सकेंगे जैसा अपने देश के लिए हम महसूस करते है। " गीतिका बोलते बोलते खिड़की तक गई और खामोश हो गई 


"तुम क्या कहना चाहती हो? साफ साफ कहो न," शिशिर गीतिका के पास आकर बोला


"शिशिर, मैं चाहती हुँ हमारा बच्चा ज़ब जन्म ले तब वो धरती अमेरिका की नहीं भारत की हो... बल्कि उसका पूरा बचपन उसकी जवानी सब भारत में हो। वो सिर्फ मन से नहीं तन से और कर्म से भी भारतीय हो।" गीतिका खामोश होकर शिशिर को देखने लगी


"तुम चाहती हो हम भारत चले जाए हमेशा के लिए?... " शिशिर बोला। गीतिका की आँखों में इसका जवाब हाँ था, "तुम समझती क्या हो? मैं तुम्हारी ये बात मान लूंगा? लोग सपनें में भी विदेश देख नहीं पाते और तुम.. तुम चाहती हो हम यहाँ से चले जाए?" शिशिर गुस्से में बोला, उसकी आवाज ऊँची हो गई थी। गीतिका ये देख कर सहम गई। शिशिर उसके बिलकुल करीब आया। गीतिका डर कर एक कदम पीछे हो गई। शिशिर ने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने करीब किया। गीतिका बहुत घबरा गई। शिशिर ने अपना दूसरा हाथ उठाया और तेजी से गीतिका की तरफ लाया गीतिका ने सहम कर आँखें बंद कर ली और आँखें बंद करते ही शिशिर का हाथ उसके गाल पर था।

शिशिर गीतिका को सहला रहा था गीतिका ने आँखें खोली। शिशिर के चेहरे पर मुस्कान थी।


"जैसा मम्मा चाहेंगी वैसा ही होगा, है न परी?!" शिशिर गीतिका के पेट की तरफ देखकर बोला


"तुम्हें कैसे पता परी होगी?" गीतिका नाराजगी भरे स्वर में बोली


"पता है बस, अब नाराज क्यों हो? मैं तो बस मजाक कर रहा था!" शिशिर गीतिका के गाल पर अंगुली फिरा कर बोला


"ये मजाक था? मेरी जान निकल गई थी," गीतिका शिशिर से खुद को छुड़ा के बोली।


"मजाक ही था, वैसे ये मजाक लम्बा भी चल सकता था लेकिन तुम दिन रात दुखी रहती तो मेरी परी को भी तकलीफ होती न इसलिए जल्दी खत्म कर दिया।" शिशिर अब भी गीतिका को छेड़ रहा था


"ओह हो.. आपकी परी!" गीतिका भी कम नहीं थी


इधर ये दोनों अपने आप में व्यस्त थे, उधर बगल वाले फ्लैट में इन दोनों की ही चर्चा थी 


"अपनी पत्नि को समझा, बगल वाली से खूब गप्पे लगा रही थी।" उम्रदराज एक महिला मुँह बनाते हुए अपने बेटे से बोली


"पड़ोसी ही तो है माँ!" विवेक अपनी टाई ठीक करता हुआ बोला


"पड़ोसी! इनसे पहले जो रहते थे देखा नहीं उनको," माँ आँखें घुमाते हुए बोली


"माँ! आप भी न, मुझे देर हो रही है मैं जा रहा हुँ।" विवेक फुर्ती से बाहर निकल गया


"गया! मेरी बात सुने बगैर ही चला गया। करो अपने मन की। कुछ हो गया तो... राम राम " उम्रदराज महिला अपने कमरे की तरफ चली गई। कोमल की नजर किचन से बाहर ही थी उनके जाते ही उसने चैन की सांस ली और अपने काम पर लग गई।


*****


गीतिका बालकनी में आकर पौधों को पानी देने लगी। साथ ही एक गाना भी गुनगुना रही थी।


शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब.. फिर उसमें मिलाई जाए थोड़ी सी शराब.....


"गीतिका!.." तभी कोमल ने पुकारा


"अरे! दीदी आप," गीतिका कोमल की तरफ पलट कर बोली


"कैसी हो?" कोमल ने पूछा


"बहुत अच्छी!.. आप भी अच्छी ही लग रही है।" गीतिका मज़ाकिया होते हुए बोली


"अच्छी नहीं बहुत अच्छी!" कोमल ने कहा और दोनों मुस्करा दी


"अच्छा दीदी! इस फ्लैट में कौन रहता है?" गीतिका ने अपने दूसरी तरफ इशारा कर के पूछा


"वहाँ तो अभी कोई नहीं रहता," कोमल बोली


"कोई नहीं रहता फिर ये गाने..." गीतिका धीरे से बोली


जिंदगी एक सफर है सुहाना.. यहाँ कल क्या हो किसने जाना


"तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है! मुझे तुम्हारी पसंद के सभी गाने अच्छे लगते है। तुम्हारे पास लता जी का वो वाला गाना है क्या?.. "सुनो सजना " फ़िल्म का नाम शायद "आए दिन बहार के" है.... " कोमल की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी उसे अंदर से उसकी सास ने पुकारा और वो गीतिका की तरफ माफ़ी मांगने वाले अंदाज में देखकर अंदर चली गई।

इधर अपनी बालकनी में खड़ी गीतिका कोमल की अभी अभी कही बात से हैरान थी।


"गाने!.. पड़ोस में कोई रहता नहीं! मुझे लगता था गाने वहाँ बजते है, कोमल दीदी को लगता है गाने यहाँ बजते है!.. लगता हम दोनों को ही गलतफहमी हो गई है।" गीतिका खुद से बोली


"क्यों बात कर रही थी उस भुतहा फ्लैट में रहने वाली से? अगर उसका भूत इधर आ गया तो? भूल गई, इससे पहले वाले परिवार की कितनी बुरी हालत कर दी थी भूत ने " कोमल की सास जोर जोर से चिल्ला रही थी। बालकनी में खड़ी गीतिका तक भी ये आवाज पहुँच रही थी।


"अब तो वहाँ कोई भूत नहीं है, लगता भूत भी उन्हीं लोगों के साथ चला गया है," कोमल अपनी सास से बोली


"भूत कहीं नहीं जाते और तू बकवास मत कर, वो गर्भवती थी। मरते मरते बची थी उस भुतहा फ्लैट में। मुझे तो लगता है उस पर भूत ने कब्जा कर लिया है तभी तो ज़ब देखो खुले बाल लिए गुनगुनाती रहती है।" सास की आवाज थोड़ा हल्की हो गई थी लेकिन गीतिका को गर्भवती वाली बात सुनाई दी थी और वो सकते में आ गई।


अब गीतिका को वो सारी अजीब बातें याद आने लगी जिन्हें उसने नजरंदाज कर दिया था।

बालकनी में झूला! गमलों से मिट्टी गायब होना! उसके कप में चाय होना। कभी नल का खुला रहना तो कभी लाईट का बार बार जाना। अचानक गीतिका के मन में एक शब्द गूंजा "गर्भवती " और गीतिका बुरी तरह कांप उठी। उसने मन ही मन फैसला किया कि इस बारे में शिशिर से तुरंत बात करेगी ।


करीब आठ महीने बाद....


शिशिर हरिद्वार में गंगा किनारे खड़ा था और उसके हाथ में था अस्थि कलश!, शिशिर ने अस्थियां गंगा जी में प्रवाहित कर दी। गंगा माँ को हाथ जोड़कर शिशिर घाट पर आया।

हाथ में तौलिया लिए गीतिका वहाँ खड़ी थी उसने शिशिर को तौलिया दिया।


"आज बाबूजी की आत्मा को मुक्ति मिल गई होगी, है न!" शिशिर गीतिका से बोली।


"जरूर मिल गई होगी और वो बहुत खुश भी होंगे!" गीतिका बोली


"तुम तो खुश हो न?"


"हम्म.. और शुक्रगुजार हूँ भगवान की कि उसने हमें एक पुण्य काम करने का मौका दिया। बाबूजी को हमारे जैसे ही किसी इंसान का इंतजार था जो उन्हें भारत की मिट्टी में मिला सके।"


"तभी तो जो अस्थियां उनके बेटों को ढूंढने पर भी नहीं मिली, वो हमें तुरंत ही मिल गई,"


"क्योंकि बाबूजी ऐसा चाहते थे, उन्हें हम पर विश्वास था।"


"तुम भी बड़ी बहादुर निकली,"


"अरे नहीं! वो तो बाबूजी सपने में आकर सब बता दिया वरना मैं तो उसी वक़्त वो फ्लैट छोड़ने को तैयार थी। और फिर मुझे बाबूजी के वो गाने भी तो सुनने थे" गीतिका और शिशिर मुस्करा दिए, "लेकिन सच! अब मुझे बाबूजी और उनके वो गाने बहुत याद आएंगे।" गीतिका ठंडी आह लेकर बोली 


"चलो अब चले," शिशिर गीतिका का हाथ पकड़ते हुए बोला


"आह..." गीतिका हल्के से चीखी


"क्या हुआ?" शिशिर झुकते हुए बोला


"लगता है बाबूजी नया जन्म लेने को तैयार है, मुझे हॉस्पिटल ले चलो " गीतिका मुस्करा कर बोली।



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