एक तोह्फा अनमोल सा

एक तोह्फा अनमोल सा

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करवट बदलते हुए अचानक विहान की नज़र कैलेंडर पर पड़ी। उसने तुरंत अपनी बहन पीहू को फोन लगाया।

उनींदी आवाज़ में पीहू बोली "क्या हुआ भाई इतनी रात में क्यों फोन कर रहा है ?"

"दिदु याद दिलाने के लिए की दो दिन बाद कुछ है।"

"अरे हाँ, मैं सुबह तुझसे बात करने वाली थी इस बारे में पर भूल गयी। तो क्यासोचा है तुमने ?"

"सोचना क्या है चुपचाप घर चलते हैं और सरप्राइज देते हैं।"

"हाँ भाई, बहुत मज़ा आएगा। और क्यों ना इस बार बचपन की तरह हम अपने हाथों से तोहफा बनाये।"

"हाँ ये ठीक रहेगा।" कहकर विहान ने फोन रखा और अगली सुबह दोनों भाई-बहन बचपन को याद करते हुए अपने-अपने काम में लग गए।

उनकी माँ जहां थोड़ी सख्त और अनुशासनप्रिय थी, पापा उतने ही मस्त-मलंग। उन दोनों की हर शरारत में उनके साथ। जहाँ आमतौर पर बच्चे पिता की डांट से बचने के लिए माँ का सहारा लेते हैं, वहीं पीहू और विहान के साथ उल्टा था। बदमाशी करने के बाद माँ से बचने के लिए दोनों पापा के पीछे छुप जाते थे। उन तीनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि बड़े होने के बाद भी उन्हें हर एक बात अपने पापा से बाँटने की आदत थी। इसलिए दोनों ही अपने पापा को 'पापा दोस्त' कहा करते थे।

दो दिन बाद रविवार की अलसायी सी सुबह थी जब पीहू और विहान के पापा दोस्त 'अनीश जी' को अखबार के साथ एक लिफाफा मिला।

जब अनीश जी ने उसे खोला तो उसमें एक चिट्ठी थी।

"प्यारे पापा दोस्त

यूँ तो आपके बिना हमारी ज़िंदगी में ना सुबह है, ना शाम, हर दिन आपका ही दिन है, पर आज के दिन जब सारी दुनिया फादर्स डे मना रही है, हम दोनों आपसे ये कहना चाहते हैं कि आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा दोस्त है। जिन्होंने हमेशा दोस्त बनकर हमें समझा, हमारा साथ दिया, हमें सही रास्ता दिखाया।

हाँ ये भी सच है कि इसमें मम्मा की सख्ती का भी योगदान है, क्योंकि आप दोनों समझते है कि एक कि सख्ती, एक कि दोस्ती दोनों ही हमारे लिए जरूरी थी, और आज भी है।

हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएं पापा दोस्त, लेकिन हमें हमेशा आपका दुलारा बनकर रहना है, और आपके साथ बचपन वाली मस्ती करनी है।

आपके पीहू और विहान"

चिट्ठी पढ़कर अनीश जी बहुत भावुक हो गये। उन्होंने अपनी पत्नी सुचिता जी को वो चिट्ठी दिखाई।

सुचिता जी ने कहा "हमारे दोनों बदमाश यहीं कहीं छुपे है। आवाज़ लगाओ दोनों को।"

तभी दरवाज़े के पीछे से निकलते हुए पीहू और विहान बोले "हाँ बदमाश यहीं छुपे हैं।"

अनीश और सुचिता जी के चेहरे अपने दोनों बच्चों को देखकर खिल उठे।

अनीश जी ने पूछा "अभी तो कोई छुट्टी भी नहीं, फिर तुम दोनों अचानक कैसे ?"

"छुट्टी नहीं है तो क्या, हम अपने पापा दोस्त के लिए छुट्टी लेकर नहीं आ सकते। अब पहले आप अपना तोहफा देखिये और बताइये कैसा है ?" अपने-अपने तोहफे निकालकर अनीश को देते हुए पीहू और विहान बोले।

"तुम दोनों का साथ और प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है मेरे बच्चों।" अनीश जी ने पीहू और विहान को गले लगाते हुए कहा।

"वो तो है पापा दोस्त, पर आज आपको ये बताना होगा कि हम दोनों में से किसका तोहफा ज्यादा अच्छा है, मुझे यकीन है मेरा होगा" विहान लाड़ से बोला।

"बिल्कुल नहीं, मेरा तोहफा हमेशा बेस्ट होता है" पीहू भी चहकते हुए बोली।

दोनों को शांत करवाते हुए अनीश जी ने तोह्फे खोले तो उनमें पीहू और विहान के हाथों से बने हुए खास कार्ड्स और साथ में दूसरी चीजें थी, जिन्हें दोनों ने अपने हाथों से बनाने की कोशिश की थी।

पिछले महीने मदर्स डे पर सुचिता जी को भी बचपन की तरह ऐसे ही मज़ेदार तोहफे देकर दोनों ने चौंका दिया था।

यादों में खोये हुए सभी खामोश हो गए थे कि सुचिता जी बोली "तुम लोग मस्ती जारी रखो, मैं सबके लिए नास्ता लाती हूँ।"

विहान ने सुचिता जी को बैठाते हुए कहा "रुको तो प्यारी मम्मा। आप भूल गयीं रविवार को रसोई पर हम तीनों का कब्जा होता है। आप तो बस आज मस्ती का हिस्सा बनो, काम का नहीं।"

अगले ही पल विहान, पीहू और अनीश जी रसोई में काम के साथ-साथ सुचिता जी के साथ मिलकर मज़ाक-मस्ती करते हुए आज के दिन को यादगार बना रहे थे।


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