vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

5.0  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

एक सफर

एक सफर

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शहर की जिंदगी बहुत तेज रफ्तार हो गई है और किसी के पास समय कहां जो देखे दूसरों की दुःख तकलीफ, ज्यादा ही व्यावसायीकरण हो गया है।

हर मनुष्य फायदे और नुकसान को तोलता है फिर कोई कार्य करता है। ऐसी ही एक दुनिया में राम और रहीम दो दोस्त भी हैं। दोनों जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई तो कर पाए पर समस्या ये है की नौकरी कैसे मिले।

जिस माहौल में वो रहते हैं वहां सफेदपोश लोगों के अनुसार केवल छोटे लोग रहते हैं और उन ज्झुगियों से कोई सरीफ इंसान नहीं निकल सकता। इसके रहते उन्हें कोई अपने घर के काम काज के लिए नौकर तो रख सकता है लेकिन कोई अच्छी नौकरी नहीं दिला सकता, छोटे बड़े का भेद आज के तेज रफ्तार महानगरों में वैसा ही है जैसा पहले था वो भेद आज भी नहीं बदला।

राम ने रहीम से इतना ही कहा मुझे नहीं लगता रहीम हमें सब्जी तरकारी लाने बच्चों को स्कूल छोड़ने के अलावा कोई काम मिलेगा। क्यूंकि हम पर कोई विश्वास नहीं करता इसलिए हमें कुछ सोचना होगा। रहीम ने कहा राम हम क्या करेंगे कुछ भी करेंगे तो लोग पहले हमारे सर्टिफिकेट नहीं देखते पहले पूछते हैं कहां से आए हो फिर ऐसे में क्या करें। रहीम हम अपना कुछ करते हैं अपने और भाइयों को भी एकत्रित करते हैं और कोई ऐसा काम करते हैं जिससे यहां पर रहने का धब्बा भी हट जाय और कुछ अच्छा भी हो जाय। राम कैसे होगा ये सब रहीम कहे जा रहा था ये तो ऐसा है की सफर की ऊंच नीच देखे बैगैर अनजान सफर पर निकलना।

अरे रहीम कुछ सोचेगे तो कुछ होगा ना चलो सभी भाई बहनों को एकत्रित करते हैं और काम शुरू करते हैं पर तुम करना क्या चाहते हो राम, चलो पहले और दोनों ने झुग्गियों से सभी, पड़े लिखे नौजवानों को इकठ्ठा किया उन्हें कुछ सामान्य शिक्षा दी और एक जगह सुनिश्चित की अपने ही आस-पास अब रोज वहां झुग्गियों के बच्चों को पढ़ाया जाने लगा छोटी छोटी चीजें मेहनत मजदूरी कर वो दोनों उनके लिए जुटाने लगे, बच्चों को सफाई से रहने से लेकर छोटी-छोटी चीजें बनान सिखाया।

जाने लगा बच्चे पड़ते भी और साथ ही छोटी छोटी चीजें बनाना सीखते जैसे दीवाली के बचे पुराने दिए रंगना, छोटे-छोटे सजावट के समान भी बचे खुचे समान से बनाना इत्यादि और जैसे लोगों को पता चला तो वो भी अपने घर का कबाड़ वहां देकर चले जाते और ये दोनों अपने सब साथियों की मदद से उनको नया रूप दे देते बच्चे भी खुश अब कोई फालतू नहीं घूमता था।

आस-पास सफाई रहती थी और समान बेचकर जो पैसे मिलते उन्हें सुधार कार्यों में लगाया जाता। ये अनजान सफर अब दोनों को पहचाना सा लगने लगा और ना सिर्फ इन दोनों को आस-पास राम रहीम के चर्चे होने लगे, उनके काम की सरहाना होने लगी तो सरकार ने भी मदद की राशि भेज उन्हें और जगहों पर भी इस मुहिम को चलाने को कहा और दोनों अपने शहर में अपने उत्तराधिकारी छोड़ निकल पड़े। फिर एक अनजान सफर पर एक ऐसे शहर की खोज में जहां फिर एक नया शहर बसाया जाय कुछ रोते हुओं को हंसाया जाय।


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