एक सेवा ऐसी भी

एक सेवा ऐसी भी

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यह उन दिनों की बात है जब मैं इटावा (उतरप्रदेश) में उच्च माध्यमिक विद्यालय में सेवारत थी। मुझे शिक्षा विभाग की तरफ से एक वर्ष,शारीरिक शिक्षण अभ्यास के लिये बाड़मेर (राजस्थान) जाना था ।वैसे ये शहर मेरे लिये अपरिचित नहीं था। फिर भी अकेले यात्रा करने का पहला अवसर था।

बाड़मेर की मधुर मारवाड़ी भाषा, सौहार्द व्यवहार, संस्कृति, कठोर परिश्रम, इन सब अनुभवों को अपने अंदर संजोये, परिपूर्ण ट्रेनिग उत्तीर्ण कर, उत्साह और आनंद के साथ मैं बापस अपने शहर के लिये रवाना हुई।

बाड़मेर से इटावा आने के लिये आगरा फोर्ट पर गाड़ी बदलनी पड़ती थी परन्तु वह गाड़ी कुछ घन्टे पूर्व निकल गई थी दूसरी सुबह छ्ह बजे थी सोचा यहीं के प्रतीक्षालय में रुक जाऊँगी। तभी स्टेशन आ गया। गाड़ी से उतरते ही स्टेशन के टीन शेडसे जूझती तूफानी बारिश का शोर सुनाई दिया ठिठुरती सर्दी,चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा, स्टेशन का आखिरी पड़ाव दूर दूर तक किसी को न देखकर मन में घबराहट होने लगी बारिश और धुंध की रजाई में बद लाइटों की रौशनी भी दिये की तरह टिमटिमाती भयावह दिखाई देने लगी थी। मन ने भी आये दिन महिलाओं के साथ घटित अपराधों का,अनर्थ का संकेत देना शुरू कर दिया था।

रुकूँ कि जाऊं इसी पेशोपश में थी तभी दूर से एक धुंधला सा साया अपनी तरफ आते देखा। कुछ समझ पाती तब तक उसने कन्धे पर बैग टाँगा, एक हाथ से सूटकेस उठाते हुये दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुये फुसफुसाया"यहाँ इतनी रात में एक पल भी रूकना ठीक नहीं है चलो मैं तुम्हें मुख्य स्टेशन तक पहुंचा देता हूँ"मैं स्तब्ध जड़, मुंह से कुछ आवाज निकले उससे पहले उसने मुँह पर हाथ रख दिया "घबराओ नहीं,बस चुपचाप चलती रहो यहॉ हम दो ही हैं"और घसीटते हुये लम्बे लम्बे डग भरते हुये महिला प्रतीक्षालय के आगे लाकर खड़ा कर दिया " आप यहाँ आराम से गाड़ी की प्रतीक्षा कीजिये।

मैं जाकर स्टेशन मास्टर को भेजता हूँ"तों की ठक ठक धीमी होती आवाज ने मेरे मृतप्राय होते शरीर में जान सी डाल दी थी पर पैरों की कम्पन बरकरार थी. तभी स्टेशन मास्टर आ ग़ये.उन्होंने प्रतीक्षालय का दरवाजा खुलवाया और अन्दर सोये रेल्वे कर्मचारी को जगाकर बाहर भेजा "आज शहर बन्द की घोषणा के कारण, दो तीन कर्मचारी काम पर आये हैं पर तुम फिक़ मत करो, मैं तुमको समय पर गाड़ी में बैठा दूँगा, सुबह पाँच बजे तैयार रहना "ये कहकर वे चले गये। कमरे का निरीक्षण करके मैने अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया। पर घबराहट अभी भी थी, एक दिन बाद आती तो सही था पर अब आगे क्या ? यही सोच सवार थी

भोर की आहट होते ही बाहर तीन चार लोगों के हँसने बोलने की आवाज सुनाई दी साथ ही स्टेशन मास्टर की। थोड़ा सा झाँककर मैंने दरवाजा खोल दिया . सामने चाय की दुकान पर उनका आभार व्यक्त करते जब मैं चाय पी रही थी तभी वह लम्बा साया दिखा। "ये कौन सज्जन है ? बड़ी ही बेअदवी से रात को हमारा हाथ पकड़ कर खींचते, घसीटते यहां लेकर आये थे। "मैंने गुस्से और नफरत भरे स्वर मे कहा। सवालिया नजरों से देखते हुये उन्होंने कहा " इनको कौन नहीं जानता। ये रिटार्यड कर्नल हैं। रात्रि ग्यारह बजे से सुबह पाँच बजे तक घूम फिर कर लोगों की सहायता करते है। ताकि कोई दुर्धटना न घटित हो। सबसे हॅसी मजाक करते कहते हैं "मै पहले की अपेक्षा अभी ज्यादा कार्यरत हूं अन्तर है तो सिर्फ समय का" 

मुझे पहली वार अपने आप में बड़ी ही शर्मिन्दगी महसूस हुई। इतने सेवाप्रेमी व्यक्ति के लिये मेरे मन में इतनी कालिमा घुल गई थी। क्या देश में फैली बदहवास और सिसकती रूहों ने मुझमें अच्छे बुरे की पहचान खो दी? कर्नल की सोच ने मेरे मन में मृदुलता, सेवा भाव को जागृत कर दिया। सोचने लगी ऐसा भी होता है मानव प्रेम, देश प्रेम "पूरी रात जागकर न केवल सेवा करना बल्कि असामाजिक तत्वों से लोगों को सावधान करना, बचाना, निशुल्क, बिना किसी सम्मान पत्र की अपेक्षा किये।

शिला शर्मा 

नागपुर

९५१Sent from my Samsung Galaxy smartphone.ल हैं। रात्रि ग्यारह बजे से सुबह के पाँच बजे अकेले घूम फिर कर लोगों की सहायता करते हैं ताकि कोई दर्घटना न घटित हो। सबसे हॅसी मजाक करते हैं कहते हैं"मैं पहले की अपेक्षा अभी ज्यादा कार्यरत हूं अन्तर है तो सिर्फ समय का"

मुझे पहली वार अपने आप में बड़ी ही शर्मिन्दगी महसूस हुई। इतने सेवाप्रेमी व्यक्ति के लिये मेरे मन में इतनी कालिमा घुल गई थी। क्या देश में फैली बदहवास और सिसकती रूहों ने मुझमें अच्छे बुरे की पहचान खो दी? कर्नल की सोच ने मेरे मन में मृदुलता, सेवा भाव को जागृत कर दिया। सोचने लगी ऐसा भी होता है मानव प्रेम, देश प्रेम "पूरी रात जागकर न केवल सेवा करना बल्कि असामाजिक तत्वों से लोगों को सावधान करना, बचाना, निशुल्क, बिना किसी सम्मान पत्र की अपेक्षा किये।


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