Saroj Verma

Abstract

4.5  

Saroj Verma

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एक प्यासी रूह.....

एक प्यासी रूह.....

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आज विहान बहुत खुश था,आज उसने वो पुरानी हवेली खरीद ली थीं जो कि बचपन से ही उसके मन मे बसी थी,उसके गांव के रास्ते मे वो हवेली पड़ती थी,वो जब भी अपने गांव जाता तो अक्सर उस हवेली के सामने से गुजरता,वो हमेशा से सोचता था कि जब वो बड़ा हो जाएगा तो इस हवेली को जरूर खरीदेगा और आज वो सपना पूरा हो गया,बड़ी मुश्किलों के बाद तो हवेली के ओनर का पता लगा,कहते हैं कि हवेली का अपना कोई वारिस नही था,इसलिए किसी दूर के रिश्तेदार को इसका वारिस बनाया गया और जिसे उसका वारिस बनाया गया वो विदेश मे जा बसा था,उसने हवेली मे कभी आकर देखा ही नही कि वो कैसी हैं, सालों से वो हवेली ऐसे ही बंद पड़ी थीं, किसी ने उसे खोलकर देखा ही नही, हलांकि विहान को भी उसके घरवालों ने इस हवेली को लेने से मना किया था लेकिन विहान नही माना ये उसकी दिलीख्वाहिश की वो इस हवेली को खरीदें।।

           वो आज एक कामयाब बिजनेसमैन बन चुका था,उसके पास अब बहुत पैसा था इसलिए उसके मन मे हवेली खरीदनें का विचार आया और उसने उस हवेली के साथ साथ आसपास की जमीन भी खरीद डाली,वो इसलिए कि आसपास वो बहुत से फूल और पेड़ पौधे लगाकर हवेली को एक सुंदर रूप देना चाहता था आखिर इसके लिए उसने सालों इंतज़ार किया था।।

        उसने सोचा की मरम्मत करवा कर,फिर कभी जब काम से उसका मन ऊब जाया करेगा तो वो इसमे रहने के लिए आया करेगा और उसने आज तो इसके अंदर जाकर देखता हूं आखिर अंदर से ये कैसी दिखतीं हैं।।

        और विहान हवेली के अंदर पहुंचा, वहां जाकर देखता हैं, सब जगह मिट्टी ही मिट्टी, जाले ही जाले,अंदर का सामान भी बहुत ही जर्जर अवस्था मे हैं,उसने एक एक करके हवेली के सारे दरवाजों को खोलना शुरु किया, चार पांच कमरो के दरवाज़े खोलकर देखने के बाद उसकी नजर नीचे जातीं सीढियों पर पडी़ ,वो उन सीढियों से नीचे उतर चला,वहां लकड़ी की एक अल्मीरा रखी थीं, उसकी नक्काशी देखकर लग रहा था कि किसी बहुत ही शौकीन इंसान की हैं,उसे उसने खोलकर देखा और खोलते ही एक कंकाल उसमे से गिर कर विहान के पैरों पर आ गिरा।।

               थोड़ी देर के लिए वो उसे देखकर डर गया,फिर सोचा कि क्या करूँ, पुलिस को इन्फोर्म करूँ या रहने दूं,लेकिन ये किसी की लाश भी हो सकती हैं, हो सकता है इसे किसी ने मारकर इस अल्मीरा मे बंद कर दिया हो,ये सब विचार उसके मन मे आ ही रहे थे कि उसकी नजर अल्मीरा मे रखी डायरी पर पडी़,उसने उस डायरी को उठाया, उस पर लिखा था ठाकुर जोगेन्दर सिंह।।

 अब विहान ने अगला पन्ना पलटाया___

मैं ठाकुर जोगेन्दर सिंह ने अपना वसीयतनामा तैयार कर दिया हैं जिसमें हवेली और मेरी जमीन अपने विदेश मे रह रहे है भतीजे के नाम पहले ही कर दी हैं,मेरे दिल पर बहुत बडा़ बोझ हैं ,मै अब ये बोझ लेकर नही जीना चाहता इसलिए आज डायरी मे लिखकर अपना जुर्म कुबूल करता हूं, मैं सब लिखने के बाद जहर खाकर खुद को इस अल्मीरा मे इस डायरी के साथ बंद कर लूंगा,जिसे भी मेरा शरीर मिले वो इसका अंतिम संस्कार कर दे नही तो मेरी प्यासी रूह को कभी भी शांति नही मिलेगी।।

              उसका कारण हैं, एक पाप जो मैं ने किया था,मैने अपनी खुशियों मे खुद आग लगाई थी,इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं, इतना बडा़ अपराध किया था मैने की उसकी जितनी भी बड़ी सजा मिले मुझे तब भी वो कम होगी।।

        मैं अपने खानदान का इकलौता बेटा था,बहुत प्यार और दुलार से पाला था मां बाप ने,मेरे पिताजी बहुत ही दयालु इंसान थे,वो अपने अच्छे स्वभाव के लिए आसपास के गांवों मे भी बहुत प्रसिद्ध थे,मेरी मां भी बहुत अच्छी महिला थी।।

             उन्नीस बरस की उमर मे मेरा ब्याह हो गया, सोलह बरस की देविका से,सुकोमल,हल्लड़ और शहद सी मीठी बातें करने वाली मेरी देवू,वैसे तो पिताजी ने ही देवू को मेरे लिए पसंद किया था ,शादी से पहले हम कभी नही मिले थे,लेकिन जब मैने पहली बार उसका घूंघट उठाया, उसी पल मुझे उससे प्यार हो गया था,ब्याह भर तो मै सिर्फ उसका लम्बा घूंघट,मेंहदी लगे हाथ,चूडियों से भरी कलाइयाँ और महावर लगे पैर ही देखता रहा, चेहरा नही देख और जब उसका चेहरा देखा तो होश सम्भालना मुश्किल था,इतनी खूबसूरत थी देवू की कि एक पल को मेरी आंखें चौधिंया गई।।

       घूंघट उठाते ही उसने मेरे पैर छुए और उसे मैने अपने सीने से लगा लिया,दो साल तक हम एकदूसरे के प्यार मे डूबे रहे,अब देविका अठारह की हो चली और मै इक्कीस बरस का,अभी तक हम मां बाप नही बने थे और मै अपनी ये जिम्मेदारी उठाना भी नही चाहता था,दिन ऐसे ही गुजर रहे थें,देवू का श्रृंगार कभी भी कम नहीं होता, हमेशा सुहागन की तरह सजी रहती,मांग मोटे मोटे सिन्दूर से भरी रहती।।

          तभी एक दिन अचानक देवू चक्कर खाकर गिर पडी़, मै बहुत घबरा गया, समझ मे नही आया कि क्या हुआ, शहर से डाक्टरनी मेम को लाया तो पता चला कि खुशखबरी हैं, देवू मां बनने वाली हैं लेकिन मैं उतना खुश नही था क्योंकि मुझे लग रहा था कि अब देवू मुझ पर ध्यान नही देंगी, उसका सारा ध्यान अब बच्चे पर रहेगा, अब मै देवू से थोड़ा खिचा खिचा सा रहने लगा,देवू इस बात से बहुत परेशान रहने लगी,उसे ये बात समझ नही आ रही थीं कि मैं ने उससे दूरियां क्यो बना ली हैं।।

              इस बात को सोच सोचकर देवू की तबियत खराब रहने लगी ,इस कारण उसके लिए एक नर्स रख ली गई, नर्स भी देवू की हमउम्र थी,मैंने पैसे का लालच दे देकर नर्स से नजदीकियां बढ़ा ली,अब जब भी रात को देवू सो जाती तो नर्स को मैं अपने कमरे मे बुला लेता,ऐसे ही कई महीने गुजर गए,मेरा अय्याशी पना बरकरार रहा,एक रात देवू को नींद नहीं आ रही थीं, वो टहलते हुए बाहर की ओर आई,उसनें सोचा कि मुझसे बात करके शायद उसे थोड़ा बेहतर लगे,इसलिए वो मेरे कमरे मे आ पहुंची, लेकिन उसे ये कहाँ मालूम था कि उसका पति नर्स की बांहो मे होगा, ये नजारा देखकर उसका दिल कांप गया ,वो पीछे हटी और वहां रखा गुलदान नीचे गिर गया, शोर सुनकर मुझे होश आया और मैं ने देखा कि देवू हैं, मुझे लगा कि अभी इस समय उसके पास जाना उचित नही होगा क्योंकि अभी वो बहुत गुस्से मे होगी।।

            लेकिन उसके जाते ही दस मिनट के बाद ये सूचना मिली की देवू ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली है,पुलिस आई,पूछताछ भी हुई और सभी को ये पता था कि मेरे और देवू के बीच बहुत अच्छे सम्बन्ध थे मैं देवू को बहुत प्यार करता था और मै बच गया लेकिन देवू के जाने के बाद मां पिताजी को भी बहुत बडा़ झटका लगा और वे भी ज्यादा दिन तक ना जी सके।।

         इसके बाद मैं भी तिल तिल कर मरने लगा,ये पाप मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था,इसके बाद मैने ये करने का फैसला किया, इसलिए पुनः एक विनती हैं कि जिस भी व्यक्ति को ये डायरी और लाश मिले तो मेरा अंतिम संस्कार करने का कष्ट करें।।

           डायरी पढ़कर विहान ने फौरन पुलिस को फोन करके बुलाया, डायरी देखने के बाद पुलिस ने अंतिम संस्कार की इजाज़त देदी, विहान ने जोगिन्दर सिंह का अंतिम संस्कार किया, तभी उसने उस आग की लपटों के बीच देखा कि कोई कि कोई रूह उसे हाथ जोड़कर धन्यवाद दे रही हैं,इस तरह विहान ने इक प्यासी रूह को आजाद कर दिया।।


              

           



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