एक प्रश्न -ऐसा क़्यों ?
एक प्रश्न -ऐसा क़्यों ?
अपनी ही गली से गुजरना निकिता के लिए मानो सौ मौत मरने जैसा है। लेकिन इसमें उसका क्या दोष। उसके साथ साल भर जो हुआ वह उसने तो नही चाहा था। वह भी एक आम सोलह साल की लड़की की तरह अच्छी पढ़ाई कर कुछ बनाना चाहती थी।
उस दिन इन्ही गलियों में ना जाने कहाँ से काली बड़ी सी गाड़ी में गुजरते लोगों ने उसे गाड़ी में अंदर खींच लिया और बारी बारी मनमानी करने के बाद कही सड़क पर फेंक दिया था। जब होश आया तब तक उसके तन और मन दोनो ही तार-तार हो चुके थे। वापस घर आना उसके लिए बहुत कठिन था। एक मन स्वयं को मिटाने को कहता और दूसरा उन दरिंदों को नष्ट करने को कहता। अंततः जीत आत्मसम्मान और आत्मशक्ति की हुई। बिखरे हिम्मत को समेट निकिता उन दरिंदों को सजा दिलाने की ठान ली।
अनंत अड़चनों के बाद लम्बी लड़ाई की शुरुआत हुई लेकिन हर दिन और हर पल गुजरने वाली अनगिनत नज़रें उसे बार-बार अंदर तक चीरती, जैसे इस दर्दनाक घटना की ज़िम्मेदार वह स्वयं है। नही समझ पाती है वह कि क्यों ऐसा है। क्यों हर बार दर्द और ग्लानि लड़की के ही हिस्से आता है।
