एक चुप्पी सौ समस्याओं की जड़
एक चुप्पी सौ समस्याओं की जड़
"अरे, मैंने तो बस इतना पूछा कि आज नाश्ता बनाने में देर कैसे हो गई? और तुम नाराज हो गई। अरे, आजकल तुम्हें क्या हो गया है? बहुत ज्यादा ओवर रिएक्ट करने लगी हो, हर बात का उल्टा जवाब देती हो। तुम ही कहती थी ना 'हमेशा जवाब देना भी अच्छा नहीं होता।'एक चुप्पी सौ समस्याओं का हल है फिर क्या हो गया?"
"हां, मैं कहती हूं कि एक चुप्पी सौ समस्याओं का हल है पर अब लगता है कि वही एक चुप्पी मेरी समस्याओं की जड़ बन चुकी है।"
"क्यों? ऐसा क्या हो गया?"
"आप तो मेरे पति हैं, 10 साल से साथ हैं। आपको तो पता होना चाहिए कि आखिर मैं क्यों इतना ओवर रिएक्ट करने लगी हूं। आपके मन की बातें बिना कहे समझ जाती हूं फिर आप मेरे मन की बात क्यों नहीं समझ पाते या फिर समझना ही नहीं चाहते?"
अरे बाबा, मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूं, तुम्हारे जितना खूबी मुझ में नहीं है। तुम मेरे मन की बात समझ जाती हो पर मैं नहीं समझ पाता हूं बताओ ना क्या हुआ? भाभी ने कुछ कहा क्या?"
रोहिणी बिना जवाब दिए अपने काम में लग गई
ये हैं रोहिणी और अरविंद दोनों पति-पत्नी। रोहिणी अपने सास-ससुर और दो बच्चों के साथ रहती है। जेठ जेठानी शहर में रहते हैं, अभी कुछ दिनों के लिए घर आए हैं। जब से वे घर आये हैं तब से रोहिणी कुछ चिड़चिडी सी हो गई है, हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आने लगा है।
"अरे, तुम नहीं समझते हो पर मैं सब समझती हूं कि यह ऐसे क्यों कर रही है? क्योंकि तुम्हारी पत्नी को घर का काम करना पड़ता है, सबके लिए खाना बनाना पड़ता है।" पीछे से आती सास ने कहा।
"लेकिन मां, ये सारे काम तो यह सालों से कर रही है, पहले तो ऐसा नहीं था फिर अचानक? और आप इतना यकीन से कैसे कह सकती है कि काम की वजह से चिढ़ है?"
"अरे बेटा! तू नही समझ रहा है पर मैं सब समझती हूं पहले अकेली रहती थी। अब जेठानी भी आ गई है और उसका भी काभी काम करना पड़ता है इसलिए। मैं देख रही हूं कि दो-तीन बार से जैसे ही बड़ी बहू घर आती है, इसे गुस्सा चढ जाता है। इसका मुंह लटक जाता है।"
"मां, मैं घर में काम करने से नहीं बल्कि आपके दो तरह के व्यवहार से चिढ़ और नाराजगी है। एक ही घर में आपने अपनी दो बहुओं के लिए दो नियम बना रखे हैं।"
"अरे, क्यों झूठा इल्जाम लगा रही हो? मैंने क्या दो नियम बनाया? बड़ी तो दूर शहर में रहती है, साल में एक दो बार घर आती है। तुम ही अकेले पूरे इतने बड़े घर में राज करती हो।"
"वही तो दीदी शहर में अकेली रहती है तो सब कुछ अपने हिसाब से करती है और मैं यहां आप सबके साथ रहती हूं, सब कुछ आपके हिसाब से करती हूं। जेठानी जी 15 दिनों के लिए घर आती है तो उसमें हफ्ते भर मायके रहकर आती है। सप्ताह भर यहां रहती है तो नाश्ता से लेकर लंच डिनर सब उनके पसंद का बनता है, वो मेरे एक भी काम में मदद नहीं करती और ना ही आप उन्हें मदद करने के लिए कहती हैं। वो तो यहां बस आराम करने आती है और उन्हें आराम मिलता भी है पर मुझे, मुझे तो कभी आराम नहीं मिलता, कोई मदद नहीं करता काम में। उन्हें अपनी सुविधानुसार कपड़े पहनने की भी पूरी आजादी है फिर मुझे क्यों नहीं? कभी मेरी पसंद का खाना क्यों नहीं बनता? 10 साल हो गए शादी को लेकिन मेरे हर एक छोटे से छोटे काम में आप का निर्णय होता है। मैं क्या पहनूंगी यह भी आप ही तय करती हैं।"
"अरे, वह दूर रहती है। कभी कभार आती है बस इसीलिए। फिर वह तुमसे बड़ी है। देवरानी के सामने जेठानी काम करे अच्छा नहीं लगता है। घर में काम ही कितना है। अगर तुम्हें इतना बुरा लग रहा है तो तुम भी अपने पसंद का करो।"
"मां जी, यह बात तो सिर्फ बोलने के लिए है। आपको याद है पिछली बार जब छोटी चाची आई थी तो सारा खाना उनके पसंद का बना था। बस बैंगन की सब्जी मैं अपनी पसंद की बना ली थी तब आपने क्या कहा था उनके सामने ही कि तेरे मायके में उल जलूल खाने की आदत है यहां नहीं तो आइंदा ऐसी सब्जी मत बनाना। रही बात जेठानी जी की तो वो दूर रहती हैं, साल में कभी कभार आती है इसलिए उन्हें सारी छूट है तो अब मैं भी आपसे अलग ही रहूंगी, अपने हिसाब से। साल में एक-दो बार आपके पास आऊंगी तो यहां भी अपने हिसाब से रहूंगी। खाने-पीने से लेकर पहनने तक की आजादी रहेगी। ज्यादा काम भी नहीं रहेगा आराम से रहुंगी, जब मन होगा तब मायके जाऊंगी या कहीं और घूमने जाऊंगी।"
"अरे, तू खड़े खड़े सब सुन रहा है, कैसे तेरी बीवी जबान चला रही है, तू कुछ बोलता क्यों नहीं?"
"क्या बोलूं मां?? वह कुछ गलत तो नहीं बोल रही। उसका भी कहना सही है कि अलग रहना ही ठीक है अब।"
सास फिर से कुछ बोलने लगी तब तक जेठानी आकर बोली, "मां जी, रोहिणी का कहना बिल्कुल सही है। वह तो लगातार आपके साथ ही रह रही है। घर का सारा काम और आपकी सेवा भी वही करती है फिर मुझसे ज्यादा कहीं छूट तो उसे मिलना चाहिए। वो पूरा घर संभालती है। मैंने कई बार आपसे कहा भी तब आप ने यह कह कर टाल दिया कि जब वो कुछ नहीं बोल रही फिर तुझे क्यों इतनी पड़ी है? अच्छा हुआ रोहिणी जो तुमने बोला क्योंकि जो नहीं बोलता उसे कुछ नहीं मिलता। चल आज से जब तक मैं हूं, घर का सारा काम मैं ही करूंगी, तुम बस आराम करो।"
"हां, ठीक है-ठीक है! चल छोटा-मोटा काम मैं भी कर दिया करूंगी आज से और हां आज से तू साड़ी पहनना बंद कर और सूट सलवार पहनना शुरू कर दे।"